सदस्य:जितेंद्र गुप्ता

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जितेंद्र गुप्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र है। जो अनेक वर्तमान विषयों पर लेख,कविताएं आदि लिखते है। उनका जन्म 30 मई 1998 को उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के बिसंडा कस्बे में हुआ।

भारत की इंकलाबी आवाज

ओ भारत के लोगों!

क्यूं बैठे हो धरे हाँथ

तुम्हारा गर्जन सुनने के लिए

बाट जोह रहा है नाथ(राष्ट्र)।

कर प्रयोग अपनी युद्ध भरी आवाज का

बरछी ,भाला ,खड़ग ,बारूद की तरह

पंक्तिबद्ध हो जाओ तुम सब स्वयं में

मिटा दो वजूद अमानवीय स्थितियों का ।

छोड़ दो षड्यंत्री राजनीतिक गिरोहों का साथ

सब टट्टुओं, गद्दारो, बेईमानों का समूह है यह

डूबा हुआ है यह वृहद लोलुपता में

खेलता है खेल हर जगह फिरकापरस्ती का ।

मिलाओ कंधे से कंधा संघर्ष पथ पर

मिटा दो स्वेच्छाचारियों को धूल की परत पर

उठाओ अर्जुनों गांडीव युद्धस्थल पर

क्रान्तिदर्शियों विराजो इंकलाब के रथ पर।भारत की इंकलाबी आवाज- जितेंद्र गुप्ता


भगत सिंह


भगत हूं मैं उस देश का

जिस में समानता तुल्यता सादृश्य हो

जहां वर्ग संघर्ष हीनता दुर्भावना

की कोई जगह नहीं ।


भगत हूं मैं उस क्रांति का

जिस में परिवर्तन , तख्तापलट की शक्ति हो

जहां दीनता,शोषण, बदहाली

की कोई जगह नहीं ।


भगत हूं मैं उस रोशनी का

जहां आशा, विशोधित, युक्तियुक्त की जगह दिखे

जहां पराधीनता, निरंकुशता ,दमन

की कोई जगह नहीं ।


भगत हूं मैं उस शांति का

जो स्वयंसिद्ध ,सर्वमान्य,लौकिक हो

जहां उत्पीड़न,तानाशाही,जोर

की कोई जगह है ।


भगत हूं मैं!

गरीबी सड़क पर- जितेंद्र गुप्ता

वह भटकती सड़क पर कुछ इस तरह

कि दिख जाए कोई शख्स इधर-उधर

थामे खिलौने, बर्तन और ढेरों सामान

कि मिल जाए कोई खरीदार खरीदने के लिए ।

निहारती झांकती टकटकी आंखों से वह

दिखता हर शख्स उसे मालिक जैसा

जो दे दे उसे भूख की दवा

कि मिट जाए भूख सदा के लिए ।

धूप,बारिश,तूफान सब कुछ

उसे निट्ठल्ला सा लगता है

उसे सिर्फ रोटी चाहिए

इंसान हैं उसे भी पेट में हल्ला सा लगता है।

महल,घर,बसेरा सब उसे

नावाकिफ लगता है

टूटी,छोटी,झांकती झोपड़ी भी

उसे आशियाना लगता है।

किस्मत कुछ इस कदर रूठी है

हर रोज उसे गरीब सा लगता है

सोचती है मिल जाएगा अभी वह

जो हर रोज खुदा -सा लगता है ।