सदस्य:कवयित्री सुनीता काम्बोज

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
कृति,  प्रकृति का दूसरा नाम व्यवस्था या संतुलन  भी कहा जा सकता है । मनुष्य, जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, ग्रह-नक्षत्र, मिटटी,पानी ,हवा आदि प्रकृति  का अंश हैं । प्रकृति बिना पक्षपात किए सभी  जीवों का संरक्षण और पोषण करने वाली धात्री है । उत्त्पति की देवी के मार्ग में जब कोई अवरोध उत्पन्न होता है तो यह विध्वंश कर, पुनः सर्जन करने  का सामर्थ्य रखती है । प्रकृति महाशक्ति हैं इसकी गोद में हर जीव वात्सल्य पाता है । प्रकृति के कोष में जाने कितने अनदेखे अजूबे हैं । कुदरत ने मानव को  जीवन जीने की कलाएँ सिखाई । मनुष्य ने कोयल से मधुर गान, फूलों से हँसना, मोर से नाचना सीखा ।  अपनी धुन में नीड़ बुनते पँछियों से दृढ़ निश्चय एवं  फूलों का रस चूसती मधुमक्खियों से श्रम साधना सीखा  । मानव ने दिन-रात अविराम चलती चींटियों व बहती नदिया से गतिशीलता की शिक्षा प्राप्त की । फलों से लदे वृक्षों को देखकर झुकने  और परोपकार करने  का भाव जागृत हुआ ।  हवाओं से चंचलता ,बादलों से गर्जना  , सूर्य, चन्द्रमा से समय का पाबन्द रहने  का संदेश लिया । हवा,पानी,मिटटी मिलकर एक बीज को वृक्ष बना देती हैं, प्रकृति सिद्ध करती है कि मिलकर प्रयास करने से असम्भव कार्य भी सम्भव हो सकते हैं । प्रकृति ने प्रेम को भी  परिभाषित किया है ।  फूलों से तितली की आसक्ति, वृक्ष से लिपटी लताएँ, समन्दर की और बेकरारी से बहती नदिया, अपने बच्चों को चोगा देते पंछी, हमेशा से मानव हृदय में प्रेम संवेदनाओं का संचार करते रहे हैं ।
  • मौसमी परिवर्तन जीवन के उतार-चढाव का परिचायक हैं । कीचड़ में खिले कमल से, विपदाओं में मुस्कुराने का हुनर प्रकृति ही सिखाती है । एक कली का उन्वेष्ण, वृक्ष  की डाली से सुकोमल पत्तियों का प्रादुर्भाव क्या किसी चमत्कार से कम है ? जीव देह के घाव अपने आप भरना क्या एक अद्भुत रहस्य नहीं ? हर क्षेत्र की भिन्न-भिन्न जलवायु, उसी अनुसार वहाँ उत्पन्न होने वाले फल, फूल और आनाज । प्रकृति के सौन्दर्य और शक्ति का कोई सानी नहीं । प्रकृति पग-पग चमत्कृत करती है । जिन मनुष्यों का प्रकृति से जितना गहरा नाता होगा वे उतने ही अधिक स्वस्थ  होंगे पर्वतीय इलाकों में रहने वाले लोगों का जीवन, मैदानी क्षेत्र में रहने वालों  की अपेक्षा बहुत सुनियोजित होता हैं । पहाड़ी लोग  धर्यवान, और ज्यादा ह्रष्ट -पुष्ट होते हैं । प्रकृति मनुष्य के मस्तिष्क पर सकारत्मक प्रभाव डालती है । चिड़ियों की चहचाहट , पत्तों की रुनझुन , फूलों की खुशबू , बारिश की छमछम जीवन में नई ताजगी भर देते हैं । इन्द्रधनुष के रंग, सात्विक उर्जा प्रदान करते है । अनेक कवियों ने प्रकृति सौन्दर्य पर मोहित होकर कविताएँ लिखी वहीं चित्रकारों ने  इसके रूप को कागज पर उतारा ।
  • वैज्ञानिक खोज में भी प्रकृति की अहम भूमिका  रही हैं । न्युटन का, बल व गति का नियम हो या गुरुत्वाकर्षण का नियम, बिजली के अविष्कारक थोमस एडिसन के प्रयोग आदि सभी प्रकृति की ही देन  हैं कुदरत के इस  सत्य को, मानव बहुत समय पहले जान चुका था, यही कारण है कि भारतीय प्राचीन  ग्रन्थों मे तुलसी, पीपल, नीम, केला, वट, आँवला आदि वृक्षों की पूजा और जल अर्पण करने का विधान है ताकि प्रकृति  फलती फूलती रहे । गंगा, यमुना, नर्मदा सरस्वती आदि नदियों के प्रति मानव की अगाध श्रद्धा रही है क्योंकि नदिया जिस क्षेत्र से प्रवाहित होती हैं, वह हमेशा खुशहाल और हरा भरा रहता है । शास्त्रों में गाय पृथ्वी और नदियों को माँ कहा गया है । गाय, नाग, बैल, आदि पशुओं की पूजा प्रकृति को सहेजने  के लिए आरम्भ की गई थी ताकि सृष्टि में समाजस्य स्थापित रहे । हमारे पूर्वजों ने प्रकृति को आस्था के साथ जोड़ दिया, जिससे मानव और प्रकृति का सम्बन्ध अधिक गहरा हो सके । पुरातन समय से मानव  जल, आग्नि ,पवन,आकाश, पृथ्वी तत्वों की आराधना करता आया है । शास्त्रीय तर्कानुसार मानवीय शरीर  का निर्माण इन्ही पंचतत्वों से  हुआ है । जब भी मानव को किसी व्यधि ने जकड़ा  तो उसका उपचार भी करुणामयी कुदरत ने अनेक जड़ी बूटियों द्वारा किया ।
  • सिन्धु घाटी, हड़प्पा संस्कृति और मोहनजोदड़ो सभ्यताओं की खुदाईयों से जो मूर्तियों और मोहरें मिली, उन पर पशुओं की आकृतियाँ चिन्हित हैं, यह इस बात के प्रमाण है कि मनुष्य युगों -युगों से प्रकृति की शक्ति  का उपासक रहा है ।
  • कुदरत ने  मनुष्य को अनेक  संसाधन दिए, जिससे मनुष्य जीवन बहुत सरल सुगम  होता गया । सौर उर्जा  से मानव ने  अपनी अभिलाषाओं की तृप्ति की, वही पानी, कोयले से बिजली निर्माण किया भाँप इंजन द्वारा यातायात को समृद्ध किया । पट्रोलियम पदार्थों के इस्तेमाल से मानव जीवन दिन प्रतिदिन विकसित  होता गया । प्रकृति ने  लोहा, ताबा, माणिक मोती आदि कीमती पदार्थ मनुष्य को वरदान के रूप में दिए ।  परन्तु इतना सब कुछ पाकर भी मनुष्य की प्यास बढती गई । अपनी असीमित कामनाओं की पूर्ति के लिए, मनुष्य ने प्रकृति से खिलवाड़ करना आरम्भ कर दिया ।  विकाश की चमक में अन्धा मनुष्य सभी जीव जन्तुओं की अनदेखी कर प्रकृति के संसाधनों पर अपना एकाधिकार समझने लगा ।अपनी जरूरतों के लिए मनुष्य  निरंतर जंगलों को काट पशु पक्षियों का बसेरा छीनने लगा, पानी में कारखानों का विष घोलता रहा, हवा को जहरीली बनाता रहा और उसके परिणाम उसे  अनेक बीमारियों के रूप में मिलते रहे । जीवों की अनेक प्रजातियाँ विलुप्त होने लगी  प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जब अपने चरम पर पहुँचा तब कुदरत का धर्य टूटने लगा । बार-बार ठोकर खाकर भी मानव अपने स्वार्थ के चक्रव्युह से नहीं निकल सका । भूमि का अतिक्रमण के कारण जंगल साफ होने लगे, उपजाऊ भूमि बंजर होती गई, प्रकृति बार-बार चेतवनी देने के लिए ओखी, हुदहुद जैसी आपदाएँ संदेश के रूप में भेजती रही । मनुष्य प्रकृति के इशारों को अनदेखा करता रहा । जब प्रकृति निरंतर बढती मानवीय इच्छाओं से क्रोधित हुई तब विनाशलीला रचने पर विवंश हो गई और भूस्न्खलन, ज्वालामुखी, च्रकवात हिमस्खलन,‎ महामारियों के रूप में क्रुद्ध हो ताण्डव करने लगी जब प्रकृति असंतुलित होने लगी तो कहीं बाढ़ कहीं सूखे की स्तिथि पैदा हो गई । यह दैवीय आपदाएँ मानव जाति के सम्पूर्ण अस्तित्ब को हिला कर रख गई । वन सम्पदा की रक्षा ,नर्मदा बचाओं, गंगा बचाओं आंदोलनों की आवश्कता पड़ने लगी ।  कुछ बुद्धिजीवियों ने कराहती हुई प्रकृति की आहें सुनी तो उत्तराखंड के कटते वनों की रक्षा के लिए चिपको आन्दोलन और दक्षिण भारत में अप्पिको आन्दोलन किए  जब मन्दाकिनी के रास्ते में अवरोध उत्पन्न हुआ तब केदारनाथ में लहरों ने  अपने प्रचंड रूप से उतराखंड में बहुत बड़ी तबाही की । यह सब तथ्य इस बात की और संकेत करते हैं  कि अगर प्रकृति के प्रति मानव सचेत नहीं हुआ तो उसे इससे भयानक परिणामों के लिए तैयार रहना होगा । प्रकृति से ही जीवन है ,जब मनुष्य इस सत्य को आत्मसात कर लेगा तो किसी आन्दोलन की आवश्यकता नहीं रहेगी ।
  • लेखिका -सुनीता काम्बोज
  • -०-