संहिता भौमाचाराध्यायः

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सहिंता " भौमाचाराध्यायः[संपादित करें]

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बृहत्संहिता आदित्य्दास के पुत्र श्री वराहमिहीर ने इस ग्रंथ की रव्ह्ना की है।ज्योतिष शास्त्र में सबसे प्रचीन्ताम ग्रंथ वेद है।वेद को ही अपौरुषेय कहते है।क्योकि स्वयं परमात्मा ने त्रिकालज्ञ महर्षीयो के द्वारा सृष्टि के आरम्भ मे इसे प्रकाशित किया।वेद पुरुष का नेत्ररूप होने के कारण ज्योतिष शास्त्र को सब अंगो मे उत्तम माना गया है।नेत्ररूप ज्योतिष शास्त्र के सिद्धान्त, गणित और फलित ये तीन स्कन्ध है।फलित स्कन्ध के मुख्य ५ भेद है।जातक, ताजिक ,मुहुर्त प्रश्न और संहिता इस विभाग मे संहिता नामक गृन्थ अनुपम है।गृंथ मे चाराध्याय का विशेष रूप से उल्लेख है।

भौमाचाराध्यायः

यघदुयक्षार्व्दकं करोति नवमाष्टसप्तमक्षेर्षु । तव्द्क्त्रमुष्णमुदये पीडाकरमग्निर्वातानाम ॥[1]

मंगल के पाँच मुख

  1. उष्णमुख
  2. अश्रुमुख
  3. व्यालमुख
  4. रुधिरानन मुख्
  5. असिमुसल वक्त्र मुख

१ उष्णमुख नामक मंगल : जिस नक्षत्र में मंगल का उदय हो उससे सप्तम ,अष्टम य नवम नक्षत्र मे जाकर यदि वक्री हो तो वह वक्री मंगल उष्णमुख कहलाता है। अग्नी से आजीविका करने वालो को इससे पीडा होति है।

२ अश्रुमुख मंगल : औदचिक नक्षत्र से दशमं, एकादश या व्दादश नक्षत्र मे मंगल वक्री हो वह अश्रुमुख कहलाता है।यह रोग मे वृद्धि करता है।

३ व्यालमुख मंगल : जिस नक्षत्र मे मंगल अस्त हो उससे तेरहवे या चौद्वे नक्षत्र मे जाकर वक्री हो तो वह वक्र व्यालमुख कहलाता है। इससे सर्प और मृग से पीडा होती है।

४ रुधिरानन मंगल : यदि अस्त कालिक नक्षत्र मे पन्दृहवे या सौलहवे नक्षत्र मे जाकर मंगल लौटता है तो वह मंगल रुधिरानन कहलाता है।इससे रोग,भय,सुभिक्ष होता है।

५ असिमुसल वक्त्र :यदि अस्त कालिक नक्षत्र से सत्रहवे या अठारवे नक्षत्र मे जाकर मंगल पीछे की तरफ लौटता है तो वह असिमुसल वक्त्र कहलाता है।इसमे चोरी से पीडा होती है।

यह पाँच प्रकार के मंगल मुख्य बताये गये है।

  1. पण्डित अच्युतानन्द, झा (२०१४). बृहत्संहिता. वाराणासी: चौखम्बा विद्याभवन. पृ॰ ५९.