संदीप सिंह राजनेता

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संदीप सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनेता हैं। अभी वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी के निजी सचिव हैं। संदीप सिंह एक छात्रनेता के तौर पर राजनीति में आए। एक दौर में वे भारत के तमाम कैम्पसों के विधार्थियों के चहेते बन गए। लोकप्रियता का आलम यह था कि छात्र राजनीति में तेज-तर्रार छात्र नेताओं को संदीप सिंह जैसे होने की संज्ञा दी जाती थी।

निजी जीवन[संपादित करें]

सन् 1982 यूपी  के प्रतापगढ़ ज़िले के एक छोटे से गाँव कोल बझान के एक सामान्य से किसान परिवार में संदीप सिंह का जन्म हुआ। पिता शिव शंकर सिंह सेना में थे, और 1962 के चीन के साथ संग्राम में युद्ध बंदी रहे। संदीप सिंह की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई, फिर वह आगे की पढ़ाई के लिए वह सुल्तानपुर राजकीय इंटर कॉलेज में दाख़िला ले लिये। स्नातक की पढ़ाई के लिए  संदीप सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इलाहाबाद के प्रतिष्ठित छात्रावास एएन झा के अंतवासी रहे। ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद संदीप सिंह ने जेएनयू में दर्शनशास्त्र की पढ़ाई के लिए दाख़िला लिया। यात्रा करना, फ़िल्म, दर्शन और साहित्य में संदीप सिंह की गहरी दिलचस्पी है।

राजनीतिक सफ़र और संघर्ष[संपादित करें]

संदीप सिंह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महासचिव व दो बार अध्यक्ष रहे हैं। छात्र राजनीति की शुरुआत उन्होंने वामपंथी छात्र संगठन से की और आगे चलकर आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई।

जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष रहते हुए संदीप सिंह ने संघर्ष और जुझारूपन का छात्र राजनीति में एक प्रतिमान स्थापित किया। जेएनयू, इलाहाबाद, लखनऊ और पटना विश्वविद्यालय में 'संदीप सिंह होना' एक मुहावरा बन गया था।

कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के लिए स्कॉलरशिप का संघर्ष[संपादित करें]

14 दिन की अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल, कई महीनों तक चले व्यापक धारावाहिक आंदोलन के बाद 2006-07 में MCM स्कॉलरशिप रू 600/माह से बढ़कर रू 1,500/माह हुई। एक साल बाद दुबारा आंदोलन के बाद रू 3,000 हुई। गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों को जेएनयू में पढ़कर आगे बढने का मौक़ा मिला। महीनों चले इस आंदोलन में विश्वविद्यालय प्रशासन ने संदीप को निलम्बित किया मगर छात्रों की अभूतपूर्व हड़ताल के दबाव में निलंबन वापस लेना पड़ा।

पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षण का आंदोलन[संपादित करें]

अर्जुन सिंह शिक्षा में 27% ओबीसी आरक्षण का क़ानून लेकर आए। आरक्षण विरोधी शक्तियों ने भयंकर विरोध शुरू किया। रातोंरात यूथ फ़ॉर इक्वॉलिटी (YFE) नाम का संगठन IIT, AIIMS, DU, JNU में बन गया। विदेशों से फ़ंडिंग आने लगी। नामी गिरामी चेहरे इसके मंच पर आकार बैठ गए। पीछे से RSS की पूरा सपोर्ट इसे मिल रहा था।

संदीप सिंह के अगुवाई में आरएसएस समर्थित यूथ फ़ॉर इक्वेलिटी को हराया गया। लगातर सीटों की कटौती की लड़ाई सप्रीम कोर्ट से जीती गई।

कर्मचारियों के हक़ की लड़ाई[संपादित करें]

कैंपस में काम करने वाले सफ़ाई कर्मचारी, मेहतर, माली, प्लंबर, बिजली कर्मचारी, मेस के रसोईये, हेल्पर- निजीकरण के दौर में धीरे धीरे ठेका कम्पनियों के हाथों की कठपुतली बन गए थे। किसी को न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती थी। संदीप सिंह के नेतृत्व में जेएनयू छात्र संघ ने मज़दूरों के संघर्ष का बीड़ा उठाया। भीषण आंदोलन में छात्रों ने चक्काजाम कर दिया। वाइस चांसलर ने संदीप सिंह को एक बार फिर कैंपस से निलम्बित कर दिया। मगर आंदोलन रुका नहीं। अंततः विश्वविद्यालय प्रशासन को झुकना पड़ा। और जेएनयू एक ऐसा विश्वविद्यालय बना जहां ठेके पर काम करने वाले हर कर्मचारी को न्यूनतम वेतन, PF व स्वास्थ्य कार्ड का अधिकार मिलने लगा।

मदरसा छात्रों के लिए 17 दिन की भूख हड़ताल[संपादित करें]

जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष रहते हुए संदीप सिंह ने तमाम मदरसों में तालीम हासिल करने वालों छात्रों की एक ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी। 2008 के पहले मदरसों से स्नातक स्तर तक की पढ़ाई करके आने वाले छात्रों को जेएनयू की प्रवेश परीक्षा में बैठने इजाज़त नहीं थी क्योंकि मदरसे की डिग्रियों को जेएनयू में मान्यता नहीं थी। जबकि  अन्य विश्वविद्यालयों में डिग्रियों को मान्यता थी। एक बड़ा आंदोलन शुरू हुआ। तमाम विद्वानों से चर्चा। देश भर  नामचीन मदरसों के दौरे। 17 दिनों की लंबी भूख हड़ताल बाद प्रशासन को झुकना पड़ा और तमाम प्रतिष्ठित मदरसों की डिग्री को जेएनयू में पहली बार मान्यता देने के लिए विवि प्रशासन बाध्य हुआ।

जेएनयू में दलितों-पिछड़े छात्रों के हिस्सेदारी और उच्च शिक्षा में होने वाले भेदभाव के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई संदीप सिंह ने किया।

छात्र आंदोलनों के चेहरा रहे हैं संदीप[संपादित करें]

उत्तर भारत के तमाम विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में छात्र संघ बैन होने पर उत्तर प्रदेश में छात्र आंदोलन तेज हुआ। इस आंदोलन में कई छात्र नेता विश्वविद्यालय और महाविधालयों में घूम घूम कर आंदोलन को धार दिए। संदीप सिंह उन छात्र नेताओं में प्रमुख भूमिका में रहे हैं जो इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे।

सिर्फ इतना ही नहीं कैम्पस के बाहर भी दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अकलियत समुदाय के खिलाफ होने वाले हर दमन और उत्पीड़न के खिलाफ झंडा बुलंद किया।

यूपी की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी के साथ काम करते हुए संदीप सिंह ने बड़ी अहम भूमिका अदा की। यूपी कांग्रेस के संगठन निर्माण की प्रक्रिया में संदीप सिंह एक रणनीतिकार के तौर पर अपनी अहम भूमिका अदा की है। हिमाचल प्रदेश की विधान सभा चुनाव की जीत में भी संदीप सिंह ने अपनी अहम भूमिका अदा की।