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व्यंजन संधि

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__________//Pradeep Kumar kasaudhan//_____________

किसी व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। अर्थात् जब पूर्वपद का अंतिम वर्ण व्यंजन वर्ण हो और उत्तरपद का आदि वर्ण स्वर वर्ण हो अथवा व्यंजन वर्ण, व्यंजन संधि होगी, व्यंजन वर्णों को प्रत्याहार शैली में हल् भी कहते हैं, क्योंकि यह माहेश्वर सूत्र में आये हयवरट् सूत्र के ह से शुरू होकर हल् सूत्र के अंतिम इत्संज्ञक वर्ण ल् के बीच के वर्णों की संज्ञा करता है।

उदाहरण
सत् + आचारः = सदाचारः ।
शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र
षट् + आनन = षडानन
जगत् + ईश = जगदीश

किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो, क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् ,प् को ब् , मे बदल दिया जाता है। जैसे -

क् + ग = ग्ग , जैसे दिक् + गज = दिग्गज ।
क् + ई = गी , जैसे वाक् + ईश = वागीश।
च् + अ = ज् , जैसे अच् + अंत = अजंत।
ट् + आ = डा , जैसे षट् + आनन = षडानन।
त् + भ=द् , जैसे सत् + भावना = सद्भावन
प् + ज= ब्ज , जैसे अप् + ज = अब्ज।
त् + धि= द्धि , जैसे सित् + धि = सिद्धि।

यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का आधा पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे -

क + म = ड़् (वाक् + मय = वाड़्मय या वाङ्मय )

च् + न = ञ् / ं (अच् + नाश = अञ्नाश)
ट् + म = ण् (षट् + मास = षण्मास)
त् + न = न् (उत् + नयन = उन्नयन)
प् + म् = म् (अप् + मय = अम्मय)

त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है। जैसे -

त् + भ = द्भ (सत् + भावना = सद्भावना)
त् + ई = दी (जगत् + ईश = जगदीश)
त् - भ = द्भ (भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति)
त् + र = द्र (तत् + रूप = तद्रूप)
त् + ध = द्ध (सत् + धर्म = सद्धर्म)

त् के बाद यदि च, या छ हो तो , त के स्थान पर च हो जाता है। जैसे -

त् + च = च्च उत् + चारण = उच्चारण
त् + ज = ज्ज सत् + जन = सज्जन
त् + झ = ज्झ उत् + झटिका = उज्झटिका
त् + ट = ट्ट तत् + टीका = तट्टीका
त् + ड = ड्ड उत् + डयन = उड्डयन
त् + ल = ल्ल उत् + लास = उल्लास

त् का मेल यदि श् से हो तो त् के स्थान पर च् और श् के स्थान पर छ् बन जाता है। जैसे -

(त् + श् = च्छ )उत् + श्वास = उच्छ्वास
(त् + श = च्छ) उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
(त् + श = च्छ) सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

त् का मेल यदि "ह्" से हो तो " त् के स्थान पर द् और ह् के स्थान पर ध् हो जाता है। जैसे -

(त् + ह = द्ध) उत् + हार = उद्धार
(त् + ह = द्ध) उत् + हरण = उद्धरण
(त् + ह = द्ध) तत् + हित = तद्धित

जब किसी ह्रस्व या दीर्घ स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। जैसे

लक्ष्मी +छाया = लक्ष्मीच्छाया

वि + छेद =विच्छेद

यदि म के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। जैसे

सम् + योग =संयोग

सम् + रक्षण =संरक्षण

म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। जैसे -

म् + म = म्म सम् + मति = सम्मति
म् + म = म्म सम् + मान = सम्मान

म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् अनुस्वार में बदल जाता है। जैसे -

(म् + य = ं) सम् + योग = संयोग
(म् + र = ं)सम् + रक्षण = संरक्षण
(म् + व = ं)सम् + विधान = संविधान
(म् + व = ंं) सम् + वाद = संवाद
(म् + श = ं )सम् + शय = संशय
(म् + ल = ं)सम् + लग्न = संलग्न
(म् + स = ं)सम् + सार = संसार

ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, ल, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। जैसे -

परि + नाम = परिणाम
प्र + मान = प्रमाण
ऋ+न=ऋण

यदि अ,आ' को छोड़कर किसी भी स्वर के आगे "स" आ जाए तो स के स्थान पर ष हो जाता है। जैसे -

भि + स् = ष अभि + सेक = अभिषेक
नि + सिद्ध = निषिद्ध
वि + सम = विषम
सु+सुप्त=सुषुप्त

ऋ , र , ष के बाद न आए तो इनके बीच में कोई स्वर क वर्ग का , प वर्ग का अनुश्वार य , व , ह , में से कोई वर्ण आए तो न के स्थान पर ण हो जाता है | जैसे की -

भर + अन = भरण

भुष + अन = भूषण

राम + अयन = रामायण

परि + मान = परिमाण

ऋ + न = ऋण

विसर्ग संधि

[संपादित करें]

विसर्ग ( ः ) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार (परिवर्तन) होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं।

उदाहरण:
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
मनः + रथः =मनोरथः

नियम (1): विसर्ग के पहले और बाद में ‘अ’ तथा पहले अ और इसके बाद वर्गों के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग "ओ" में परिवर्तन हो जाता है।

उदाहरण:
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
अधः + गति = अधोगति
मनः + बल = मनोबल

नियम (2): विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और इसके बाद में कोई स्वर हो तो , वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग "र" या "र्" में परिवर्तन हो जाता है।

उदाहरण:
निः + आहार = निराहार
निः + आशा = निराशा
निः + धन = निर्धन

नियम (3): विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श होने पर विसर्ग का "श्" में परिवर्तन हो जाता है।

उदाहरण:
निः + चल = निश्चल
निः + छल = निश्छल
दुः + शासन = दुश्शासन

नियम (4): त्, द् विसर्ग के बाद यदि त या स होने पर विसर्ग "स्" में परिवर्तन हो जाता है।

उदाहरण:
नमः + ते = नमस्ते
निः + संतान = निस्संतान
दुः + साहस = दुस्साहस

नियम (5): विसर्ग से पहले इ, उ और इसके बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग "ष्" में परिवर्तन हो जाता है।

उदाहरण:
निः + कलंक = निष्कलंक
चतुः + पाद = चतुष्पाद
निः + फल = निष्फल

नियम (6): विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लुप्त हो जाता है।

उदाहरण:
अतः + एव = अतएव
मनः + उच्छेद = मनुच्छेद
निः + रस = नीरस

नियम (7): विसर्ग के बाद क, ख, प या फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

उदाहरण:
अंतः + करण = अंतःकरण
अधः + पतन = अधःपतन
दुः + ख = दुःख