विश्वानर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

विश्वानर शिवपुराण में अंकित एक पात्र है, जो शतरुद्र संहिता के अध्याय 8-13 में वर्णित है।

परिचय[संपादित करें]

विश्वानर प्राचीन समय में नर्मदा नदी के किनारे स्थित नरमपुर नामक नगर में पैदा हुए थे। ये मुनि शांडिल्य गौत्र से थे,व शिवजी के परम भक्त थे।

कहानी[संपादित करें]

उनका विवाह शुचिष्मति नामक कन्या से हुआ था। विवाह के कई साल बाद उनकी पत्नी ने उनसे शिवजी समान पुत्र की अभिलाषा रखी। पत्नी की बात सुनकर विश्वानर क्षण भर के लिए स्तब्ध हो गए। वे सोचने लगे कि मेरी पत्नी ने यह कैसी बात कही है। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान पिनाकी रुद्र स्वयं उसकी जिह्वा पर बैठकर बोल रहे हैं। ऐसा विचार करके उन्होंने अपनी पत्नी को आश्वासन दे दिया, वे वाराणसी जा पहुंचे और कठिन तप द्वारा भगवान शंकर के वीरेश लिंग की उपासना करने लगे। तपस्या करते करते उन्हें लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया। उसकी आयु आठ वर्ष थी। उसके मस्तक पर पीले रंग की जटा सुशोभित थी तथा मुख पर मुस्कान खेल रही थी। उसके सर्वाग भस्मयुक्त थे तथा वह दिव्य बालक श्रुति-सूक्तों का पाठ कर रहा था।

उस बालक को देखकर विश्वानर मुनि रोमांचित हो उठे और अभीलाषा पूर्ण करने वाले आठ पद्यों द्वारा भगवान शिव की स्तुति करने लगे। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर बाल रूप भगवान शिव ने कहा – “महामते! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। अब तुम अपने घर जाओ। समय आने पर मैं तुम्हारी पत्नी की इच्छा अवश्य पूर्ण करूंगा। मैं उसके गर्भ से पुत्र रूप में प्रकट होऊंगा। उस अवतार में मेरा नाम गृहपति होगा। मैं परम पावन व सभी देवताओं का प्रिय होऊंगा।"

समय आने पर समस्त अभीष्टों के विनाशक तथा दोनों लोकों के लिए सुखदायक भगवान रुद्र का शुचिष्मती के गर्भ से अवतार हुआ।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

वैश्वानर

हिन्दी विश्वकोष[मृत कड़ियाँ]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

भारत डिसकवरी रहस्यमय

संदर्भ[संपादित करें]

1. संक्षिप्त शिवपुराण, गीताप्रेस गोरखपुर