"नादयोग": अवतरणों में अंतर

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[[संगीत]] के आचार्यों के अनुसार आकाशस्थ अग्नि और मरुत् के संयोग से नाद की उत्पत्ति हुई है। जहाँ प्राण (वायु) की स्थिति रहती है उसे ब्रह्मग्रंथि कहते हैं। संगीतदर्पण में लिखा है कि आत्मा के द्वारा प्रेरित होकर चित्त देहज अग्नि पर आघात करता है और अग्नि ब्रह्मग्रंधिकत प्राण को प्रेरित करती है। अग्नि द्वारा प्रेरित प्राण फिर ऊपर चढ़ने लगता है। नाभि में पहुँचकर वह अति सूक्ष्म हृदय में सूक्ष्म, गलदेश में पुष्ट, शीर्ष में अपुष्ट और मुख में कृत्रिम नाद उत्पन्न करता है। संगीत दामोदर में नाद तीन प्रकार का माना गया है—प्राणिभव, अप्राणिभव और उभयसंभव। जो सुख आदि अंगों से उत्पन्न किया जाता है वह प्राणिभव, जो वीणा आदि से निकलता है वह अप्राणिभव और जो बाँसुरी से निकाला जाता है वह उभय- संभव है। नाद के बिना गीत, स्वर, राग आदि कुछ भी संभव नहीं। ज्ञान भी उसके बिना नहीं हो सकता। अतः नाद परज्योति वा ब्रह्मरुप है और सारा जगत् नादात्मक है। इस दृष्टि से नाद दो प्रकार का है— आहत और अनाहत। अनाहत नाद को केवल योगी ही सुन सकते हैं। इठयोग दीपिका में लिखा है कि जिनको तत्वबोध न हो सके वे नादोपासना करें। अँतस्थ नाद सुनने के लिये चाहिए कि एकाग्रचित होकर शांतिपूर्वक आसन जमाकर बैठे। आँख, कान, नाक, मुँह सबका व्यापार बंद कर दे। अभ्यास की अवस्था में पहले तो मेघगर्जन, भेरी आदि की सी गंभीर ध्वनि सुनाई पडे़गी, फिर अभ्यास बढ़ जाने पर क्रमशः वह सूक्ष्म होती जायगी। इन नाना प्रकार की ध्वनियों में से जिसमें चित्त सबसे अधिक रमे उसी में रमावे। इस प्रकार करते करते नादरुपी ब्रह्म में चित्त लीन हो जायगा।
[[संगीत]] के आचार्यों के अनुसार आकाशस्थ अग्नि और मरुत् के संयोग से नाद की उत्पत्ति हुई है। जहाँ प्राण (वायु) की स्थिति रहती है उसे ब्रह्मग्रंथि कहते हैं। संगीतदर्पण में लिखा है कि आत्मा के द्वारा प्रेरित होकर चित्त देहज अग्नि पर आघात करता है और अग्नि ब्रह्मग्रंधिकत प्राण को प्रेरित करती है। अग्नि द्वारा प्रेरित प्राण फिर ऊपर चढ़ने लगता है। नाभि में पहुँचकर वह अति सूक्ष्म हृदय में सूक्ष्म, गलदेश में पुष्ट, शीर्ष में अपुष्ट और मुख में कृत्रिम नाद उत्पन्न करता है। संगीत दामोदर में नाद तीन प्रकार का माना गया है—प्राणिभव, अप्राणिभव और उभयसंभव। जो सुख आदि अंगों से उत्पन्न किया जाता है वह प्राणिभव, जो वीणा आदि से निकलता है वह अप्राणिभव और जो बाँसुरी से निकाला जाता है वह उभय- संभव है। नाद के बिना गीत, स्वर, राग आदि कुछ भी संभव नहीं। ज्ञान भी उसके बिना नहीं हो सकता। अतः नाद परज्योति वा ब्रह्मरुप है और सारा जगत् नादात्मक है। इस दृष्टि से नाद दो प्रकार का है— आहत और अनाहत। अनाहत नाद को केवल योगी ही सुन सकते हैं। इठयोग दीपिका में लिखा है कि जिनको तत्वबोध न हो सके वे नादोपासना करें। अँतस्थ नाद सुनने के लिये चाहिए कि एकाग्रचित होकर शांतिपूर्वक आसन जमाकर बैठे। आँख, कान, नाक, मुँह सबका व्यापार बंद कर दे। अभ्यास की अवस्था में पहले तो मेघगर्जन, भेरी आदि की सी गंभीर ध्वनि सुनाई पडे़गी, फिर अभ्यास बढ़ जाने पर क्रमशः वह सूक्ष्म होती जायगी। इन नाना प्रकार की ध्वनियों में से जिसमें चित्त सबसे अधिक रमे उसी में रमावे। इस प्रकार करते करते नादरुपी ब्रह्म में चित्त लीन हो जायगा।


'''''<u>नाद के प्रकार</u> :'''''


'''• आहत'''
'''नाद योग के प्रकार ? Type of nada yoga'''.


'''• अनाहत'''
* '''आनहत''' - ऐसी आवाज़ जो एकाग्र होने पर सुनाई दे, यह घट से आने वाली आवाज़ होती है जो नाद योग से सुनाई देती है ।
* '''आहत''' - जिसे पैदा किया जा सके, जैसे -चलने की आवाज़, कोई मशीन की आवाज़ आदि ।
* '''पारा''' - आध्यात्मिक आवाज़ जिसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है इसे उच्च चेतना की स्थिति में सुना जा सकता है ।
* '''पश्चियंती''' - यह बोद्धिक चेतना की आवाज़ होती है ।
* '''माध्यमा''' - यह सांस से उत्पन्न होने वाली ध्वनि होती है ।
* '''व्हीख़री''' - जो ध्वनि कानो से सुनाई देने योग्य होती है ।
* '''भजन''' - मन को एकाग्र करके दोनों आँखों के बीच सुरत को लगाना और घट से आने वाली आवाजों को सुनना, भजन कहलाता है ।


===== नाद योग के फायदे ? Benefits of nada yoga. =====

* '''चिंता और अवसाद कम करना''' - Nada yoga करने से मन एकाग्र होता है, जिस से मनुष्य को चिंता और अवसाद की  स्थिति में काफ़ी सहायता मिलती है ।
* '''यादाश्त बढ़ाना -''' जब मन को बार बार एक और लगाते है तब मनुष्य को यादाश्त बढ़ाने में मदद मिलती है इस अवस्था में नाद योग बहुत सहायक होता है ।
* इस माया रूपी संसार में जीते जी मालिक को पाना, ये सब योगियों द्वारा किया जाता है, संसार में ऐसे विरले ही होते है ।
* '''इम्युनिटी सिस्टम के लिए''' - नाद योग के ज़रिये इम्युनिटी सिस्टम बेहतर करने मे मदद मिलती है, और ब्लड सर्कुलर भी अच्छा रहता है ।
* '''ह्रदय के लिए''' - नाद योग करने से ह्रदय ठीक से काम करता है, इसके अलावा और भी कई बीमारियों में मदद मिलती है जैसे - ब्लड प्रेसर, अस्थमा आदि ।
* '''बेहतर नींद के लिए''' - नाद योग करने से, स्वास्थ्य ठीक रहता है, और नींद भी अच्छी आती है ।
* '''तनाव कम करने के लिए''' - नाद योग करने से मन शांत रहता है और तनाव कम होता है मनुष्य को क्रोध भी कम आता है । [https://www.sahitydrshan.com/2021/08/what-is-nada-yoga-in-hindi.html नाद योग कैसे करे ? Nada yoga kaise kare]. पर क्लिक करें ।
[[श्रेणी:योग]]
[[श्रेणी:योग]]

13:58, 6 अगस्त 2021 का अवतरण

नाद का शाब्दिक अर्थ है -1. शब्द, ध्वनि, आवाज।

संगीत के आचार्यों के अनुसार आकाशस्थ अग्नि और मरुत् के संयोग से नाद की उत्पत्ति हुई है। जहाँ प्राण (वायु) की स्थिति रहती है उसे ब्रह्मग्रंथि कहते हैं। संगीतदर्पण में लिखा है कि आत्मा के द्वारा प्रेरित होकर चित्त देहज अग्नि पर आघात करता है और अग्नि ब्रह्मग्रंधिकत प्राण को प्रेरित करती है। अग्नि द्वारा प्रेरित प्राण फिर ऊपर चढ़ने लगता है। नाभि में पहुँचकर वह अति सूक्ष्म हृदय में सूक्ष्म, गलदेश में पुष्ट, शीर्ष में अपुष्ट और मुख में कृत्रिम नाद उत्पन्न करता है। संगीत दामोदर में नाद तीन प्रकार का माना गया है—प्राणिभव, अप्राणिभव और उभयसंभव। जो सुख आदि अंगों से उत्पन्न किया जाता है वह प्राणिभव, जो वीणा आदि से निकलता है वह अप्राणिभव और जो बाँसुरी से निकाला जाता है वह उभय- संभव है। नाद के बिना गीत, स्वर, राग आदि कुछ भी संभव नहीं। ज्ञान भी उसके बिना नहीं हो सकता। अतः नाद परज्योति वा ब्रह्मरुप है और सारा जगत् नादात्मक है। इस दृष्टि से नाद दो प्रकार का है— आहत और अनाहत। अनाहत नाद को केवल योगी ही सुन सकते हैं। इठयोग दीपिका में लिखा है कि जिनको तत्वबोध न हो सके वे नादोपासना करें। अँतस्थ नाद सुनने के लिये चाहिए कि एकाग्रचित होकर शांतिपूर्वक आसन जमाकर बैठे। आँख, कान, नाक, मुँह सबका व्यापार बंद कर दे। अभ्यास की अवस्था में पहले तो मेघगर्जन, भेरी आदि की सी गंभीर ध्वनि सुनाई पडे़गी, फिर अभ्यास बढ़ जाने पर क्रमशः वह सूक्ष्म होती जायगी। इन नाना प्रकार की ध्वनियों में से जिसमें चित्त सबसे अधिक रमे उसी में रमावे। इस प्रकार करते करते नादरुपी ब्रह्म में चित्त लीन हो जायगा।

नाद के प्रकार :

• आहत

• अनाहत