"मेसोपोटामिया": अवतरणों में अंतर

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सिन्धु सभ्यता का काल-
सिन्धु सभ्यता का विस्तार एवं स्थल-
हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएँ-
नगर निर्माण -
सामाजिक जीवन -
आर्थिक जीवन -
कला का विकास -
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषतायें
नगर निर्माण एवं भवन निर्माण
सामाजिक जीवन-
आर्थिक जीवन
कला का विकास-
लिपि या लेखन कला
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इस सभ्यता के लिये साधरत: तीन नामो का प्रयोग होता है- सिन्धु सभ्यता, सिंधु घाटी की सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता। इन तीनों शब्दों को एक ही अर्थ है। इनमें से प्रत्येक शब्द की एक विशिष्ट पृष्ठभूमि है। प्रारंभ में 1921 में जब पश्चिमी पंजाब के हड़प्पा स्थल पर इस सभ्यता का पता चला है और अगले ही वर्ष एक अन्य प्रमुख स्थल मोजनजोदड़ो की खोज हुई, तब यह सोचा गया कि यह सभ्यता अनिवार्यत: सिन्धुघाटी तक सीमित थी। अत: इस सभ्यता का संकेत देने के लिए सिंधु घाटी की सभ्यता शब्दावली का प्रयोग शुरू हुआ। परंतु बाद के वर्षों के अनुसंधान से जब यह प्रमाणित हो गया कि यह सभ्यता स्वयं सिंधु घाटी की सीमाओ के पार दूर-दूर तक फैली थी (उदाहरण के लिये, यह पता चला कि यह सभ्यता राजस्थान, हरियाणा, पूर्वी पंजाब और गुजरात जैस इलाकों तक फैली थी) तब इस सभ्यता के सही-सही भौगोलिक विस्तार का संकेत देने के लिये शब्दावली अपर्याप्त सिद्ध हुई। अत: हड़प्पा स्थल के नाम पर जहाँ शुरू-शुरू में इस सभ्यता को पहचाना गया था। स्वयं इस सभ्यता का नामकरण कर दिया गया।

सिन्धु घाटी में मोहन जोदड़ो और हड़प्पा ताम्र कांस्युगीन सभ्यता के प्रमुख केन्द्र थे । हड़प्पा के अवशेष इस सभ्यता के प्रमुख केन्द्र थे । हड़प्पा के अवशेष इस सभ्यता के विकसित और परिष्कृत रूप को प्रकट करते है । परन्तु हड़प्पा संस्कृति का विकास अचानक तथा पृथक रूप से नहीं हुआ था । पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रदेश, बलूचिस्तान, सिन्ध एवं राजस्थान से प्राप्त अवशेषों से ज्ञात होता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के विकास के पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में एक ऐसी संस्कृति विद्यमान थी, जिसे हम सिन्धु घाटी सभ्यता की पूर्ववर्ती संस्कृति मान सकते है । इस संस्कृति को ‘प्राग हड़प्पा’ या पूर्व हड़प्पा या प्रारम्भिक हड़प्पा संस्कृति की संज्ञा दी गयी है । इस सभ्यता को हडप़्पा नाम इसलिये दिया गया क्योंकि इसके प्रथम अवशेष सन् 1921 में पश्चिम पजंाब के हड़प्पा क्षेत्र में पाये गये । दो प्रसिद्ध पुरातत्व शास्त्रियों राखलदास बनर्जी तथा दयाराम साहनी ने पंजाब के मान्टगोमरी जिले में स्थित हड़प्पा और सिन्ध के लरकाना जिले में स्थित जोदड़ो में इस सभ्यता के अवशेष खोजे ।



हड़प्पा वासी सुनियोजित नगरों में रहते थे और लेखन कला का विकास कर चुके थे । दुर्भाग्यवश हम अभी तक इस लिपि का अर्थ नहीं निकाल सके हैं । हड़प्पा सभ्यता के लोग कृषि और वस्तुकला के क्षेत्र में भी निपुण थे । सम्भवत: मेसोपोटामिया व पश्चिम एशिया के कुछ अन्य देशों के साथ उनके व्यापारिक संबंध थे । 2,5000 ई.पू. के लगभग मिश्र की नील नदी घाटी में, मेसौपोटामिया की टिंगरिस व यूफेंटीस नदी घाटी में, चीन की हंवागहो नदी घाटी में और भूमध्य सागर और एशियन सागर के सीमावर्ती क्षेत्रों में कई सभ्यताओं का विकास हुआ । लगभग इसी समय सिन्धु घाटी भी एक विकासशील सभ्यता का केन्द्र थी ।
सिन्धु सभ्यता का काल-
सिन्धु-सभ्यता काल के विषय में पर्याप्त मतभेद है । विभिन्न इतिहासकार उसका समय 2500 ई.पू. से 5000 ई.पू. तक निश्चित करते है । सर जॉन मार्शल इसे 500 ई.पू. की सभ्यता मानते है । हरिदत्त वेदालंकार इसका समय 3000 ई.पू. निर्धारित करते है । डॉं. राधा कुमुद मुकर्जी और श्री अर्नेस्ट मैके इस सभ्यता का समय 3250 ई.पू. से 2750 ई.पू. ठहराते है ।
सिन्धु सभ्यता का विस्तार एवं स्थल-
हड़प्पा सभ्यता के प्रारम्भिक स्थल सिन्धु क्षत्रे तक ही सीमित होने के कारण, उसे सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम दिया गया था । अनेकों स्थलों की खुदाई के बाद पता चलता है कि यह सभ्यता पंजाब, सिन्ध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों तक फैली थी । इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से, दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान तट से उत्तर पूर्व में मेरठ तक था ।

हड़प्पा सभ्यता

हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएँ-
नगर निर्माण -
नगर योजना
भवन निर्माण
सार्वजनिक भवन
विशाल स्नानागार
अन्न भण्डार
जल निकासी प्रणाली
सामाजिक जीवन -
भोजन
वस्त्र
आभूषण एवं सौदर्य प्रसाधन
मनोरंजन
प्रौद्योगिकी ज्ञान
मृतक कर्म
चिकित्सा विज्ञान
आर्थिक जीवन -
कृषि
पशुपालन
व्यापार
कुटीर उद्योग
माप-तौल, बाट
कला का विकास -
मूर्तिकला / प्रतिमायें
चित्रकला
मुद्रा कला
धातु कला
पात्र निर्माण कला
ताम्र पात्र निर्माण कला
वस्त्र निर्माण कला
नृत्य तथा संगीत कला
लेखन कला
धार्मिक जीवन -
मातृदेवी की उपासना
शिव या परम पुरूष की आराधना
वृक्ष और पशु पूजा
लिंग पूजा
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषतायें
नगर निर्माण एवं भवन निर्माण
याजेनाबद्ध नगरों एवं भवनों का निर्माण इस सभ्यता की सर्वश्रेष्ठ विशेषता थी । सभी प्रमुख नगर जिनमे हड़प्पा मोहन जोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल तथा कालीबंगा सभी प्रमुख नगर नदियों के तट पर बसे थे इन नगरों में सुरक्षा के लिये चारो ओर परकोटा दीवार का निर्माण कराया जाता था । प्रत्येक नगर में चौड़ी एवं लम्बी सड़के थी, चौड़ी सड़के एक दूसरें शहरों को जोड़ती थी । सिन्धु घाटी सभ्यता में कच्चे पक्के, छोटे बड़े सभी प्रकार के भवनों के अवशेष मिले है । भवन निर्माण में सिन्धु सभ्यता के लोग दक्ष थे । इसकी जानकारी प्राप्त भवनावशेषों से होती है । इनके द्वारा निर्मित मकानो में सुख-सुविधा की पूर्ण व्यवस्था थी । भवनों का निर्माण भी सुनियोजित ढंग से किया जाता था । प्रकाश व्यवस्था के लिये रोशनदान एवं खिड़कियां भी बनाई जाती थी । रसोई घर, स्नानगृह, आंगन एवं भवन कई मंजिल के होते थे । दीवार ईटो से बनाई जाती थी । भवनो, घरों में कुंये भी बनाये जाते थे । लोथल में ईटो से बना एक हौज मिला है ।
विशाल स्नानागार
मोहन जादे ड़ो में उत्खनन से एक विशाल स्नानागार मिला जो अत्यन्त भव्य है । स्नानकुण्ड से बाहर जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी । समय-समय पर जलाशय की सफाई की जाती थी । स्नानागार के निर्माण के लिये उच्च कोटि की सामग्री का प्रयोग किया गया था, इस कारण आज भी 5000 वर्ष बीत जाने के बाद उसका अस्तित्व विद्यमान है ।
अन्न भण्डार
हड़प्पा नगर के उत्खनन में यहां के किले के राजमार्ग में दानेो ओर 6-6 की पक्तियॉं वाले अन्न भण्डार के अवशेष मिले है, अन्न भण्डार की लम्बाई 18 मीटर व चौड़ाई 7 मीटर थी । इसका मुख्य द्वार नदी की ओर खुलता था, ऐसा लगता था कि जलमार्ग से अन्न लाकर यहां एकत्रित किया जाता था । सम्भवत: उस समय इस प्रकार के विशाल अन्न भण्डार ही राजकीय कोषागार के मुख्य रूप थे ।
जल निकास प्रणाली
सिन्धु घाटी की जल निकास की याजे ना अत्यधिक उच्च कोटि की थी । नगर में नालियों का जाल बिछा हुआ था सड़क और गलियों के दोनो ओर ईटो की पक्की नालियॉ बनी हुई थी । मकानों की नालियॉं सड़को या गलियों की नालियों से मिल जाती थी । नालियों को ईटो और पत्थरों से ढकने की भी व्यवस्था थी । इन्हें साफ करने स्थान-स्थान पर गड्ढ़े या नलकूप बने हुये थे । इस मलकूपों में कूडा करकट जमा हो जाता था और नालियों का प्रवाह अवरूद्ध नहीं होता था । नालियों के मोडो और संगम पर ईटो का प्रयोग होता था ।
सामाजिक जीवन-
हड़प्पा जैसी विकसित सभ्यता एक मजबतू कृषि ढांचे पर ही पनप सकती थी । हड़प्पा के किसान नगर की दीवारों के समीप नदी के पास मैदानों में रहते थे । यह शिल्पकारों, व्यापारियों और अन्य शहर में रहने वालों के लिए अतिरिक्त अन्न पैदा करते थे । कृषि के अलावा ये लोग बहुत सी अन्य कलाओं में भी विशेष रूप से निपुण थे । घरों के आकारों में भिन्नता को देखते हुए कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पा समाज वर्गो में बंटा था ।
भोजन
हड़प्पा संस्कृति के लागे भोजन के रूप में गेहॅूं, चावल, तिल, मटर आदि का उपयोग करते थे । लोग मांसाहारी भी थे । विभिन्न जानवरों का शिकार कर रखते थे । फलो का प्रयोग भी करते थे । खुदाई से बहुत सारे ऐसे बर्तन मिले है, जिनसे आकार एवं प्रकार से खाद्य व पेय सामग्रियों की विविधता का पता लगता है । पीसने के लिये चक्की का प्रयोग करते थे ।
वस्त्र
सिन्धु घाटी के निवासियों की वेष भूषा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि महिलायें घाघरा साड़ी एवं पुरूष धोती एवं पगड़ी का प्रयोग करते थे । स्वयं हाथ से धागा बुनकर वस्त्र बनाते थे।
आभूषण एवं सौदर्य प्र्साधन:-
स्त्री, पुरूष दोनो आभूषण धारण करते थे । आभषूणों में हार कंगन, अंगूठी, कर्णफूल, भुजबन्ध, हंसली, कडे, करधनी, पायजेब आदि विशेष उल्लेखनीय है । कई लड़ी वाली करधनी और हार भी मिले है । आभूषण सोने, चॉदी, पीतल, तांबा, हाथी दांत, हड्डियों और पक्की मिट्टी के बने होते है । अमीर बहुमूल्य धातुओं और जवाहरातों के आभूषण धारण करते थे । स्त्री पुरूष दोनो श्रृंगार प्रेमी थे धातु एवं हाथी दांत की कंघी एवं आइना का प्रयोग करते थे । केश विन्यास उत्तम प्रकार का था खुदाई से काजल लगाने की एवं होठों को रंगने के अनेक छोटे-छोटे पात्र मिले हैं ।


हड़प्पा संस्कृति के आभूषण





मनोरंजन
सिन्धु सभ्यता के लोग मनोरजं न के लिये विविध कलाओं का प्रयोग करते थे जानवरों की दौड़ शतरंज खेलते थे, नृत्यगंना की मूर्ति हमें हड़प्पा संस्कृति में नाच गाने के प्रचलन को बताती है । मिट्टी एवं पत्थर के पांसे मिले है ।
प्रौद्योगिकी ज्ञान
सिन्धु सभ्यता के लोगों का भवन निर्माण, विशाल अन्न भण्डार जल निकासी व्यवस्था, सड़क व्यवस्था देखकर उनकी तकनीकी ज्ञान बहुत रहा होगा, ऐसा अनुमान लगाया जाता है, वे मिश्रित धातु बनाना जानते थे, उनकी मूर्तियॉं एवं आभूषण बहुत खुबसूरत थे।
मृतक कर्म
इस काल में भी शवों के जमीन में दफनाया जाता था । शवों के साथ पुरा पाषाण काल के समान भोजन, हथियार, गृह-पात्र तथा अन्य उपयोगी वस्तुएँ भी साथ में रख दी जाती थी । मृतकों की कब्रों के ऊपर बड़े-बड़े पत्थर भी रख दिये जाते थे, जिनको रखने का मुख्य उद्देश्य मृतकों को सम्मान देना था । कुछ स्थलों पर शवो को जलाने की प्रथा का भी प्रचलन हो गया था । जब शव जल जाता था तो उसकी राख को मिट्टी के बने घड़ों में रखकर सम्मान के साथ जमीन में गाड़ दिया जाता था ।
चिकित्सा विज्ञान
सिन्धु सभ्यता के निवासी विभिन्न औषधियों से परिचित थे, तथा हिरण, बारहसिंघे के सीगों, नीम की पत्तीयों एवे शिलाजीत का औषधियों की तरह प्रयोग करते थे, उल्लेखनीय है कि सिन्धु सभ्यता में खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के उदाहरण भी काली, बंगा एवं लोथल से प्राप्त होते है । समुद्र फेन (झाग) भी औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता था।
आर्थिक जीवन
कृषि
हड़प्पा युग में सिन्धु नदी में बाढ़ आती थी जाे भूमि को और अधिक उपजाऊ बना देती थी । सिन्धु घाटी के लोग बाढ़ से उपजाऊ भूमि में नवम्बर के महीने में गेहू और जौ की बोआइर् करते थे आरै अपनी फसल अपै्रल के महीने में बाढ़ आने के पहले काट लते थे । खोदाई में कोई हल या फावड़ा नहीं मिला है, किन्तु कालीबंगन में पूर्व हड़प्पा अवधि के खेती बाड़ी के लिए उपयुक्त खेतों के अवशेष मिले है । खेत में समकोण पर बनी क्यारियां मिली है जिससे पता चलता है कि खेत में एक समय में दो फसलें लगाना सम्भव था । सम्भवत: हड़प्पा के लोग लकड़ी के बने हल का उपयोग करते थे । इस के प्रमाण नहीं है कि हल को मानव या बैल खींचता था । शायद पत्थर की दराती से फसलें काटी जाती थी । ऐसा प्रतीत होता है कि नहरों द्वारा सिंचाई का प्रचलन नहीं था । हड़प्पा की मुख्य फसलें थी गेहूं, जौ, कपास, तिल । इनका भण्डारण विशाल धान्य कोठरियों में किया जता था । बाढ़ के पानी का उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए किया जाता था ।
पशुपालन
अन्य प्रमुख व्यवसाय पशुपालन का था । बैल, गाय, सूअर तथा कुत्ताे के अस्थि-पंजर प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुए है । अत: वे पशु अवश्य पालते थे । गाय और भैंस का दूध प्रयोग किया जाता था ।
व्यापार
इस घाटी के निवासी आन्तरिक तथा विदेशी दानेाे प्रकार के व्यापार करते थे सोना कोलार तथा अनन्तपुर की खानों से आता था । कुछ विद्वानों के अनुसार चांदी और रांगा अफगानिस्तान से आयात किये जाते थे । तांबा और सीसा राजपूताना, बिलोचिस्तान और ईरान से मंगाया जाता था ।
कुटीर उद्योग
प्रमुखत: कुम्हारों के द्वारा चाक से निर्मित मिट्टी की मूिर्तयां, खिलौने, बर्तनों के अतिरिक्त ईटो का बड़े पैमाने पर निर्माण किया जाता था । चांदी के कलश पर सूत पर लिपटा हुआ कपड़ा मिला है जिससे यह ज्ञात होता है कि यहां के निवासी सूत कातने आरै कपडा़ बुनने का व्यवसाय भी करते थे । कुछ मिटटी की तकलियां प्राप्त हुई है । ऊनी वस्त्र भी बुनकर तैयार किये जाते थे । कुम्हार विभिन्न मिट्टी की वस्तुएँ तैयार करके अपनी जीविका चलाते थे । खिलौनों, मूर्तियों, कटोरियों, प्यालियों, मटकों का निर्माण किया जाता था । सीप तथा हाथीदांत के आभूषण तैयार होते थे ।
मापतौल बाट
तालै के लिए तराजू व बाट प्रचलित थे । नापने के लिये स्केल का प्रयोग करते थे जो सीप का बना होता था । चिकने पत्थरों से बाट बनाया जाता था । कई ऐसे पत्थर प्राप्त हुये जिनसे पता चलता है कि ढाव उसके गुणओं का प्रयोग होता था ।
कला का विकास-
मूर्तिकला या प्रतिमाएं
हडप़्पा सभ्यता के लोग धातु की सुन्दर प्रतिमाएं बनाते थे । इनका सबसे सुन्दर नमूना कांसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति है । खुदाई में सेलखड़ी की बनी एक दाढ़ी वाले पुरूष की एक अर्ध प्रतिमा प्राप्त हुई है । उस के बांये कन्धे से दांये हाथ के नीचे तक एक अलंकृत दुशाला और माथे पर सरबन्ध है । पत्थर की बनी हुई दो पुरूषों की प्रतिमाए हड़प्पा की लघु मूर्तिकला का उदाहरण है ।
चित्रकला
अनेक बर्तनों तथा मोहरो पर बने चित्रों से ज्ञात होता है कि सिन्धु घाटी के लोग चित्रकला में अत्यधिक प्रवीण थे । मुहरो पर सांडो और भैंसो की सर्वाधिक कलापूर्ण ढंग से चित्रकारी की गई है । वृक्षों के भी चित्र बनाये गये है ।
मुद्रा कला
हड़प्पा की खुदाई में विभिन्न प्रकार की मुद्रायें मिली है ये मुद्रायें वर्गाकार आकृति की है जिन पर एक ओर पशुओं के चित्र बने है तथा दूसरी ओर लेख है । ये हांथी दांत व मिट्टी के लगभग 3600 मुहरे प्राप्त हुई है ।
धातु कला
सिन्धु सभ्यता की कलाओं में धातु कला जिसमें विशेष स्वर्ण कला का उल्लेख मिलता है । यहां के सोनारों द्वारा गलाई, ढलाई, नक्कासी जोड़ने आदि का कार्य किया जाता था । सिन्धु काल की कलाकृतियां इतनी विलक्षण और मनोहर है कि ऐसी कारीगरी पर आज का सुनार भी गर्व कर सकता है ।
पात्र निर्माण कला
खुदाई में अनेक ताम्र एवं मिट्टी के पात्र मिले है जो बहुत सुन्दर एवं उच्च कोटि के है यह वर्गाकार, आयताकार, गोलाकार में मिले है । ये पानी भरने एवं अनाज रखने के काम आते थे ।
ताम्र्रपात्र निर्माण कला
खुदाई में अनेक ताबें के पात्र मिले है ये वर्गाकार, आयताकार में है जिसमें चित्रकारी है ।
वस्त्र निर्माण कला
सिन्धु सभ्यता की खुदाई की गइर् तो तकलियॉ प्राप्त हुई है जिनसे सूत कातने के काम में भी यहां के निवासी निपुण थे ।
नृत्य तथा संगीत कला
इस बात के भी प्रमाण हैं कि सिन्धुवासी नृत्य तथा संगीत से परिचित थे । पहले हम कांसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति का उल्लेख कर आये है । इससे स्पष्ट है कि सिन्धु प्रदेश में नृत्य कला का प्रचार था । इस मूर्ति की भावभंगिमा वैसी ही हृदयग्राही है जैसी कि ऐतिहासिक युग की मूर्तियों में देखने को मिलती है । बर्तनों पर कुछ ऐसे चित्र मिले हैं जो ढोल और तबले से मिलते-जुलते हैं । अनुमान है कि सिन्धुवासी वाद्ययन्त्र भी बनाना जानते थे ।





लिपि या लेखन कला
मेसोपोटामिया के निवासियों की तरह हड़प्पा वासियों ने भी लेखन कला का विकास किया । यद्यपि इस लिपि के पहले नमूने 1853 में प्राप्त हुये थे पर अभी तक विद्वान इसका अर्थ नहीं निकाल पाए हैं । कुछ विद्वानों ने तो इसे पढ़ने के लिए कम्प्यूटर का भी उपयोग किया पर वह भी असफल हैं । इस लिपि का द्रविड़, संस्कृत या सुमेर की भाषाओं से संबंध स्थापित करने के प्रयत्नों का भी कोई संतोषजनक परिणाम नहीं निकला है । हड़प्पा की लिपि को चित्र लिपि माना जाता है । इस लिपि में हर अक्षर एक चित्र के रूप में किसी ध्वनी, विचार या वस्तु का प्रतीक होता है । लगभग 400 ऐसे चित्रलेख देखने में आये हैं। यह लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है अत: हम हड़प्पा संस्कृति के साहित्य, विचारों या शासन व्यवस्था के विषय में अधिक नहीं कह सकते हैं । पढ़ना व लिखना शायद एक वर्ग तक सीमित था ।

हड़प्पा अभिलेख
हड़प्पा अभिलेख
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11:02, 26 मार्च 2019 का अवतरण

मेसोपोटामिया के विस्तार को दर्शाता मानचित्र

मेसोपोटामिया का यूनानी अर्थ है "दो नदियों के बीच"। यह इलाका दजला (टिगरिस) और फ़ुरात (इयुफ़्रेटीस) नदियों के बीच के क्षेत्र में पड़ता है। इसमें आधुनिक इराक़ बाबिल ज़िला, उत्तरपूर्वी सीरिया, दक्षिणपूर्वी तुर्की तथा ईरान का क़ुज़ेस्तान प्रांत के क्षेत्र शामिल हैं। यह कांस्ययुगीन सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है। यहाँ सुमेर, अक्कदी सभ्यता, बेबीलोन तथा असीरिया के साम्राज्य अलग-अलग समय में स्थापित हुए थे। हड़प्पा सभ्यता में मेसोपोटामिया को 'मेलुहा' कहा गया है।

सन्दर्भ

सिन्धु सभ्यता का काल- सिन्धु सभ्यता का विस्तार एवं स्थल- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएँ- नगर निर्माण - सामाजिक जीवन - आर्थिक जीवन - कला का विकास - सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषतायें नगर निर्माण एवं भवन निर्माण सामाजिक जीवन- आर्थिक जीवन कला का विकास- लिपि या लेखन कला Related Posts Comments


इस सभ्यता के लिये साधरत: तीन नामो का प्रयोग होता है- सिन्धु सभ्यता, सिंधु घाटी की सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता। इन तीनों शब्दों को एक ही अर्थ है। इनमें से प्रत्येक शब्द की एक विशिष्ट पृष्ठभूमि है। प्रारंभ में 1921 में जब पश्चिमी पंजाब के हड़प्पा स्थल पर इस सभ्यता का पता चला है और अगले ही वर्ष एक अन्य प्रमुख स्थल मोजनजोदड़ो की खोज हुई, तब यह सोचा गया कि यह सभ्यता अनिवार्यत: सिन्धुघाटी तक सीमित थी। अत: इस सभ्यता का संकेत देने के लिए सिंधु घाटी की सभ्यता शब्दावली का प्रयोग शुरू हुआ। परंतु बाद के वर्षों के अनुसंधान से जब यह प्रमाणित हो गया कि यह सभ्यता स्वयं सिंधु घाटी की सीमाओ के पार दूर-दूर तक फैली थी (उदाहरण के लिये, यह पता चला कि यह सभ्यता राजस्थान, हरियाणा, पूर्वी पंजाब और गुजरात जैस इलाकों तक फैली थी) तब इस सभ्यता के सही-सही भौगोलिक विस्तार का संकेत देने के लिये शब्दावली अपर्याप्त सिद्ध हुई। अत: हड़प्पा स्थल के नाम पर जहाँ शुरू-शुरू में इस सभ्यता को पहचाना गया था। स्वयं इस सभ्यता का नामकरण कर दिया गया।

सिन्धु घाटी में मोहन जोदड़ो और हड़प्पा ताम्र कांस्युगीन सभ्यता के प्रमुख केन्द्र थे । हड़प्पा के अवशेष इस सभ्यता के प्रमुख केन्द्र थे । हड़प्पा के अवशेष इस सभ्यता के विकसित और परिष्कृत रूप को प्रकट करते है । परन्तु हड़प्पा संस्कृति का विकास अचानक तथा पृथक रूप से नहीं हुआ था । पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रदेश, बलूचिस्तान, सिन्ध एवं राजस्थान से प्राप्त अवशेषों से ज्ञात होता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के विकास के पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में एक ऐसी संस्कृति विद्यमान थी, जिसे हम सिन्धु घाटी सभ्यता की पूर्ववर्ती संस्कृति मान सकते है । इस संस्कृति को ‘प्राग हड़प्पा’ या पूर्व हड़प्पा या प्रारम्भिक हड़प्पा संस्कृति की संज्ञा दी गयी है । इस सभ्यता को हडप़्पा नाम इसलिये दिया गया क्योंकि इसके प्रथम अवशेष सन् 1921 में पश्चिम पजंाब के हड़प्पा क्षेत्र में पाये गये । दो प्रसिद्ध पुरातत्व शास्त्रियों राखलदास बनर्जी तथा दयाराम साहनी ने पंजाब के मान्टगोमरी जिले में स्थित हड़प्पा और सिन्ध के लरकाना जिले में स्थित जोदड़ो में इस सभ्यता के अवशेष खोजे ।



हड़प्पा वासी सुनियोजित नगरों में रहते थे और लेखन कला का विकास कर चुके थे । दुर्भाग्यवश हम अभी तक इस लिपि का अर्थ नहीं निकाल सके हैं । हड़प्पा सभ्यता के लोग कृषि और वस्तुकला के क्षेत्र में भी निपुण थे । सम्भवत: मेसोपोटामिया व पश्चिम एशिया के कुछ अन्य देशों के साथ उनके व्यापारिक संबंध थे । 2,5000 ई.पू. के लगभग मिश्र की नील नदी घाटी में, मेसौपोटामिया की टिंगरिस व यूफेंटीस नदी घाटी में, चीन की हंवागहो नदी घाटी में और भूमध्य सागर और एशियन सागर के सीमावर्ती क्षेत्रों में कई सभ्यताओं का विकास हुआ । लगभग इसी समय सिन्धु घाटी भी एक विकासशील सभ्यता का केन्द्र थी । सिन्धु सभ्यता का काल- सिन्धु-सभ्यता काल के विषय में पर्याप्त मतभेद है । विभिन्न इतिहासकार उसका समय 2500 ई.पू. से 5000 ई.पू. तक निश्चित करते है । सर जॉन मार्शल इसे 500 ई.पू. की सभ्यता मानते है । हरिदत्त वेदालंकार इसका समय 3000 ई.पू. निर्धारित करते है । डॉं. राधा कुमुद मुकर्जी और श्री अर्नेस्ट मैके इस सभ्यता का समय 3250 ई.पू. से 2750 ई.पू. ठहराते है । सिन्धु सभ्यता का विस्तार एवं स्थल- हड़प्पा सभ्यता के प्रारम्भिक स्थल सिन्धु क्षत्रे तक ही सीमित होने के कारण, उसे सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम दिया गया था । अनेकों स्थलों की खुदाई के बाद पता चलता है कि यह सभ्यता पंजाब, सिन्ध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों तक फैली थी । इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से, दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान तट से उत्तर पूर्व में मेरठ तक था ।

हड़प्पा सभ्यता

हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएँ- नगर निर्माण - नगर योजना भवन निर्माण सार्वजनिक भवन विशाल स्नानागार अन्न भण्डार जल निकासी प्रणाली सामाजिक जीवन - भोजन वस्त्र आभूषण एवं सौदर्य प्रसाधन मनोरंजन प्रौद्योगिकी ज्ञान मृतक कर्म चिकित्सा विज्ञान आर्थिक जीवन - कृषि पशुपालन व्यापार कुटीर उद्योग माप-तौल, बाट कला का विकास - मूर्तिकला / प्रतिमायें चित्रकला मुद्रा कला धातु कला पात्र निर्माण कला ताम्र पात्र निर्माण कला वस्त्र निर्माण कला नृत्य तथा संगीत कला लेखन कला धार्मिक जीवन - मातृदेवी की उपासना शिव या परम पुरूष की आराधना

वृक्ष और पशु पूजा

लिंग पूजा सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषतायें नगर निर्माण एवं भवन निर्माण याजेनाबद्ध नगरों एवं भवनों का निर्माण इस सभ्यता की सर्वश्रेष्ठ विशेषता थी । सभी प्रमुख नगर जिनमे हड़प्पा मोहन जोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल तथा कालीबंगा सभी प्रमुख नगर नदियों के तट पर बसे थे इन नगरों में सुरक्षा के लिये चारो ओर परकोटा दीवार का निर्माण कराया जाता था । प्रत्येक नगर में चौड़ी एवं लम्बी सड़के थी, चौड़ी सड़के एक दूसरें शहरों को जोड़ती थी । सिन्धु घाटी सभ्यता में कच्चे पक्के, छोटे बड़े सभी प्रकार के भवनों के अवशेष मिले है । भवन निर्माण में सिन्धु सभ्यता के लोग दक्ष थे । इसकी जानकारी प्राप्त भवनावशेषों से होती है । इनके द्वारा निर्मित मकानो में सुख-सुविधा की पूर्ण व्यवस्था थी । भवनों का निर्माण भी सुनियोजित ढंग से किया जाता था । प्रकाश व्यवस्था के लिये रोशनदान एवं खिड़कियां भी बनाई जाती थी । रसोई घर, स्नानगृह, आंगन एवं भवन कई मंजिल के होते थे । दीवार ईटो से बनाई जाती थी । भवनो, घरों में कुंये भी बनाये जाते थे । लोथल में ईटो से बना एक हौज मिला है । विशाल स्नानागार मोहन जादे ड़ो में उत्खनन से एक विशाल स्नानागार मिला जो अत्यन्त भव्य है । स्नानकुण्ड से बाहर जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी । समय-समय पर जलाशय की सफाई की जाती थी । स्नानागार के निर्माण के लिये उच्च कोटि की सामग्री का प्रयोग किया गया था, इस कारण आज भी 5000 वर्ष बीत जाने के बाद उसका अस्तित्व विद्यमान है । अन्न भण्डार हड़प्पा नगर के उत्खनन में यहां के किले के राजमार्ग में दानेो ओर 6-6 की पक्तियॉं वाले अन्न भण्डार के अवशेष मिले है, अन्न भण्डार की लम्बाई 18 मीटर व चौड़ाई 7 मीटर थी । इसका मुख्य द्वार नदी की ओर खुलता था, ऐसा लगता था कि जलमार्ग से अन्न लाकर यहां एकत्रित किया जाता था । सम्भवत: उस समय इस प्रकार के विशाल अन्न भण्डार ही राजकीय कोषागार के मुख्य रूप थे । जल निकास प्रणाली सिन्धु घाटी की जल निकास की याजे ना अत्यधिक उच्च कोटि की थी । नगर में नालियों का जाल बिछा हुआ था सड़क और गलियों के दोनो ओर ईटो की पक्की नालियॉ बनी हुई थी । मकानों की नालियॉं सड़को या गलियों की नालियों से मिल जाती थी । नालियों को ईटो और पत्थरों से ढकने की भी व्यवस्था थी । इन्हें साफ करने स्थान-स्थान पर गड्ढ़े या नलकूप बने हुये थे । इस मलकूपों में कूडा करकट जमा हो जाता था और नालियों का प्रवाह अवरूद्ध नहीं होता था । नालियों के मोडो और संगम पर ईटो का प्रयोग होता था । सामाजिक जीवन- हड़प्पा जैसी विकसित सभ्यता एक मजबतू कृषि ढांचे पर ही पनप सकती थी । हड़प्पा के किसान नगर की दीवारों के समीप नदी के पास मैदानों में रहते थे । यह शिल्पकारों, व्यापारियों और अन्य शहर में रहने वालों के लिए अतिरिक्त अन्न पैदा करते थे । कृषि के अलावा ये लोग बहुत सी अन्य कलाओं में भी विशेष रूप से निपुण थे । घरों के आकारों में भिन्नता को देखते हुए कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पा समाज वर्गो में बंटा था । भोजन हड़प्पा संस्कृति के लागे भोजन के रूप में गेहॅूं, चावल, तिल, मटर आदि का उपयोग करते थे । लोग मांसाहारी भी थे । विभिन्न जानवरों का शिकार कर रखते थे । फलो का प्रयोग भी करते थे । खुदाई से बहुत सारे ऐसे बर्तन मिले है, जिनसे आकार एवं प्रकार से खाद्य व पेय सामग्रियों की विविधता का पता लगता है । पीसने के लिये चक्की का प्रयोग करते थे । वस्त्र सिन्धु घाटी के निवासियों की वेष भूषा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि महिलायें घाघरा साड़ी एवं पुरूष धोती एवं पगड़ी का प्रयोग करते थे । स्वयं हाथ से धागा बुनकर वस्त्र बनाते थे। आभूषण एवं सौदर्य प्र्साधन:- स्त्री, पुरूष दोनो आभूषण धारण करते थे । आभषूणों में हार कंगन, अंगूठी, कर्णफूल, भुजबन्ध, हंसली, कडे, करधनी, पायजेब आदि विशेष उल्लेखनीय है । कई लड़ी वाली करधनी और हार भी मिले है । आभूषण सोने, चॉदी, पीतल, तांबा, हाथी दांत, हड्डियों और पक्की मिट्टी के बने होते है । अमीर बहुमूल्य धातुओं और जवाहरातों के आभूषण धारण करते थे । स्त्री पुरूष दोनो श्रृंगार प्रेमी थे धातु एवं हाथी दांत की कंघी एवं आइना का प्रयोग करते थे । केश विन्यास उत्तम प्रकार का था खुदाई से काजल लगाने की एवं होठों को रंगने के अनेक छोटे-छोटे पात्र मिले हैं ।


हड़प्पा संस्कृति के आभूषण




मनोरंजन सिन्धु सभ्यता के लोग मनोरजं न के लिये विविध कलाओं का प्रयोग करते थे जानवरों की दौड़ शतरंज खेलते थे, नृत्यगंना की मूर्ति हमें हड़प्पा संस्कृति में नाच गाने के प्रचलन को बताती है । मिट्टी एवं पत्थर के पांसे मिले है । प्रौद्योगिकी ज्ञान सिन्धु सभ्यता के लोगों का भवन निर्माण, विशाल अन्न भण्डार जल निकासी व्यवस्था, सड़क व्यवस्था देखकर उनकी तकनीकी ज्ञान बहुत रहा होगा, ऐसा अनुमान लगाया जाता है, वे मिश्रित धातु बनाना जानते थे, उनकी मूर्तियॉं एवं आभूषण बहुत खुबसूरत थे। मृतक कर्म इस काल में भी शवों के जमीन में दफनाया जाता था । शवों के साथ पुरा पाषाण काल के समान भोजन, हथियार, गृह-पात्र तथा अन्य उपयोगी वस्तुएँ भी साथ में रख दी जाती थी । मृतकों की कब्रों के ऊपर बड़े-बड़े पत्थर भी रख दिये जाते थे, जिनको रखने का मुख्य उद्देश्य मृतकों को सम्मान देना था । कुछ स्थलों पर शवो को जलाने की प्रथा का भी प्रचलन हो गया था । जब शव जल जाता था तो उसकी राख को मिट्टी के बने घड़ों में रखकर सम्मान के साथ जमीन में गाड़ दिया जाता था । चिकित्सा विज्ञान सिन्धु सभ्यता के निवासी विभिन्न औषधियों से परिचित थे, तथा हिरण, बारहसिंघे के सीगों, नीम की पत्तीयों एवे शिलाजीत का औषधियों की तरह प्रयोग करते थे, उल्लेखनीय है कि सिन्धु सभ्यता में खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के उदाहरण भी काली, बंगा एवं लोथल से प्राप्त होते है । समुद्र फेन (झाग) भी औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता था। आर्थिक जीवन कृषि हड़प्पा युग में सिन्धु नदी में बाढ़ आती थी जाे भूमि को और अधिक उपजाऊ बना देती थी । सिन्धु घाटी के लोग बाढ़ से उपजाऊ भूमि में नवम्बर के महीने में गेहू और जौ की बोआइर् करते थे आरै अपनी फसल अपै्रल के महीने में बाढ़ आने के पहले काट लते थे । खोदाई में कोई हल या फावड़ा नहीं मिला है, किन्तु कालीबंगन में पूर्व हड़प्पा अवधि के खेती बाड़ी के लिए उपयुक्त खेतों के अवशेष मिले है । खेत में समकोण पर बनी क्यारियां मिली है जिससे पता चलता है कि खेत में एक समय में दो फसलें लगाना सम्भव था । सम्भवत: हड़प्पा के लोग लकड़ी के बने हल का उपयोग करते थे । इस के प्रमाण नहीं है कि हल को मानव या बैल खींचता था । शायद पत्थर की दराती से फसलें काटी जाती थी । ऐसा प्रतीत होता है कि नहरों द्वारा सिंचाई का प्रचलन नहीं था । हड़प्पा की मुख्य फसलें थी गेहूं, जौ, कपास, तिल । इनका भण्डारण विशाल धान्य कोठरियों में किया जता था । बाढ़ के पानी का उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए किया जाता था । पशुपालन अन्य प्रमुख व्यवसाय पशुपालन का था । बैल, गाय, सूअर तथा कुत्ताे के अस्थि-पंजर प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुए है । अत: वे पशु अवश्य पालते थे । गाय और भैंस का दूध प्रयोग किया जाता था । व्यापार इस घाटी के निवासी आन्तरिक तथा विदेशी दानेाे प्रकार के व्यापार करते थे सोना कोलार तथा अनन्तपुर की खानों से आता था । कुछ विद्वानों के अनुसार चांदी और रांगा अफगानिस्तान से आयात किये जाते थे । तांबा और सीसा राजपूताना, बिलोचिस्तान और ईरान से मंगाया जाता था । कुटीर उद्योग प्रमुखत: कुम्हारों के द्वारा चाक से निर्मित मिट्टी की मूिर्तयां, खिलौने, बर्तनों के अतिरिक्त ईटो का बड़े पैमाने पर निर्माण किया जाता था । चांदी के कलश पर सूत पर लिपटा हुआ कपड़ा मिला है जिससे यह ज्ञात होता है कि यहां के निवासी सूत कातने आरै कपडा़ बुनने का व्यवसाय भी करते थे । कुछ मिटटी की तकलियां प्राप्त हुई है । ऊनी वस्त्र भी बुनकर तैयार किये जाते थे । कुम्हार विभिन्न मिट्टी की वस्तुएँ तैयार करके अपनी जीविका चलाते थे । खिलौनों, मूर्तियों, कटोरियों, प्यालियों, मटकों का निर्माण किया जाता था । सीप तथा हाथीदांत के आभूषण तैयार होते थे । मापतौल बाट तालै के लिए तराजू व बाट प्रचलित थे । नापने के लिये स्केल का प्रयोग करते थे जो सीप का बना होता था । चिकने पत्थरों से बाट बनाया जाता था । कई ऐसे पत्थर प्राप्त हुये जिनसे पता चलता है कि ढाव उसके गुणओं का प्रयोग होता था । कला का विकास- मूर्तिकला या प्रतिमाएं हडप़्पा सभ्यता के लोग धातु की सुन्दर प्रतिमाएं बनाते थे । इनका सबसे सुन्दर नमूना कांसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति है । खुदाई में सेलखड़ी की बनी एक दाढ़ी वाले पुरूष की एक अर्ध प्रतिमा प्राप्त हुई है । उस के बांये कन्धे से दांये हाथ के नीचे तक एक अलंकृत दुशाला और माथे पर सरबन्ध है । पत्थर की बनी हुई दो पुरूषों की प्रतिमाए हड़प्पा की लघु मूर्तिकला का उदाहरण है । चित्रकला अनेक बर्तनों तथा मोहरो पर बने चित्रों से ज्ञात होता है कि सिन्धु घाटी के लोग चित्रकला में अत्यधिक प्रवीण थे । मुहरो पर सांडो और भैंसो की सर्वाधिक कलापूर्ण ढंग से चित्रकारी की गई है । वृक्षों के भी चित्र बनाये गये है । मुद्रा कला हड़प्पा की खुदाई में विभिन्न प्रकार की मुद्रायें मिली है ये मुद्रायें वर्गाकार आकृति की है जिन पर एक ओर पशुओं के चित्र बने है तथा दूसरी ओर लेख है । ये हांथी दांत व मिट्टी के लगभग 3600 मुहरे प्राप्त हुई है । धातु कला सिन्धु सभ्यता की कलाओं में धातु कला जिसमें विशेष स्वर्ण कला का उल्लेख मिलता है । यहां के सोनारों द्वारा गलाई, ढलाई, नक्कासी जोड़ने आदि का कार्य किया जाता था । सिन्धु काल की कलाकृतियां इतनी विलक्षण और मनोहर है कि ऐसी कारीगरी पर आज का सुनार भी गर्व कर सकता है । पात्र निर्माण कला खुदाई में अनेक ताम्र एवं मिट्टी के पात्र मिले है जो बहुत सुन्दर एवं उच्च कोटि के है यह वर्गाकार, आयताकार, गोलाकार में मिले है । ये पानी भरने एवं अनाज रखने के काम आते थे । ताम्र्रपात्र निर्माण कला खुदाई में अनेक ताबें के पात्र मिले है ये वर्गाकार, आयताकार में है जिसमें चित्रकारी है । वस्त्र निर्माण कला सिन्धु सभ्यता की खुदाई की गइर् तो तकलियॉ प्राप्त हुई है जिनसे सूत कातने के काम में भी यहां के निवासी निपुण थे । नृत्य तथा संगीत कला इस बात के भी प्रमाण हैं कि सिन्धुवासी नृत्य तथा संगीत से परिचित थे । पहले हम कांसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति का उल्लेख कर आये है । इससे स्पष्ट है कि सिन्धु प्रदेश में नृत्य कला का प्रचार था । इस मूर्ति की भावभंगिमा वैसी ही हृदयग्राही है जैसी कि ऐतिहासिक युग की मूर्तियों में देखने को मिलती है । बर्तनों पर कुछ ऐसे चित्र मिले हैं जो ढोल और तबले से मिलते-जुलते हैं । अनुमान है कि सिन्धुवासी वाद्ययन्त्र भी बनाना जानते थे ।



लिपि या लेखन कला मेसोपोटामिया के निवासियों की तरह हड़प्पा वासियों ने भी लेखन कला का विकास किया । यद्यपि इस लिपि के पहले नमूने 1853 में प्राप्त हुये थे पर अभी तक विद्वान इसका अर्थ नहीं निकाल पाए हैं । कुछ विद्वानों ने तो इसे पढ़ने के लिए कम्प्यूटर का भी उपयोग किया पर वह भी असफल हैं । इस लिपि का द्रविड़, संस्कृत या सुमेर की भाषाओं से संबंध स्थापित करने के प्रयत्नों का भी कोई संतोषजनक परिणाम नहीं निकला है । हड़प्पा की लिपि को चित्र लिपि माना जाता है । इस लिपि में हर अक्षर एक चित्र के रूप में किसी ध्वनी, विचार या वस्तु का प्रतीक होता है । लगभग 400 ऐसे चित्रलेख देखने में आये हैं। यह लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है अत: हम हड़प्पा संस्कृति के साहित्य, विचारों या शासन व्यवस्था के विषय में अधिक नहीं कह सकते हैं । पढ़ना व लिखना शायद एक वर्ग तक सीमित था ।

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