"उदन्त मार्तण्ड": अवतरणों में अंतर

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'''अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अन्त ।'''
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उन दिनों सरकारी सहायता के बिना किसी भी पत्र का चलना असंभव था। कंपनी सरकार ने [[इसाई मिशनरी|मिशनरियों]] के पत्र को डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परंतु चेष्टा करने पर भी "उदंत मार्तंड" को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी। उस समय [[अंग्रेजी]], [[फारसी]] और [[बांग्ला]] में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए "उदंत मार्तड" का प्रकाशन शुरू किया गया। इस पत्र में [[ब्रज भाषा|ब्रज]] और [[खड़ीबोली]] दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक ""मध्यदेशीय भाषा"" कहते थे।
उन दिनों सरकारी सहायता के बिना किसी भी पत्र का चलना असंभव था। कंपनी सरकार ने [[इसाई मिशनरी|मिशनरियों]] के पत्र को डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परंतु चेष्टा करने पर भी "उदंत मार्तंड" को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी। उस समय [[अंग्रेजी]], [[फारसी]] और [[बांग्ला]] में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए "उदंत मार्तड" का प्रकाशन शुरू किया गया। इस पत्र में [[ब्रज भाषा|ब्रज]] और [[खड़ीबोली]] दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक "मध्यदेशीय भाषा" कहते थे।


==पत्र की प्रारम्भिक विज्ञप्ति==
==पत्र की प्रारम्भिक विज्ञप्ति==

11:15, 23 अप्रैल 2009 का अवतरण

उदंत मार्तंड का मुखपृष्ठ

उदन्त मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था । मई, १८२६ ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक के रूप में इसका प्रकाशन शुरू हुआ। कलकत्ते के कोलू टोला नामक महल्ले के ३७ नंबर आमड़तल्ला गली से जुगलकिशोर सुकुल ने सन् १८२६ ई. में उदंतमार्तंड नामक एर हिंदी साप्ताहिक पत्र निकालने का आयोजन किया। इसके संपादक भी श्री जुगुलकिशोर सुकुल ही थे। वे मूल रूप से कानपुर निवासी थे।[1] यह पत्र पुस्तकाकार (१२x८) छपता था और हर मंगलवार को निकलता था। इसके कुल ७९ अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि डेढ़ साल बाद दिसंबर, १८२७ ई में बंद हो गया।[2]इसके अंतिम अंक में लिखा है- उदन्त मार्तण्ड की यात्रा- मिति पौष बदी १ भौम संवत् १८८४ तारीख दिसम्बर सन् १८२७ ।

आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त

अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अन्त ।

उन दिनों सरकारी सहायता के बिना किसी भी पत्र का चलना असंभव था। कंपनी सरकार ने मिशनरियों के पत्र को डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परंतु चेष्टा करने पर भी "उदंत मार्तंड" को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी। उस समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए "उदंत मार्तड" का प्रकाशन शुरू किया गया। इस पत्र में ब्रज और खड़ीबोली दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक "मध्यदेशीय भाषा" कहते थे।

पत्र की प्रारम्भिक विज्ञप्ति

प्रारंभिक विज्ञप्ति इस प्रकार थी - "यह "उदंत मार्तंड" अब पहले-पहल हिंदुस्तानियों के हित के हेत जो आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजी ओ पारसी ओ बंगाल में जो समाचार का कागज छपता है उसका सुख उन बोलियों के जानने और पढ़नेवालों को ही होता है। इससे सत्य समाचार हिंदुस्तानी लोग देखकर आप पढ़ औ समझ लेय औ पराई अपेक्षा न करें ओ अपनी भाषा की उपज न छोड़े, इसलिए दयावान करुणा और गुणनि के निधान सब के कल्यान के विषय गवरनर जेनेरेल बहादुर की आयस से ऐसे साहस में चित्त लगाय के ए प्रकार से यह नया ठाट ठाटा..."।

संदर्भ

  1. "हिंदी पत्रकारिता के उद्भव की पृष्ठभूमि" (एचटीएम). सृजनगाथा. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  2. "भूमण्डलीकरण के दौर में हिन्दी" (एचटीएम). साहित्यकुंज. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)