"डार्क मैटर": अवतरणों में अंतर

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श्याम पदार्थ , पदार्थ का वह रूप है जिससे संभवतःअब तक हम अपरिचित हैं । चूँकि यह किसी भी प्रकार के विद्युत-चुंबकीय विकिरणों को न तो विकरित करता है तथा न ही अवशोषित करता है , फलस्वरुप इसे किसी भी टेलीस्कोप के द्वारा प्रत्यक्षतः नहीं देखा जा सकता है । दूसरे शब्दों में , हमारी पारंपरिक बोध क्षमता इस पदार्थ के सामने बिलकुल अंधेरे में है जिसके चलते इसका नामकरण श्याम पदार्थ किया गया है । सन्‌ 1932 ई में हॉलैंड के महान वैज्ञानिक जॉन ऊर्ट ने पाया कि हमारी आकाशगंगा के पड़ोस में स्थित सितारों की परिक्रमण गति परिकलनों में पूर्वानुमानित गति से कहीं ज्यादा है । इस असंगति की व्याख्या करने के लिए उन्होंने एक ऐसे पदार्थ की सर्वथा प्रथम अवधारणा की जो कि हमारी नजरों से ओझल थी । सन्‌ 1933 ई में विख्यात वैज्ञानिक फ्रिट्ज विकी ने कोमा आकाशगंगा-समूह में आकाशगंगाओं की गणनाओं से प्राप्त से कहीं ज्यादा तीव्र परिक्रमण गति की व्याख्या में पाया कि इस “गायब पदार्थ” पदार्थ की मात्रा दृश्य पदार्थ की मात्रा से कम–से-कम सौ गुनी ज्यादा होनी चाहिए । उन्होंने इस गायब पदार्थ के लिए “श्याम पदार्थ” शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया । सन्‌ 1950 और 60 के दशक में वैज्ञानिकों ने सर्पिल आकाशगंगाओं के घूर्णन के अध्ययन दौरान एक पेचीदा खोज की । उन्होंने पाया कि हमारी आकाशगंगा के केंद्र में जहाँ पर दृश्य पदार्थ की मात्रा ज्यादा होती है, सितारों की घूर्णन गति आकाशगंगा के किनारों पर स्थित सितारों की घूर्णन गति के बराबर होती है । यह उनके इस आशा कि केंद्र में सितारों की घूर्णन गति आकाशगंगा के किनारों पर स्थित सितारों की घूर्णन गति से ज्यादा होगी के उलट था । 1970 के दशक में वैज्ञानिक सुश्री वीरा रुबीन ने एंड्रोमेडा सहित अनेक अन्य आकाशगंगाओं में सितारों की गति का विस्तृत अध्ययन कर ब्रह्मांड में इस परिघटना की व्यापकता की पुष्टि कर दी । इन सभी परिणामों का निहितार्थ यह इंगित करते थे कि या तो गुरुत्वाकर्षण तथा घूर्णन के बारे में हमारी समझ में कोई मूलभूत त्रुटि है ,जिसकी संभावना अत्यंत ही क्षीण थी क्योंकि न्यूटन के नियम सदियों से परीक्षणों में खरे उतरते रहे हैं , अथवाआकाशगंगाओं तथा आकाशगंगा समूहों में अवश्य ही कोई ना कोई ऐसा पदार्थ उपस्थित है जो गुरुत्वाकर्षण के इन देखे गए प्रभावों के लिए उत्तरदायी है । इन प्रेक्षणों ने खगोलविदों को श्याम पदार्थ के अस्तित्व तथा उनकी विशेषताओं की खोज हेतु ब्रह्मांड की दूर दराज के कोनों को खंगालने के लिए प्रेरित कर दिया । इसके लिए वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान गुरुत्वाकर्षण बल से जुड़ी आकाशगंगाओं के विशाल समूहों (जिनमें पचास से लेकर हजारों आकाशगंगाएँ शामिल थीं) पर इस उम्मीद में केंद्रित किया कि शायद वहाँ पर उन्हें वे तप्त गैसें मिलेगीं जो उनके पूर्व के अवलोकनों में नहीं देखी जा सकी थीं और ये गैसें ही उस गायब अथवा श्याम पदार्थ की समस्या का हल होंगी । इस प्रक्रिया में जब उन्होंनेएक्स-किरण टेलीस्कोपों (जिनमें नोबेल पुरस्कार विजेता महान भारतीय वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के सम्मान में रखे गए नासा के चंद्रा टेलीस्कोप नामक एक्स-किरण टेलीस्कोप का अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है ) का रुख उन समूहों की ओर किया तो उन्हें वास्तव में अति तप्त गैसों के बृहदाकार बादल मिले । लेकिन गैसों के ये विशाल बादल भी द्रव्यमान की प्रेक्षित असंगति को दूर करने में सक्षम सिद्ध नहीं हुए । इन आकाशगंगीय क्लस्टरों के उष्ण गैस दाब की गणना करने पर प्राप्त हुआ कि क्लस्टरों का द्रव्यमान सभी तारों तथा गैसों के कुल द्रव्यमान का न्यूनतम पाँच से छः गुना होना चाहिए अन्यथा इन तप्त गैसों को पलायन रोक सकने के लिए यथेष्ट गुरुत्व नहीं नहीं होगा । इन प्रेक्षणों तथा गणनाओं ने श्याम पदार्थ के अस्तित्व संबंधी अनेक सूत्र उपलब्ध करा दिए ।परवर्ती काल में वैज्ञानिकों ने गतिज तथा व्यापक सापेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित निर्मित आकाशगंगा ,आकाशगंगाओं के समूहोंतथा संपूर्ण ब्रह्मांड के द्रव्यमान तथा “प्रकाशित” पदार्थों (जिसमें तारे, गैस तथा अंतर-तारकीय एवं अंतर-आकाशगंगीय धूल शामिल हैं) के द्रव्यमान में व्यापक विसंगति पायी । इस विसंगतता की सर्वाधिक सफल व्याख्या ब्रह्मांड में भारी तथा असाधारण कणों से निर्मित श्याम पदार्थों ,जो केवल गुरुत्वार्कषण बल तथा संभवतः दुर्बल बल के द्वारा परस्पर अंतःक्रिया करते हैं , के अस्तित्व में होने के सिद्धांत के द्वारा की जा सकती है ।कम्प्यूटर जनित मॉडलों में वैज्ञानिकों ने पाया कि श्याम पदार्थ को सामान्य दृश्य पदार्थ के साथ संपूर्ण ब्रह्मांड में गुंथा होना चाहिए ।
[[खगोलशास्त्र]] तथा [[ब्रह्माण्ड विज्ञान]] में '''आन्ध्र पदार्थ''' या '''डार्क मैटर''' (dark matter) एक काल्पनिक पदार्थ है। इसकी विशेषता है कि अन्य पदार्थ अपने द्वारा उत्सर्जित [[विकिरण]] से पहचाने जा सकते हैं किन्तु आन्ध्र पदार्थ अपने द्वारा उत्सर्जित विकिरण से पहचाने नहीं जा सकते। इनके अस्तित्व (presence) का अनुमान दृष्यमान पदार्थों पर इनके द्वारा आरोपित [[गुरुत्वाकर्षण|गुरुत्वीय]] प्रभावों से किया जाता है।

आन्ध्र पदार्थ के बारे में माना जाता है कि इस ब्रह्मांड का 85 प्रतिशत आन्ध्र पदार्थ का ही बना है और [[यूरोप]] के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उन्होंने आन्ध्र पदार्थ खोज निकाला है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आन्ध्र पदार्थ न्यूट्रालिनॉस नाम के कणों या पार्टिकल से बना है।

इसकी खासियत है कि यह साधारण मैटर से कोई क्रिया नहीं करता। हर सेकंड हमारे शरीर के आर-पार हजारों न्यूट्रालिनॉस गुजरते रहते हैं। वे अदृश्य हैं। इसी वजह से हम अंतरिक्ष में मौजूद आन्ध्र पदार्थ के बादल के दूसरी ओर मौजूद आकाशगंगाओं को देख पाते हैं।

पामेला नाम के एक यूरोपियन स्पेस प्रोब ने कुछ ऐसे हाई एनर्जी पार्टिकल खोजे हैं, जो हमारी आकाशगंगा के केंद्र से निकले हैं। उनसे निकलने वाला रेडिएशन ठीक उसी तरह का है, जैसा आन्ध्र पदार्थ के लिए तय किया गया था। इस खोज के डिटेल स्वीडन के स्टॉकहोम में आयोजित एक कॉन्फरन्स में रखे गए।


गौरतलब है कि, यूरोप में शुरू हुई महामशीन या [[सर्न|लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर]] के ढेरों मकसदों में से एक आन्ध्र पदार्थ की खोज करना भी है।
गौरतलब है कि, यूरोप में शुरू हुई महामशीन या [[सर्न|लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर]] के ढेरों मकसदों में से एक आन्ध्र पदार्थ की खोज करना भी है।

17:01, 5 जुलाई 2015 का अवतरण

श्याम पदार्थ , पदार्थ का वह रूप है जिससे संभवतःअब तक हम अपरिचित हैं । चूँकि यह किसी भी प्रकार के विद्युत-चुंबकीय विकिरणों को न तो विकरित करता है तथा न ही अवशोषित करता है , फलस्वरुप इसे किसी भी टेलीस्कोप के द्वारा प्रत्यक्षतः नहीं देखा जा सकता है । दूसरे शब्दों में , हमारी पारंपरिक बोध क्षमता इस पदार्थ के सामने बिलकुल अंधेरे में है जिसके चलते इसका नामकरण श्याम पदार्थ किया गया है । सन्‌ 1932 ई में हॉलैंड के महान वैज्ञानिक जॉन ऊर्ट ने पाया कि हमारी आकाशगंगा के पड़ोस में स्थित सितारों की परिक्रमण गति परिकलनों में पूर्वानुमानित गति से कहीं ज्यादा है । इस असंगति की व्याख्या करने के लिए उन्होंने एक ऐसे पदार्थ की सर्वथा प्रथम अवधारणा की जो कि हमारी नजरों से ओझल थी । सन्‌ 1933 ई में विख्यात वैज्ञानिक फ्रिट्ज विकी ने कोमा आकाशगंगा-समूह में आकाशगंगाओं की गणनाओं से प्राप्त से कहीं ज्यादा तीव्र परिक्रमण गति की व्याख्या में पाया कि इस “गायब पदार्थ” पदार्थ की मात्रा दृश्य पदार्थ की मात्रा से कम–से-कम सौ गुनी ज्यादा होनी चाहिए । उन्होंने इस गायब पदार्थ के लिए “श्याम पदार्थ” शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया । सन्‌ 1950 और 60 के दशक में वैज्ञानिकों ने सर्पिल आकाशगंगाओं के घूर्णन के अध्ययन दौरान एक पेचीदा खोज की । उन्होंने पाया कि हमारी आकाशगंगा के केंद्र में जहाँ पर दृश्य पदार्थ की मात्रा ज्यादा होती है, सितारों की घूर्णन गति आकाशगंगा के किनारों पर स्थित सितारों की घूर्णन गति के बराबर होती है । यह उनके इस आशा कि केंद्र में सितारों की घूर्णन गति आकाशगंगा के किनारों पर स्थित सितारों की घूर्णन गति से ज्यादा होगी के उलट था । 1970 के दशक में वैज्ञानिक सुश्री वीरा रुबीन ने एंड्रोमेडा सहित अनेक अन्य आकाशगंगाओं में सितारों की गति का विस्तृत अध्ययन कर ब्रह्मांड में इस परिघटना की व्यापकता की पुष्टि कर दी । इन सभी परिणामों का निहितार्थ यह इंगित करते थे कि या तो गुरुत्वाकर्षण तथा घूर्णन के बारे में हमारी समझ में कोई मूलभूत त्रुटि है ,जिसकी संभावना अत्यंत ही क्षीण थी क्योंकि न्यूटन के नियम सदियों से परीक्षणों में खरे उतरते रहे हैं , अथवाआकाशगंगाओं तथा आकाशगंगा समूहों में अवश्य ही कोई ना कोई ऐसा पदार्थ उपस्थित है जो गुरुत्वाकर्षण के इन देखे गए प्रभावों के लिए उत्तरदायी है । इन प्रेक्षणों ने खगोलविदों को श्याम पदार्थ के अस्तित्व तथा उनकी विशेषताओं की खोज हेतु ब्रह्मांड की दूर दराज के कोनों को खंगालने के लिए प्रेरित कर दिया । इसके लिए वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान गुरुत्वाकर्षण बल से जुड़ी आकाशगंगाओं के विशाल समूहों (जिनमें पचास से लेकर हजारों आकाशगंगाएँ शामिल थीं) पर इस उम्मीद में केंद्रित किया कि शायद वहाँ पर उन्हें वे तप्त गैसें मिलेगीं जो उनके पूर्व के अवलोकनों में नहीं देखी जा सकी थीं और ये गैसें ही उस गायब अथवा श्याम पदार्थ की समस्या का हल होंगी । इस प्रक्रिया में जब उन्होंनेएक्स-किरण टेलीस्कोपों (जिनमें नोबेल पुरस्कार विजेता महान भारतीय वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के सम्मान में रखे गए नासा के चंद्रा टेलीस्कोप नामक एक्स-किरण टेलीस्कोप का अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है ) का रुख उन समूहों की ओर किया तो उन्हें वास्तव में अति तप्त गैसों के बृहदाकार बादल मिले । लेकिन गैसों के ये विशाल बादल भी द्रव्यमान की प्रेक्षित असंगति को दूर करने में सक्षम सिद्ध नहीं हुए । इन आकाशगंगीय क्लस्टरों के उष्ण गैस दाब की गणना करने पर प्राप्त हुआ कि क्लस्टरों का द्रव्यमान सभी तारों तथा गैसों के कुल द्रव्यमान का न्यूनतम पाँच से छः गुना होना चाहिए अन्यथा इन तप्त गैसों को पलायन रोक सकने के लिए यथेष्ट गुरुत्व नहीं नहीं होगा । इन प्रेक्षणों तथा गणनाओं ने श्याम पदार्थ के अस्तित्व संबंधी अनेक सूत्र उपलब्ध करा दिए ।परवर्ती काल में वैज्ञानिकों ने गतिज तथा व्यापक सापेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित निर्मित आकाशगंगा ,आकाशगंगाओं के समूहोंतथा संपूर्ण ब्रह्मांड के द्रव्यमान तथा “प्रकाशित” पदार्थों (जिसमें तारे, गैस तथा अंतर-तारकीय एवं अंतर-आकाशगंगीय धूल शामिल हैं) के द्रव्यमान में व्यापक विसंगति पायी । इस विसंगतता की सर्वाधिक सफल व्याख्या ब्रह्मांड में भारी तथा असाधारण कणों से निर्मित श्याम पदार्थों ,जो केवल गुरुत्वार्कषण बल तथा संभवतः दुर्बल बल के द्वारा परस्पर अंतःक्रिया करते हैं , के अस्तित्व में होने के सिद्धांत के द्वारा की जा सकती है ।कम्प्यूटर जनित मॉडलों में वैज्ञानिकों ने पाया कि श्याम पदार्थ को सामान्य दृश्य पदार्थ के साथ संपूर्ण ब्रह्मांड में गुंथा होना चाहिए ।

गौरतलब है कि, यूरोप में शुरू हुई महामशीन या लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर के ढेरों मकसदों में से एक आन्ध्र पदार्थ की खोज करना भी है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

  • NASA (2006-08-21). NASA Finds Direct Proof of Dark Matter. प्रेस रिलीज़. http://www.nasa.gov/home/hqnews/2006/aug/HQ_06297_CHANDRA_Dark_Matter.html. 
  • Tuttle, Kelen (August 22, 2006). "Dark Matter Observed". SLAC (Stanford Linear Accelerator Center) Today.
  • "Astronomers claim first 'dark galaxy' find". New Scientist. 2005-02-23.
  • Wikinews:Dark matter galaxy discovered
  • "Dark Matter Detected". Guardian. 2009-12-17.