"गलगुटिकाशोथ": अवतरणों में अंतर

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== कारण ==
== कारण ==
यह रोग पूयजनक जीवाणुओं के उपसर्ग, प्रधानत: मालागोलाणु (stretococcus)से होता है। शारीरिक रोग-प्रतिरोधशक्ति की दुर्बलता, अधिक परिश्रम, दूषित वातावरण में निवास तथा दूषित जल एवं दूषित दूध के व्यवहार से गलगुटिकाशोथ के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। ऋतु परिवर्तन के समय शीत लग जाने से भी राग हो जाने का भय रहता है।
यह रोग पूयजनक जीवाणुओं के उपसर्ग, प्रधानत: मालागोलाणु (stretococcus) से होता है। शारीरिक रोग-प्रतिरोधशक्ति की दुर्बलता, अधिक परिश्रम, दूषित वातावरण में निवास तथा दूषित जल एवं दूषित दूध के व्यवहार से गलगुटिकाशोथ के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। ऋतु परिवर्तन के समय शीत लग जाने से भी राग हो जाने का भय रहता है।


== लक्षण ==
== लक्षण ==

20:41, 16 सितंबर 2014 का अवतरण

लाल गलगुटिका पर सफेद रंग के शोथ

मनुष्य के तालु के दोनों ओर बादाम के आकार की दो ग्रंथियाँ होती है, जिन्हें हम गलगुटिका, तुंडिका या टॉन्सिल कहते हैं। इन ग्रंथियों के रोग को गलगुटिकाशोथ (तालुमूलप्रदाह Tonsilitis) कहते हैं।

कारण

यह रोग पूयजनक जीवाणुओं के उपसर्ग, प्रधानत: मालागोलाणु (stretococcus) से होता है। शारीरिक रोग-प्रतिरोधशक्ति की दुर्बलता, अधिक परिश्रम, दूषित वातावरण में निवास तथा दूषित जल एवं दूषित दूध के व्यवहार से गलगुटिकाशोथ के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। ऋतु परिवर्तन के समय शीत लग जाने से भी राग हो जाने का भय रहता है।

लक्षण

इस रोग में गलगुटिकाएँ बड़ी एवं रक्तवर्ण दिखलाई देती हैं। शोथ की अवस्था में ज्वर, कंठ में वेदना, मुख में थूक अधिक आना, खाँसी, शिरशूल, भोजन निगलने में कष्ट, श्वसन दुर्गधित आदि लक्षण उपस्थित रहते हैं।

गलगुटिकाओं के पृष्ठ पर पीतवर्ण के पीब के धब्बे दिखलाई देते हैं। यदि रोग का उचित उपचार नहीं किया जाता तो गलगुटिकोओं की यह अवस्था स्थायी हो जाती है और थोड़े थोड़े समय के अंतर पर ये कष्ट देने लगती हैं।

उपचार

उग्र अवस्था में सल्फा औषधों का उपयोग करने से लाभ होता है। पोटासियम परमैंगनेट के तनु विलयन, या लवणजल का गरारा (gargle) करना चाहिए। दीर्घस्थायी अवस्था में शल्यकर्म द्वारा गलगुटिकाओं को निकलवा देना चाहिए।

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