"सस्य आवर्तन": अवतरणों में अंतर

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15. '''अधिक उपज'''- उपर्युक्त कारणों से फसल की उपज प्राय: अधिक हो जाती है।
15. '''अधिक उपज'''- उपर्युक्त कारणों से फसल की उपज प्राय: अधिक हो जाती है।

==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.arganikbhagyoday.blogspot.in/2012/10/blog-post_8181.html फसल चक्र के सिद्धान्त]
*[http://www.healthinhindi.blogspot.in/2012/05/blog-post_9020.html फसल चक्र]


[[श्रेणी:फ़सलें]]
[[श्रेणी:फ़सलें]]

13:23, 17 अगस्त 2013 का अवतरण

विभिन्न फसलों को किसी निश्चित क्षेत्र पर, एक निश्चित क्रम से, किसी निश्चित समय में बोने को सस्य आवर्तन (सस्यचक्र या फ़सल चक्र (क्रॉप रोटेशन)) कहते हैं। इसका उद्देश्य पौधों के भोज्य तत्वों का सदुपयोग तथा भूमि की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशाओं में संतुलन स्थापित करना है।

लाभ

सस्यचक्र से निम्नलिखित लाभ होते हैं:

1. पोषक तत्वों का समान व्यय- फसलों की जड़ें गहराई तथा फैलाव में विभिन्न प्रकार की होती हैं, अत: गहरी तथा उथली जड़ वाली फसलों के क्रमश: बोने से पोषक तत्वों का व्यय विभिन्न गहराइयों पर समान होता है, जैसे गेहूँ, कपास।

2. पोषक तत्वों का संतुलन- विभिन्न पौधे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश तथा अन्य पोषक तत्व भिन्न-भिन्न मात्राओं में लेते हैं। सस्यचक्र द्वारा इनका पारस्परिक संतुलन बना रहता है। एक ही फसल निरंतर बोने से अधिक प्रयुक्त होने वाले पोषक तत्वों की भूमि में शून्यता हो जाती है।

3. हानिकारक कीटाणु रोग तथा घासपात की रोकथाम- एक फसल, अथवा उसी जाति की अन्य फसलें, लगातार बोने से उनके हानिकारक कीड़े, रोग तथा साथ उगने वाली घासपात उस खेत में बनी रहती है।

4. श्रम, आय तथा व्यय का संतुलन - एक बार किसी फसल के लिए अच्छी तैयारी करने पर, दूसरी फसल बिना विशेष तैयारी के ली जा सकती है और अधिक खाद चाहने वाली फसल को पर्याप्त मात्रा में खाद को देकर, शेष खाद पर अन्य फसलें लाभके साथ ली जा सकती है, जैसे आलू के पश्चात् तंबाकू, प्याज या कद्दू आदि।

5. भूमि में कार्बनिक पदार्थों की पूर्ति- निराई, गुड़ाई चाहने वाली फसलें, जैसे आलू, प्याज आदि बोने से, भूमि में जैव पदार्थों की कमी हो जाती है। इनकी पूर्ति दलहन वर्ग की फसलों तथा हरी खाद के प्रयोग से हो जाती है।

6. अल्पकालीन फसलें बोना- मुख्य फसलों के बीच अल्पकालीन फसलें बोई जा सकती हैं, जैसे मूली, पालक, चीना, मूँग नंबर 1.।

7. भूमि में नाइट्रोजन की पूर्ति- दलहन वर्ग की फसलों को, जैसे सनई, ढेंचा, मूँग इत्यादि, भूमि में तीन या चार वर्ष में एक बार जोत देने से, न केवल कार्बनिक पदार्थ ही मिलते हैं अपितु नाइट्रोजन भी मिलता है, क्योंकि इनकी जड़ की छोटी-छोटी गाँठों में नाइट्रोजन स्थापित करने वाले जीवाणु होते हैं।

8. भूमि की अच्छी भौतिक दशा- झगड़ा जड़वाली तथा अधिक गुड़ाई चाहने वाली फसलों को सस्यचक्र में संमिश्रित करने से भूमि की भौतिक दशा अच्छी रहती है।

9. घास पात की सफाई- निराई, गुड़ाई चाहने वाली फसलों के बोने से घासपात की सफाई स्वयं हो जाती है।

10. कटाव से बचत- उचित सस्यचक्र से वर्षा के जल से भूमि का कटाव रुक जाता है तथा खाद्य पदार्थ बहने से बच जाते हैं।

11. समय का सदुपयोग- इससे कृषि कार्य उत्तम ढंग से होता है। खेत एवं किसान व्यर्थ खाली नहीं रहते।

12. भूमि के विषैले पदार्थों से बचाव- फसलें जड़ों से कुछ विषैला पदार्थ भूमि में छोड़ती हैं। एक ही फसल बोने से, भूमि में विषैले पदार्थ अधिक मात्रा में एकत्रित होने के कारण हानि पहुँचाते हैं।

13. उर्वरा शक्ति की रक्षा- भूमि की उर्वरा शक्ति मितव्ययिता से ठीक रखी जा सकती है।

14. शेषांक से लाभ- पूर्व फसलों के शेषांक से लाभ उठाया जा सकता है।

15. अधिक उपज- उपर्युक्त कारणों से फसल की उपज प्राय: अधिक हो जाती है।

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