"सौदागर (1973 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
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सौदागर | |
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सौदागर का पोस्टर | |
निर्देशक | सुधेन्दु रॉय |
लेखक |
सुधेन्दु रॉय (पटकथा) पी.एल.संतोषी (संवाद) |
निर्माता |
ताराचंद बड़जात्या सुभाष घई |
अभिनेता |
अमिताभ बच्चन नूतन पदमा खन्ना मुराद लीला मिश्रा सी एस दुबे |
छायाकार | दिलीप रंजन मुखोपाध्याय |
संपादक | मुख़्तार अहमद |
संगीतकार | रवीन्द्र जैन (गीतकार एवं संगीतकार) |
प्रदर्शन तिथि |
१९७३ |
लम्बाई |
१३१ मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
सौदागर १९७३ में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। हालांकि इस फ़िल्म को बॉक्स ऑफ़िस में उतनी सफलता नहीं मिली लेकिन इसे अकादमी पुरस्कार के लिए भेजा गया था लेकिन यह फ़िल्म नामांकित न हो सकी।
संक्षेप
एक नौजवान मर्द मोती (अमिताभ बच्चन) खजूर का रस ठेके पर निकालता है और उसे महजबी (नूतन) नाम की थोड़ी उम्र में बड़ी विधवा से गुड़ बनवाता है और उसे महन्तारी में हिस्सा भी देता है। महजबी के गुड़ बनाने की कला लाजवाब है और मोती का गुड़ हाट में हाथों हाथ बिक जाता है। मोती को ब्याह रचाने की जल्दी है लेकिन मेहर (दहेज) में देने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं। वह ₹ २००, २५० और ३०० की मेहर भी ठुकरा देता है। एक दिन वह एक कमसिन लड़की फूल बानो (पदमा खन्ना) को देख लेता है और उसके मोहजाल में फँस जाता है। जब वह उसके अब्बा शेख़ साहब (मुराद) से उसका हाथ मांगने जाता है तो शेख़ साहब कहते हैं कि उन्हें ₹ ५०० मेहर चाहिए ताकि उनकी लड़की सुरक्षित रहे। मायूस लौट के आये मोती को कोई यह सलाह देता है कि जो उसका गुड़ बनाती है उसी से निक़ाह पढ़वाकर अपनी महन्तारी का हिस्सा बचा ले। काम के फाश में पड़ा मोती महजबी के साथ निक़ाह पढ़वाता है और उसे अपने घर लाकर और अधिक गुड़ बनवाता है। जब उसके पास मेहर के पैसे पूरे हो जाते हैं तो वह महजबी को लानत भेजकर तलाक़ देता है और फूल बानो से ब्याह रचा लेता है। इस सदमे से महजबी किसी दूसरे गांव में एक मछली के व्यापारी, जिसके तीन बच्चे पहले से ही हैं, से ब्याह रचा लेती है। जब गुड़ बनाने का मौसम आता है तो फूल बानो उसे घटिया क़िस्म का गुड़ बनाकर देती है जिसकी वजह से उससे कोई गुड़ नहीं ख़रीदता है और मण्डी में उसकी १० साल पुरानी साख ख़त्म हो जाती है। आख़िरकार मोती थक हार के रस की दो हांडियाँ महजबी के नये घर लेकर जाता है और महजबी से उसका गुड़ बनाने की गुहार लगाता है। मोती के पीछे-पीछे फूल बानो भी आ जाती है और जब महजबी इस बात से इन्कार कर रही होती है कि वह मोती के लिए गुड़ बनाएगी, तभी उसकी नज़र बाड़े के पीछे खड़ी रोती हुयी फूल बानो पर पड़ती है, फूल बानो उसे आपा (दीदी) पुकारती है और दोनों आलिंगन कर लेते हैं। इस फ़िल्म के आख़िर में यह नहीं बताया गया है कि क्या महजबी ने फिर से मोती के लिए गुड़ बनाना शुरु कर दिया या फूल बानो को अपने गुड़ बनाने के राज़ बता दिए।
चरित्र
- अमिताभ बच्चन - मोती
- नूतन - महजबी
- पदमा खन्ना - फूल बानो
- मुराद - फूल बानो का पिता
- लीला मिश्रा - गांव की एक बुढ़िया
मुख्य कलाकार
दल
संगीत
इस फ़िल्म के गीतकार और संगीतकार रवीन्द्र जैन हैं।
गीत | गायक/गायिका | |
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१ | हर हसीं चीज़ का | किशोर कुमार |
२ | सजना है मुझे सजना के लिए | आशा भोंसले |
३ | क्यों लायो संइया पान | आशा भोंसले |
४ | दूर है किनारा | मन्ना डे |
५ | तेरा मेरा साथ रहे | लता मंगेशकर |
रोचक तथ्य
परिणाम
बौक्स ऑफिस
यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस में मध्यम रही।