"जन्तर मन्तर (जयपुर)": अवतरणों में अंतर

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== " विश्व धरोहर सूची " में शामिल ==
== " विश्व धरोहर सूची " में शामिल ==
यूनेस्को ने १ अगस्त २०१० को जंतर-मंतर समेत दुनिया भर के सात स्मारकों को " विश्व धरोहर सूची " में शामिल करने की जो घोषणा की थी, उनमें जयपुर का जंतर मंतर भी एक है. ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी के ३४ वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में इस वेधशाला को विश्व-विरासत स्मारक श्रेणी में शामिल किया जा चुका है! इस सम्मान की पीछे जो मुख्य कारण गिनाए गए थे, उनमें सबसे बड़ा कारण यह था कि इतने वर्ष गुजर जाने के बावजूद इस वेधशाला के सभी प्राचीन यन्त्र आज भी ठीक अवस्था में हैं; जिनके माध्यम से मौसम, स्थानीय समय, ग्रह नक्षत्रों, और ग्रहण अदि खगोलीय परिघटनाओं की एकदम सटीक गणना आज भी की जा सकती है.
यूनेस्को ने १ अगस्त २०१० को जंतर-मंतर समेत दुनिया भर के सात स्मारकों को " विश्व धरोहर सूची " में शामिल करने की जो घोषणा की थी, उनमें जयपुर का जंतर मंतर भी एक है. ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी के ३४ वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में इस वेधशाला को विश्व-विरासत स्मारक श्रेणी में शामिल किया जा चुका है! इस सम्मान की पीछे जो मुख्य कारण गिनाए गए थे, उनमें सबसे बड़ा कारण यह था कि इतने वर्ष गुजर जाने के बावजूद इस वेधशाला के सभी प्राचीन यन्त्र आज भी ठीक अवस्था में हैं; जिनके माध्यम से मौसम, स्थानीय समय, ग्रह नक्षत्रों, और ग्रहण अदि खगोलीय परिघटनाओं की एकदम सटीक गणना आज भी की जा सकती है. जयपुर स्थित जंतर-मंतर को सन 2010 में विश्व विरासत का दर्जा प्राप्त हुआ।विश्व विरासत में अपना नाम शामिल कराने वाला जंतर-मंतर राजस्थान का पहला और भारत की 23वीं सांस्कृतिक धरोहर है।इतिहास की एक बेमिसाल धरोहर के निर्माण का श्रेय महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय को जाता है।


२८२ साल पहले लकड़ी,चूने, पत्थर और धातु से निर्मित यंत्रों के माध्यम से आकाशीय घटनाओं के अध्ययन की भारतीय विद्या को 'अद्भुत' मानते हुए इस स्मारक को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है. इन्हीं यंत्रों के गणना के आधार पर आज भी जयपुर के स्थानीय पंचांग का प्रकाशन होता है, और हर बरस आषाढ़ पूर्णिमा को खगोलशास्त्रियों द्वारा 'पवन धारणा' प्रक्रिया से आने वाली वर्षा की भविष्यवाणी की जाती है.
२८२ साल पहले लकड़ी,चूने, पत्थर और धातु से निर्मित यंत्रों के माध्यम से आकाशीय घटनाओं के अध्ययन की भारतीय विद्या को 'अद्भुत' मानते हुए इस स्मारक को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है. इन्हीं यंत्रों के गणना के आधार पर आज भी जयपुर के स्थानीय पंचांग का प्रकाशन होता है, और हर बरस आषाढ़ पूर्णिमा को खगोलशास्त्रियों द्वारा 'पवन धारणा' प्रक्रिया से आने वाली वर्षा की भविष्यवाणी की जाती है.

12:09, 16 अप्रैल 2013 का अवतरण

जयपुर में पुराने राजमहल 'चन्द्रमहल' से जुडी एक आश्चर्यजनक मध्यकालीन उपलब्धि है-जंतर मंतर! पौने तीन सौ साल से भी अधिक समय से प्राचीन खगोलीय यंत्रों और जटिल गणितीय संरचनाओं के माध्यम से ज्योतिषीय और खगोलीय घटनाओं का विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए दुनिया भर में मशहूर इस अप्रतिम वेधशाला का निर्माण जयपुर नगर के संस्थापक आमेर के राजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने १७२८ में अपनी निजी देखरेख में शुरू करवाया था, जो सन १७३४ में पूरा हुआ था. सवाई जयसिंह एक खगोल वैज्ञानिक भी थे, जिनके योगदान और व्यक्तित्व की प्रशंसा जवाहर लाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' ('भारत : एक खोज') में सम्मानपूर्वक की है। सवाई जयसिंह ने इस वेधशाला के निर्माण से पहले विश्व के कई देशों में अपने सांस्कृतिक दूत भेज कर वहां से खगोल-विज्ञान के प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियाँ मंगवाईं थीं और उन्हें अपने पोथीखाने (पुस्तकालय) में संरक्षित कर अपने अध्ययन के लिए उनका अनुवाद भी करवाया था। यों तो मथुरा, उज्जैन, दिल्ली, वाराणसी में भी जयसिंह ने वेधशालाओं का निर्माण करवाया था, पर उनके अपने शहर में निर्मित यह वेधशाला सारी वेधशालाओं में सर्वाधिक विशाल है. यह बाकी के जंतर मंत्रों से आकार में तो विशाल है ही, शिल्प और यंत्रों की दृष्टि से भी इसका कई मुकाबला नहीं है! सवाई जयसिंह निर्मित पांच वेधशालाओं में आज केवल दिल्ली और जयपुर के जंतर मंतर ही शेष बचे हैं, बाकी काल के गाल में समा गए हैं।

" विश्व धरोहर सूची " में शामिल

यूनेस्को ने १ अगस्त २०१० को जंतर-मंतर समेत दुनिया भर के सात स्मारकों को " विश्व धरोहर सूची " में शामिल करने की जो घोषणा की थी, उनमें जयपुर का जंतर मंतर भी एक है. ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी के ३४ वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में इस वेधशाला को विश्व-विरासत स्मारक श्रेणी में शामिल किया जा चुका है! इस सम्मान की पीछे जो मुख्य कारण गिनाए गए थे, उनमें सबसे बड़ा कारण यह था कि इतने वर्ष गुजर जाने के बावजूद इस वेधशाला के सभी प्राचीन यन्त्र आज भी ठीक अवस्था में हैं; जिनके माध्यम से मौसम, स्थानीय समय, ग्रह नक्षत्रों, और ग्रहण अदि खगोलीय परिघटनाओं की एकदम सटीक गणना आज भी की जा सकती है. जयपुर स्थित जंतर-मंतर को सन 2010 में विश्व विरासत का दर्जा प्राप्त हुआ।विश्व विरासत में अपना नाम शामिल कराने वाला जंतर-मंतर राजस्थान का पहला और भारत की 23वीं सांस्कृतिक धरोहर है।इतिहास की एक बेमिसाल धरोहर के निर्माण का श्रेय महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय को जाता है।

२८२ साल पहले लकड़ी,चूने, पत्थर और धातु से निर्मित यंत्रों के माध्यम से आकाशीय घटनाओं के अध्ययन की भारतीय विद्या को 'अद्भुत' मानते हुए इस स्मारक को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है. इन्हीं यंत्रों के गणना के आधार पर आज भी जयपुर के स्थानीय पंचांग का प्रकाशन होता है, और हर बरस आषाढ़ पूर्णिमा को खगोलशास्त्रियों द्वारा 'पवन धारणा' प्रक्रिया से आने वाली वर्षा की भविष्यवाणी की जाती है.

यहां के यंत्रों में- 'सम्राट-यन्त्र'(जो एक विशाल सूर्यघडी है) , 'जयप्रकाश-यन्त्र' और 'राम-यन्त्र' सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं, जिनमें से 'सम्राट-यन्त्र' सर्वाधिक ऊंचा (धरती से करीब ९० फुट) है, जिसके माध्यम से पर्याप्त शुद्धता से समय बताया जा सकता है .

विश्व धरोहर सूची में शामिल जंतर-मंतर राजस्थान प्रदेश का पहला और देश का २८ वां स्मारक हो गया है. भरतपुर का घना पक्षी अभयारण्य यूनेस्को की सांस्कृतिक श्रेणी की विश्व धरोहर सूची में पहले से शामिल है. इससे इस नायब वेधशाला को नई अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलेगी ही, स्मारक के रखरखाव के लिए ४० हज़ार डॉलर का अलग फंड भी मिलेगा.