"मुक्तक": अवतरणों में अंतर

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हुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया


हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया
हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया

16:41, 28 जनवरी 2008 का अवतरण

मुक्तक काव्य या कविता का एक प्रकार है जिसमें पहली दूसरी और चौथी पंक्तियों में तुकात्मकता होती है । इसका एक उदाहरण कुमार विश्वास की इन पंक्तियों में -


बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया

हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया

रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा

कभी तुम सुन नही पायी कभी मै कह नही पाया

इसको रुबाई नाम से भी जानते हैं जिसका मूल अरबी है ।