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16 फ़रवरी 2022

  • 08:5408:54, 16 फ़रवरी 2022 अन्तर इतिहास +656 रविदास→‎दोहे: जीवन चारि दिवस का मेला रे! बाभन् झूठा, वेद भी झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे! मंदिर भीतर मूर्ति बैठी, पूजति बाहर चेला रे! लड्डु भोग चढ़ाबती जनता, मूर्ति के ढिंग केला रे! पत्थर मूर्ति कुछ ना खाती, खाते बाभन् चेला रे! जनता लुटती बाभन् सारे, प्रभु जी देति न ढेला रे! टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 08:4508:45, 16 फ़रवरी 2022 अन्तर इतिहास +645 रविदास→‎बाहरी कड़ियाँ: जीवन चारि दिवस का मेला रे! बाभन् झूठा, वेद भी झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे! मंदिर भीतर मूर्ति बैठी, पूजति बाहर चेला रे! लड्डु भोग चढ़ाबती जनता, मूर्ति के ढिंग केला रे! पत्थर मूर्ति कुछ ना खाती, खाते बाभन् चेला रे! जनता लुटती बाभन् सारे, प्रभु जी देति न ढेला रे! टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 08:1408:14, 16 फ़रवरी 2022 अन्तर इतिहास +66 रविदास→‎बाहरी कड़ियाँ टैग: Reverted Emoji मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन