विधानसभा अध्यक्ष

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विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा एवं विधानसभा सचिवालय का प्रमुख, पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष) होता है, जिसे संविधान, प्रक्रिया, नियमों एवं स्थापित संसदीय परंपराओं के अन्तर्गत व्यापक अधिकार होते हैं। सभा के परिसर में उनका प्राधिकार सर्वोच्च है। सभा की व्यवस्था बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी होती है और वे सभा में सदस्यों से नियमों का पालन सुनिश्चित कराते हैं। सभा के सभी सदस्य अध्यक्ष की बात बड़े सम्मान से सुनते हैं। अध्यक्ष सभा के वाद-विवाद में भाग नहीं लेते, अपितु वे विधान सभा की कार्यवाही के दौरान अपनी व्यवस्थाएँ/निर्णय देते हैं। जो पश्चात् नज़ीर के रूप में संदर्भित की जाती हैं।सभा में अध्यक्ष और उनकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सभा का सभापतित्व करते हैं और दोनों की अनुपस्थिति में सभापति तालिका का कोई एक सदस्य। सभापति तालिका की घोषणा प्रत्येक सत्र में माननीय अध्यक्ष सदन में करते हैं।

चयन प्रक्रिया[संपादित करें]

प्रत्येक राज्य की विधान सभा, यथाशक्य शीघ्र अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनती है और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है, तब-तब विधान सभा किसी अन्य सदस्य को, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनती है। [1]

पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाने की प्रक्रिया[संपादित करें]

विधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूंप में पद धारण करने वाला सदस्य-

  1. यदि विधान सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा।
  2. किसी भी समय, यदि वह सदस्य अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को संबोधित और यदि वह सदस्य उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
  3. विधान सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा, परंतु खंड (ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो, परंतु यह और कि जब कभी विधान सभा का विघटन किया जाता है तो विघटन के पश्चात होने वाले विधान सभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त नहीं करेगा।

पद में निहित शक्तियां[संपादित करें]

अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूंप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति-[2]

  1. जब अध्यक्ष का पद रिक्त है तो उपाध्यक्ष या यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त है तो विधान सभा का ऐसा सदस्य, जिसको राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।
  2. विधान सभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो विधान सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो विधान सभा द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रूंप में कार्य करेगा।

विवाद की स्थिति में[संपादित करें]

जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है, तब उसका पीठासीन न होना-

  1. विधान सभा की किसी बैठक में, जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है, तब अध्यक्ष या जब उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है, तब उपाध्यक्ष, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और संविधान के अनुच्छेद 180 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे, जैसे वह उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं, जिससे, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अनुपस्थित है।
  2. जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विधान सभा में विचाराधीन है, तब उसको विधान सभा में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा और वह अनुच्छेद 189 में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर प्रथमत: ही मत देने का हकदार होगा, किंतु मत बराबर होने की दशा में मत देने का हकदार नहीं होगा।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. [1]
  2. [2]