विद्यानन्द विदेह

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स्वामी विद्यानन्द विदेह (1899 - 1978) एक आर्यसमाजी चिन्तक, वैदिक विद्वान, लेखक एवं 'सविता' नामक पत्रिका के सम्पादक थे। उन्होने अजमेरदिल्ली में दो वेद सस्थानों की स्थापना की थी।

स्वामी विद्यानन्द 'विदेह' का जन्म 15 नवम्बर, 1899 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के टप्पल में हुआ। उनकी सफेद चमकीली लम्बी आकर्षक दाढ़ी होती थी। गौरवर्ण चेहरा कान्तियुक्त एवं देदीप्यमान रहता था। वाणी में मधुरता इतनी की यदि कोई उनकी वाणी को सुन ले तो चुम्बक के समान आकर्षण अनुभव होता था। उनकी प्रवचन शैली यह होती थी कि वह एक वेद मन्त्र प्रस्तुत करते थे। वेद मन्त्रोच्चार से पूर्व वह सामूहिक पाठ कराते थे ‘ओ३म् सं श्रुतेन गमेमहि मां श्रुतेन वि राधिषि’ (अर्थात् हे ईश्वर ! हम वेदवाणी से सदैव जुड़े रह वा उसका श्रवण करें तथा हम उससे कभी पृथक न हों।)

लेखन एवं सम्पादन[संपादित करें]

स्वामी जी अजमेर से ‘सविता’ नाम से एक मासिक पत्रिका का सम्पादन करते थे जिसमें अधिकांश व प्रायः सभी लेख भिन्न भिन्न शीर्षकों से उन्हीं के होते थे जिनका आधार कोई वेद मन्त्र व वेद की सूक्ति होता था। वह अच्छे कवि भी थे। वेद मन्त्र की व्याख्या के बाद वह मन्त्र के भावानुरूप एक कविता भी दिया करते थे।

स्वामी जी ने छोटे छोटे अनेक ग्रन्थ भी लिखे थे। उनकी पुस्तकों के नाम हैं गृहस्थ विज्ञान, अज्ञात महापुरुष, वैदिक स्त्री शिक्षा, मानव धर्म, सत्यानारायण की कथा, वैदिक सत्संग, स्वस्ति-याग, विजय-याग, विदेह गाथा, सन्ध्या-योग, जीवन-पाथेय, विदेह-गीतावली, दयानन्द-चरितामृत, कल्पपुरुष दयानन्द और शिव-संकल्प। इसके अतिरिक्त उन्होने अनेक वेद-व्याख्या ग्रन्थ भी रचे।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]