विद्याकर कवि

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स्वर्गीय श्री विद्याकर कवि बिहार के पूर्व शिक्षा एवं पथ निर्माण मंत्री थे। वह बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के पूर्व अध्यक्ष भी रहे थे। विद्याकर कवि बिहार के राजनैतिक पटल पर एक साफ़-सुथरे और मर्यादित छवि के नेता थे। भारत की आज़ादी की लड़ाई में भी उनका अहम योगदान था। 1942 में भारत छोडो आंदोलन के समय से ही विद्याकर कवि ने अहम भूमिका अदा की थी। वह अपने प्रारम्भिक जीवन में एक शिक्षक के रूप में अवैतनिक सेवा प्रदान कर रहे थे। हार विधानपरिषद में उनका कार्यकाल दस वर्षों का रहा था और वह 1957 से 1967 तक पदासीन रहे थे। उसके उपरांत वह 1967 से 1977 तक विधानसभा गये जहाँ उन्होंने शिक्षा और पथ निर्माण विभाग का पदभार संभाला। उनके नेतृत्व में बिहार की शिक्षा व्यवस्था को मजबूती प्रदान हुई थी।

विद्याकर कवि का शुरूआती जीवन[संपादित करें]

स्वर्गीय श्री विद्याकर कवि बिहार के पूर्व शिक्षा एवं पथ निर्माण मंत्री थे। वह बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के पूर्व अध्यक्ष भी रहे थे। विद्याकर कवि बिहार के राजनैतिक पटल पर एक साफ़-सुथरे और मर्यादित छवि के नेता थे। भारत की आज़ादी की लड़ाई में भी उनका अहम योगदान था। 1942 में भारत छोडो आंदोलन के समय से ही विद्याकर कवि ने अहम भूमिका अदा की थी। वह अपने प्रारम्भिक जीवन में एक शिक्षक के रूप में अवैतनिक सेवा प्रदान कर रहे थे। उनका मानना था कि पढ़ा लिखा और शिक्षित समाज जागरूक होकर अपने हक के लिए मजबूती से आवाज़ उठा सकता है। तदुपरान्त उन्होंने 23 फरवरी 1953 को शिक्षण कार्य को त्याग दिया और समग्र रूप से बिहार की राजनीती में सलग्न हो गए। उसके बाद उनके मर्यादित स्वभाव और गाँधीवादी विचारों ने उन्हें बिहार विधान परिषद् में स्थान अर्जित करने में सहयोग किया। बिहार विधानपरिषद में उनका कार्यकाल दस वर्षों का रहा था और वह 1957 से 1967 तक पदासीन रहे थे। उसके उपरांत वह 1967 से 1977 तक विधानसभा गये जहाँ उन्होंने शिक्षा और पथ निर्माण विभाग का पदभार संभाला। उनके नेतृत्व में बिहार की शिक्षा व्यवस्था को मजबूती प्रदान हुई थी।


विद्याकर कवि का जन्म 1923 में बिहार के आलमनगर में स्व० मनमोहन कवि और श्रीमति राजरानी के घर में हुआ था। उनके पिता ब्रज भाषा के जाने-माने कवि और लेखक थे। उनके पिता मनमोहन कवि की कई रचनाएँ अध्येताओं के अध्ययन का विषय रहा है। विद्याकर कवि बचपन से ही अत्यंत मेधावी और प्रतिभावान थे। उन्होंने अपने जीवन के शुरआती समय में ही शिक्षा के महत्त्व को समझ लिया था। उनका मानना था कि समाज को सुदृढ़ करने के अपनी भूमिका अदा कर सकता है। अपने छात्र जीवन से ही वे भारत की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा बन चुके थे। वे गांधीवादी विचारधारा से बेहद प्रभावित थे। उन्होंने आज़ादी के संग्राम से जुडे कई आंदोलनों में जाना आरम्भ किया और उनका प्रभाव कुछ ही समय में बहुत अधिक हो चूका था। इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगे जा सकता है कि अंग्रेजी हुकूमत ने विद्याकर कवि को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी कर दिया था। इसी बीच उनकी माँ का भी देहवासन हो गया था। विद्याकर कवि बच-बचाकर अपनी माँ के अंतिम संस्कार में पहुंचे थे लेकिन इस बात की खबर पहले ही अंग्रेजी हुकूमत को लग गयी थी। उन्हें वहीँ पर पुलिस द्वारा घेर लिया गया था। लेकिन वे गंगा में छलांग कर वहां से भागने में कामयाब हो गये थे।

राजनीतिक जीवन की शुरआत[संपादित करें]

विद्याकर कवि छात्र जीवन से ही राजनीती में सक्रिय हो थे। उन्होंने गाँधी के विचारों से प्रेरणा लेते हुए, भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी भाग लिया था। उन्होंने भारत की आज़ादी की लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन भारत छोडो आन्दोलन में भी अपनी भूमिका निभाई थी। इसके अतिरिक्त वह कई आंदोलनों में अग्रणी रहे थे। वह केवल आंदोलनों में भाग ही नहीं ले रहे थे, बल्कि उनका एक प्रभावी नेता के रूप में उदय भी हो रहा था। इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके प्रभाव को कम करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने कई दावं पेंच लगाने शुरू कर दिए थे। लेकिन जब अंग्रेज़ अपनी हर कोशिश में नाकामयाब होने लग गए तो उन्होंने विद्याकर कवि को देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया था। लेकिन तब तक विद्याकर कवि का प्रभाव एक नेता के रूप में बहुत ही अधिक बढ़ चुका था। नतीजा यह रहा कि अंग्रेजी हुकूमत के लाख प्रयत्न के बावजूद वे इन्हें रोकने में असफल रहे थे। हालांकि, एक समय ऐसा भी आया था कि जब विद्याकर कवि को अंग्रेजी पुलिस द्वारा चारो तरफ से घेर लिया गया था लेकिन उस समय वे वहां से बच निकलने में कामयाब रहे थे।

1947 में भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी मिलने के बाद विद्याकर कवि ने एक नए जंग का एलान किया था और वो जंग “अशाक्षरता” के खिलाफ शाक्षरता का बिगुल बजाना था। आज़ादी के बाद विद्याकर कवि ने बिहार के आलमनगर और आस-पास के क्षेत्रों में शिक्षा का विस्तार करना शुरू कर दिया था। अपने जीवन के शुरआती क्षण उन्होंने इस क्षेत्र में एक शिक्षक की भूमिका अदा की और क्षेत्र को एक अवैतनिक सेवा प्रदान कर शिक्षा के महत्व को सभी तक पहुँचाया था। लगभग छ: वर्षो तक एक शिक्षक के रूप में सेवा प्रदान करने के बाद उन्होंने समाज के उत्थान हेतु राजनीती में हिस्सा लिया। उनका मानना था कि अगर शिक्षा को अधिक विस्तार देना है तो यह केवल सरकारी तंत्र की सहायता से किया जा सकता है। लेकिन सरकारी तंत्र से कोई ख़ास मदद ना मिलती देख उन्होंने स्वयं ही सरकार का हिस्सा बन बिहार की शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने का प्रण किया था। 29 फरवरी 1953 को उन्होंने कांग्रेस पार्टी में एक कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनैतिक जीवन प्रारंभ किया था। विद्याकर कवि के प्रभाव को कांग्रेस ने जल्द ही पहचाना और उन्हें पार्टी में जल्द ही ऊँचे पद से सम्मानित करते गए। उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्षण वर्ष 1957 में आया, जब उन्हें बिहार विधानपरिषद का सदस्य चुना गया था। महज चार वर्षों के भीतर ही कांग्रेस ने उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें इतने महत्वपूर्ण संवैधानिक पद से सम्मानित किया था। उन्हें लगातार दो बार विधानपरिषद के लिए चुना गया था।

विधानपरिषद के सदस्य बनने के उपरांत बिहार के राजनैतिक पटल पर उनका सूर्य उदयमान रहा और वह अपने बेबाक राय और निर्भीक तार्किक के कारण एक बडे राजनेता के रूप में उभरने लगे। इसका प्रमाण उन्होंने तीन बार विधानसभा चुनाव जीत कर दिया था। 1967 में उन्होंने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और उसमे उन्हें भारी सफलता प्राप्त हुई थी। उनकी राजनैतिक सफलताओं का सिलसिला यही नहीं थमा। उन्होंने बिहार के आलमनगर विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव में सफतला हासिल की थी। 1969 में वो दौर भी आया जब कांग्रेस दो फाड़ में बंट चूका था लेकिन तब भी विद्याकर कवि ने मुख्य कांग्रेस की धारा को बिहार में मजबूती से संभाले रखा था। उनकी इसी क्षमता को ध्यान में रखते हुए, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पर नियुक्त किया और 1972 के विधानसभा चुनाव की कमान उन्हें सौंप दी थी। फलस्वरूप, विद्याकर कवि ने बिहार में मुख्य कांग्रेस को बिहार में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने में कामयाबी प्राप्त कराईं। उनकी इस कामयाबी और प्रभावी नेतृत्व ने उनका राजनैतिक कद कई गुना बढ़ा दिया था।


इस दौरान उन्हें शिक्षा, राजभाषा, पथ निर्माण इत्यादि जैसे कई विभाग में मंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया था। उनके नेतृत्व में शिक्षा के क्षेत्रकई क्रांतिकारी बदलाव लाए गये थे। उनका विशेष ध्यान बिहार के उन क्षेत्रों पर था जहाँ पर मूलभूत शिक्षा के इंतज़ाम भी उपलब्ध नहीं थे। उन्होंने उन् क्षेत्रों में कई स्कूलों का निर्माण कार्य कराया था। पथ निर्माण मंत्रालय के कार्यभार को भी उन्होंने बखूबी निभाया था। उन्होंने बिहार के कई क्षेत्रों में बाढ़ और अपराध से निपटने हेतु और उन्हें मुख्या धरा से जोड़ने के इरादे से सडकों का निर्माण करवाया। उन्होंने अपने सुपुत्र और पूर्व विधायक विभूति कवि के आग्रह पर बिहपुर से वीरपुर सड़क का निर्माण करा उसे राजपथ का दर्जा दिलवाया था। जिससे क्षेत्र में व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा मिला था। उनके अपने विधानसभा क्षेत्र आलमनगर का दक्षिणी भाग को बाढ़ एवं अपराध से मुक्ति दिलाने हेतु कई सडकों का निर्माण कराया जिसमे क्राइम कण्ट्रोल सड़क सबसे महत्वपूर्ण सिद्ध हुई थी। इसके अतिरिक्त अपने क्षेत्र में उन्होंने ने जल मीनार, बिजली, शिक्षा व्यवस्था, सड़क व्यवस्था इत्यादि को काफी सशक्त बनाया था।


बाढ़ सिंचाई मंत्री[संपादित करें]

70 के दशक में बिहार की राजधानी पटना भीषण बाढ़ के प्रकोप में आ गई थी। उस समय उन्हें सिंचाई विभाग का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया था। उनकी [प्रभावी नीतियों का ही परिणाम था कि पटना जल्द ही उस विनाशकारी बाढ़ से उभर गया था। साथ उनकी दूरदर्शी नीतियों क कारण ही पटना अगले कई दशकों तक उस प्रकार की विनाशकारी बाढ़ के भय से मुक्त हुआ था। अपनी भाषा की अहमियत को समझते हुए उन्होंने राजभाषा मंत्रालय बनाने के लिए सरकार के सम्मुख प्रस्ताव पेश किया जिसे स्वीकृत भी किया गया था। उनके नेतृत्व में ही बिहार को अपना राजभाषा मंत्रालय प्राप्त हुआ था और वे बिहार के पहले राजभाषा मंत्री नियुक्त किये गए थे।

बिहार के विकास एवं कल्याण के सोच रखने वाले प्रणेता विद्याकर कवि अकस्मात ही दुनिया को अलविदा कह गए। 31 जनवरी, 1986 को महज 62 वर्ष की आयु में विद्याकर कवि का हृदयाघात से निधन हो गया था। उनके साहित्यिक और शिक्षण कार्यों को सम्मान देते हुए बिहार सरकार ने उनके विद्याकर कवि साहित्यिक पुरस्कार की शुरूआत की थी। शिक्षा के क्षेत्र में उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए उनके मरणोपरांत बिहार के आलमनगर में उनके नाम से एक पुस्तकालय और इंटर कॉलेज की स्थापना की गई थी।

परिवार[संपादित करें]

विद्याकर कवि का विवाह श्रीमती राजकिशोरी कवि के साथ हुआ था। उनके दो पुत्र हैं। विद्याकर कवि के बड़े सुपुत्र श्री विभूति कवि बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के महासचिव एवं पूर्व सदस्य बिहार विधान परिषद हैं। वहीं उनके छोटे सुपुत्र हिमांशु कवि एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत हैं। उनके पौत्र सिद्धार्थ मोहन सुप्रसिद्ध लेखक हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

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  1. https://www.madhepuratimes.com/2014/01/vidyadhar-kavi.html
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 24 अप्रैल 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 अप्रैल 2021.
  3. https://www.bhaskar.com/BIH-PAT-HMU-MAT-latest-patna-news-020502-1904930-NOR.html/
  4. https://www.livehindustan.com/bihar/madhepura/story-remembered-vidya-kar-kavi-by-congress-workers-at-dular-in-madhepura-2385711.html
  5. https://www.jagran.com/bihar/madhepura-8831565.html