विकिपीडिया वार्ता:हिन्दी दिवस/प्रतिभागी

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हर रोज देखना पड़ता है[संपादित करें]

वो वक़्त अँधेरी रातों का, बिल्कुल सन्नाटा, छाया-छाया-सा, जो काँप रहा था, सुंदर -स्वच्छ आसमान के ऊपर, जिसके और भी ऊपर से हमने, टूटे हुए कुछ धूमिल खण्डों को, मडराते हुए देखा था ;

वक़्त पल भर ही गुज़रा था, थककर आखिर दो कदम, हम नीचे उतरे थे, अचानक चढ़ गया बादल☁ आसमान पर और अपना लेप लगाता है...

पेनरॉक नाथन (वार्ता) 18:07, 9 सितंबर 2018 (UTC)उत्तर दें

"हम सबका गर्व - हिंदी "[संपादित करें]

"हम सबका गर्व - हिंदी "

१४ सितम्बर (हिंदी दिवस)_______________एक अविस्मरणीय तिथि, जो साकार स्वरुप है उस विचारधारा का जो अतीत से लेकर वर्तमान तक हिन्द राष्ट्र की अविरल बहती हिंदी रूपी धारा से न केवल भारत अपितु दुनिया के कोने-कोने को सिंचित कर रही है|

भारत अंतराष्ट्रीय मानचित्र पर रेखांकित एक ऐसा देश है जिसकी गौरवमयी ऐतहासिक गाथा के गान से सम्पूर्ण विश्व गुंजायमान हो रहा है| ऐसे में भारत की पहचान को और भी सशक्त, समृद्ध और समग्र बनाने में इस देश की राष्ट्रभाषा का योगदान भी कम प्रशंसनीय नहीं है| परन्तु आज हिंदी के इस सम्मानजनक अवस्था में पदार्पित करने के पूर्व इससे जुड़े इतिहास का भी आकलन महत्वपूर्ण हो जाता है क्यूंकि चर्चा ही "हिंदी की समग्रता" की है|

भारत एक ऐसा राष्ट्र, जिसकी धन्यता और सम्पन्नता की कहानियों ने सदैव से दुनिया भर के आक्रांताओं को अपनी तरफ आकर्षित किया है और जब ये आक्रांता भारत-माता की सीमाओं में प्रविष्ट हुए तो निरंतर दोहन की उनकी मानसिकता ने उन्हें यहाँ रुकने के लिए मजबूर कर दिया और इसी के चलते भारत राष्ट्र और भारतीय जनमानस ने अनगिनत वर्षों तक गुलामी की कैद में स्वयं को ही तर्पित कर दिया |

परन्तु इतिहास ने करवट ली और भारत माता के वीर सपूतों के शौर्यवान प्रदर्शन ने १५ अगस्त १९४७ को भारत को आजादी के रथों पर बिठाकर विश्व मंच के पटल पर प्रेषित कर दिया लेकिन माँ भारती के नीति-निर्माताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी वो थी एक ऐसी भाषा जो भारत माँ को कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक-एका के सूत्र में पिरो सके क्यूंकि पूर्व से ही विविध भाषाओँ से परिपूर्ण भारत को अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा के भरपूर प्रयोग से आच्छादित कर रखा था लेकिन भारत का एक बड़ा हिस्सा इससे भी अछूता था| लिहाजा अंग्रेजी भाषा के बढ़ते प्रचलन को रोकने और स्वयं के भाषा की तरजीह देने की जद्दोजहद के बीच भारत के नीति-निर्माताओं ने आज ही के दिन १४ सितम्बर १९४९ को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दे दिया| तब से लेकर आज तक हिंदी सदैव पुष्पित और पल्लवित हुई है| परन्तु दुःख इस बात का है कि सम्पूर्ण विश्व की भाषा बन चुकी अंग्रेजी ने आज तक इसके सरल पथ को जटिल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है| आधुनिकता और दिखावे की चादर में लिपटा भारतीय जनमानस का एक तबका हिंदी आते हुए भी उससे एक दूरी बनाये हुए है, कहीं-कहीं अंग्रेजी बोलना स्टेटस सिंबल तक बन गया है फिर भी इन सभी नकारात्मक मनः स्तिथियों के होते हुए भी भारत की गर्व बनी हमारी भाषा हिंदी आज दुनिया के प्रत्येक कोने में सम्माननीय दर्जा पाने में सफल सिद्ध हो रही है|

हिंदी भाषा की सबसे बड़ी बाधा अंग्रेजी (लेखक संजय मीणा टोंक राजस्थान)[संपादित करें]

आज हमारा राष्ट्र हिंदी भाषा देश होते हुए भी आजकल हमारे देश में हिंदी भाषा का जनसामान्य मे बोलने के लिए हिंदी का प्रयोग बहुत ही कम होता जा रहा है इसमें सबसे बड़ी बाधा अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा देना एवं हिंदी भाषा को देशी भाषा समझ कर इसके प्रचार-प्रसार में कमी रखना हिंदी भाषा को विलुप्त करता आ रहा है। देश में कई शिक्षाएं ऐसी भी हैं जो केवल अंग्रेजी भाषा में ही पढ़ाई जाती है जैसे चिकित्सक बनने के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग आमतौर पर किया जा रहा है। अगर देश में हिंदी भाषा को सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू कर दिया जाए एवं समस्त कार्य निजी या सरकारी हिंदी भाषा में किया जाए तो देश में हिंदी भाषा का प्रचलन आमतौर पर बढ़ेगा।


जनसामान्य में हिंदी बोलचाल में मध्यवर्ती शब्द अंग्रेजी भाषा के प्रयुक्त किए जाते हैं उन शब्दों को सुधारने का प्रयत्न आमजन को करना चाहिए जैसे स्कूल को विद्यालय, डॉक्टर को चिकित्सक, टीचर को अध्यापक, जेल को कारागृह आदि आम शब्दों को हिंदी में बोला जाना चाहिए। इससे हिंदी भाषा में सुधार होगा एवं साथ ही साथ हिंदी भाषा का विकास जनमानस में होगा।

 हिंदी भाषा सहज सरल सटीक एवं आनंद  से परिपूर्ण  भाषा है और इस भाषा को हमें  एक चिरकाल समय तक जीवित रखना परम आवश्यक है।  हिंदी भाषा हिंदुस्तान की पहचान है और इस हिंदुस्तान की पहचान को  हम अब लुप्त नहीं होने देंगे हम अंग्रेजी भाषा को कम उपयोग में लेंगे एवं हिंदी को बढ़ावा देने मैं  आशा करता हूं यह लेख आपको पसंद आया होगा।  धन्यवाद

--Sanjaymeenatonkrajasthan (वार्ता) 10:13, 10 अक्टूबर 2018 (UTC)संजय मीणा टोंक राजस्थानउत्तर दें