वार्ता:हरिवंशराय बच्चन-प्रतीक्षा
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द्रुत् गति से लान्घे सीमाये क्षण चक्रो पर विराजमान अबाध् मार्ग है प्रशस्त् लोक् पर सर्व अद्वितिय समय महान् मुक्त् शर् भान्ति है प्रवृति रूप प्रतीत् न होता केश स्थिर् है आभा मुख् पर पाद् गरुड़ है विराज्मान् तटस्थ नियति पालन करे सर्व अद्वितिय समय महान् पन्च तत्वो मे विलीन सत्व है नव ग्रहो का पूर्ण सत्य है विशिष्ट विभिन्न लिये धरोहर विलक्षणतामय सतह बनाये क्रमागत-क्रमवार सजग-सरिता मे पारित् भाग का नही है प्रायश्चित और नही है कोई निदान् सदा-सर्वदा सजल् रूप से सर्व-अद्वितिय समय महान्
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