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वार्ता:राम सेवक यादव

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    लोहिया के विश्वसनीय साथी रामसेवक यादव जैसे समाजवादी नेताओं के संघर्षों से ही देश में समाजवाद की जड़ें मजबूत हो सकीं हैं। उनके जीवन पर आधारित "समाजवाद के प्रयोग धर्मी नायक राम सेवक यादव" नामक पुस्तक से ----
यह पहली पुस्तक है। जिसके लेखक पवन कुमार यादव हैं। जो एक गंभीर चिंतक हैं।


  राम सेवक यादव बचपन में कुश्ती, कबड्डी और गेंद खेलने, तथा आल्हा और बिरहा सुनने के बड़े शौकीन थे, जब बे बड़े हुए तो उन्हें किताबों से बड़ा लगाव रहा था | वे स्कूल से वापस आने के बाद अपने लँगोटिया यारों के साथ कभी कुश्ती, कभी कबड्डी तो कभी कंदुक क्रीडा का आनंद लिया करते थे | गेंद खेलने में उन्हें बड़ी रुचि थी | जब-तब स्कूल से आने के बाद रद्दी कागज, पुराने कपड़े और मिट्टी के कँकरीले टुकड़ों तथा सुतली के साथ गेंद बनाते और अपने साथियों के साथ शुक्लाई की गलियों में धमाचौकड़ी मचाते रहते थे | ‘गेंदताड़ी’ का खेल अक्सर होता रहता था | एक दिन स्कूल से वापस आने के बाद, साथियों के साथ रद्दी कागज, पुराने कपड़े और कँकरीली मिट्टी को रखकर उसको सुतली से अच्छे से बाँधकर गेंद बनाया और गेंद ताड़ी का खेल शुरू हो गया | साथीगण एक दूसरे को गेंद फेंक कर मारते, जब निशाना सही लग जाता और किसी साथी के पीठ पर मीठी सी चोट लगती तो बड़ा मजा आता था | काफी देर तक खेल ऐसे ही चलता रहा | उस दिन वाली गेंद कुछ ज्यादा ही मजा दे रही थी, क्योंकि उस दिन कंकरीली मिट्टी कुछ ज्यादा ही हो गई थी | एक दूसरे को मार-मार कर खूब मजा ले रहे थे | रामसेवक यादव के साथी ने इस बार उनको निशाना बनाया | उन्होंने अपने को बचाने के लिए पूरी कोशिश की और वे थोड़ा दाएं-बाएं हो गए, गेंद रामसेवक यादव को नहीं लगी | साथी ने गेंद काफी तेजी से फेंकी थी | वह गेंद रामसेवक यादव को न लग कर पड़ोस में बैठी एक बूढ़ी काकी को जा लगी | काकी को गेंद काफी जोर से लगी थी | काकी तो एक बार मूर्छित सी हो गई थी | बूढ़ी काकी को गेंद लगते ही सारे खिलाड़ी रफूचक्कर हो गए | बूढ़ी काकी को जब थोड़ा सा आराम मिला | तो क्रोध से उनका चेहरा लाल -पीला हो रहा था, उनके गुस्से का पारा सातवें आसमान पर था | 
     बूढ़ी काकी बहुत गुस्से में थी, वे राम सेवक यादव की बुआ के घर जा पहुंची और उनकी बुआ को रामसेवक यादव की करतूतों के बारे में जा बताया और खूब खरी-खोंटी सुनाई | रामसेवक यादव बड़े डरे से थे | वे दालान में डहरी की आड़ में जाकर छिपे गए थे, और वहीँ से सब सुन रहे थे | रामसेवक यादव की बुआ को बूढ़ी काकी की खरी खोटी सुननी पड़ी, गलती जो उनके लाडले ने की थी | उन खिलाड़ियों में सबसे बड़े रामसेवक यादव ही थे, वही खिलाड़ियों के नेता थे | इसलिए सब से ज्यादा दोषी भी वही थे |
   शाम को बुआ ने उन्हें अपने पास बुलाया, लेकिन उन्होंने भतीजे को डांटा नहीं | रामसेवक यादव धीरे-धीरे सामान्य हो गए | उनका डर खत्म हो गया | फिर बुआ ने बड़े प्यार से उनसे कहा कि ‘बाबू तुम्हें गेंद खेलना बहुत अच्छा लगता है, और तुम्हारे साथियों को भी | तुम्हें खुशी देने वाले काम से यदि किसी को दुख पहुँचे, तो क्या उसे रोज करना चाहिए ? रामसेवक यादव को बुआ की बात अच्छे से समझ आ गई थी | उन्होंने बुआ जी से कहा कि ‘बुआ जी मुझे माफ कर दो, मुझसे गलती हो गयी, हमें अपनी खुशी के लिए दूसरों को दुख देने वाले काम नहीं करने चाहिए | बुआ जी आगे से हम ऐसे खेल नहीं खेलेंगे और किसी को चोट भी नहीं पहुँचाएंगे, और कल जाकर काकी से माफी भी मांग लूंगा |
   रामसेवक यादव रात भर पश्चाताप की आग में जलते रहे | नींद नहीं आ रही थी, बस यही सोचे जा रहे थे, कि मेरे कारण आज काकी को चोट लग गयी | हमें गेंद में इतने कंकड़ नहीं डालने चाहिए थे | उस कल्लू को भी देख कर गेंद फेकना चाहिए | उसने भी बिना देखे काकी की ओर गेंद फेंक दिया | सोंचे जा रहे थे, उन्हें नींद नहीं आ रही थी | छप्पर के नीचे से बार-बार आसमान की ओर टिमटिमाते तारे देखते–देखते सुबह के इंतजार में, सारी रात गुजार दी | बड़ी बेसबरी से सुबह होने का इंतजार था | उजाला होते ही राम सेवक यादव उठ गए | बुआ ने कहा ‘आज तुम बहुत जल्दी, बिना उठाये उठ गए | रामसेवक यादव ने कहा “स्कूल जाने से पहले काकी के पास जाना है | राम सेवक यादव जल्दी–जल्दी तैयार होकर, बूढ़ी काकी के पास जा पहुँचे, और उनसे माफी मांगी और कहा, काकी मुझे माफ कर दो, मेरी वजह से आपको चोट पहुंची है | अब हम आगे से यह खेल नहीं खेलेंगे |’ काकी इतनी भी निर्दई नहीं थी | बस उन्हें चोट लग गई थी, इसलिए गुस्से में आकर उन्होंने शिकायत कर दी थी | राम सेवक यादव काकी के भी तो प्यारे थे | अक्सर उनके काम भी तो कर दिया करते थे | काकी ने उन्हें अपने पास बुलाया और सहलाया और कहा ‘मैंने तो तुम्हें पहले ही माफ कर दिया था | वैसे गलती तुम्हारी नहीं थी, गलती तो मेरी ही थी | जो मैं वहाँ बैठी थी, और तुम लोग खेल रहे थे | मुझे वहाँ बैठना ही नहीं चाहिए था | काकी ने उनसे कहा, तुम यहीं बैठो मैं अभी आई | काकी अपनी दालान को गई और अंदर से “मोथी” के लड्डू लेकर आयी और राम सेवक यादव को खाने के लिए दिया | रामसेवक यादव को “मोथी” के लड्डू बहुत पसंद थे | इस बार लड्डू की मिठास दुगनी हो गई थी | एक ओर उनकी पसंद का लड्डू जो मिला था, और दूसरी ओर काकी भी खुश हो गई थी, और माफ भी कर दिया था | राम सेवक यादव ने अब लगभग गेंद खेलना ही छोड़ दिया था | स्कूल के बाद अब अपना समय पढ़ने में बिताते थे, और जो समय बचता था, उसे वे बुआ के साथ उनके कामों में हाथ बटाने में बिताते थे |
         वे  छात्र जीवन से ही कांग्रेस की छात्र इकाई से जुड़े रहे, और आंदोलनों में भाग लेते रहे | वे छात्र जीवन में ही कई बार जेल गए थे | लखनऊ विश्वविद्यालय में विधिस्नातक की पढ़ाई करते हुए उन्हें आचार्य नरेंद्रदेव का सानिध्य मिला, उन्हीं की कृपा से वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े और उनके तथा डॉ0 लोहिया के मार्ग पर चल पड़े | इस मार्ग पर चल कर शोषितों के संरक्षक बनें |
      वे सच्चे समाज सुधारक थे , उनके मार्गदर्शन से प्यारे सिंह जैसे कई डाकू अपराध के रास्तों को छोड़ कर, सेवा, भक्ति और स्वावलंबन के रास्ते पर चल पड़े थे | जिधर कहीं भी अन्याय हो रहो हो, वे अन्यायी के बिरुद्ध खड़े नजर आते थे, अन्यायी कितना भी ताकतवार क्यों न रहा हो |
     16 अक्टूबर सन् 1955 को हुए बड्डूपुर कांड ने हर किसी को दह्ला दिया था | सामंती आततायियों के बिरुद्ध खड़ा होने का कोई साहस भी नहीं कर रहा था | जनपद में ‘समाजवाद की पहली जड़ अवध शरण वर्मा’ और सिया राम वर्मा को समाप्त करने का दु:साहस करने वाले सामंतवादियों को राम सेवक यादव ने उनके किये का दंड दिलाया, और  शहीदों की सहादत को जाया न जाने दिया, बल्कि संघर्षों को जारी रखकर जनपद में समाजवाद का वटवृक्ष खड़ा कर दिया था | जननायक रामसेवक यादव, शोषितों की आवाज, और जनता का विश्वाश बन चुके थे |        
   सन् 1952 में हुए उत्तर प्रदेश की पहली विधान सभा के चुनाव में रामसनेहीघाट (280) विधान सभा से सोश्लिस्ट पार्टी के प्रत्यासी थे | कांग्रेस प्रत्याशी महंत जगन्नाथ बख्सदास से हार गए थे | 1955 की घटना के बाद हुए उप चुनाव में, वे ‘रामनगर’ विधान सभा क्षेत्र से भारी मतों से जीते थे | राम सेवक यादव बाराबंकी की लोकसभा सीट से 1957 से 1971 तक दूसरी, तीसरी, और चौथी लोक सभा के सदस्य रहे | 1971 में पांचवीं लोकसभा के हुए पहले मध्यावधि चुनाव में, जनसंघ का प्रत्यासी न खड़ा होने के कारण, उसके वोट कांग्रेस को ट्रांफर हो गए थे | जिसके कारण रामसेवक यादव कांग्रेस के प्रत्यासी कुंवर रूद्र प्रताप सिंह से हार गए थे | सन् 1972 में दरभंगा बिहार में हुए लोकसभा उप चुनाव में रामसेवक यादव कांग्रेस के सत्ता बल और धन बल के प्रयोग कारण कांग्रेस के प्रत्यासी ललित नारायण मिश्रा (पूर्व,रेलमंत्री), से चुनाव हर गए थे | सन् 1974 में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह के साथ मिल कर चुनाव लड़े थे | और वे रुदौली विधान सभा से भरी मतों से चुनाव जीते थे | उत्तर प्रदेश में बनी सरकार में वे उप नेता विरोधी दल थे  |        
   भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में कांग्रेस सरकार के विरूद्ध पहला अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले कर्तव्य निष्ठ राम सेवक यादव ही थे । विपक्ष की ताकत केवल संख्या बल से ही नहीं तय होती है | विपक्ष में संख्या कितनी ही कम क्यों न हो, यदि नेताओं की नीति, नियत साफ हो, उनमें जनता, जनतंत्र, और संविधान के प्रति, गहरी निष्ठां और ईमानदारी हो, तो विपक्ष की एक संख्या से भी सत्ता पक्ष  घबराया ही रहता है | रामसेवक यादव इन सब गुणों से युक्त थे | वे लोकसभा में दल के नेता थे | सत्ता पक्ष उनके सदन में आते ही भयभीत रहा करता था | वे हरिजनों, पिछड़ों की आवाज थे | सदन के अन्दर-बाहर उनके हक लिए जीवन भर लड़ते-झगड़ते रहे | उनका कहना था कि ‘हरिजन, आदिवासी, पिछ्ड़ी, स्त्री जाति से कोई प्रधान मंत्री बने तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी |’ वे शोषित वर्गों को राजनीति में आरक्षण देने की बात करते थे | वे समता के पोषक और सच्चे समाजवादी थे | सरलता तो उनमें कूट-कूट कर भरी थी | डॉ० लोहिया उन पर सबसे ज्याद विश्वाश करते थे |     वे प्रशिक्षणों के माध्यम से कार्यकर्ताओं की फोज खड़ी कर सोशलिस्ट पार्टी को मजबूती से खड़ा करते रहे।       
 समाजवाद के साधक बाबू राम सेवक यादव का जन्म दो जुलाई 1926 को, देवां और महादेवा की पावन संस्कृति वाले बाराबंकी जनपद के ताला-रुक्नुद्दीनपुर गाँव की धरती पर में हुआ था । दिनांक 22 नवम्बर 1974 को शोषितों के मसीहा को काल ने  छीन लिया था |                                                                                                       
         
                                       -- जर्नलिस्ट पवन कुमार