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वार्ता:राजस्थानी भाषा

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पृष्ठ विवाद को तथ्यात्मक विश्लेषण कर सुलझाया गया।2405:205:118A:BB1:3C87:171F:DA90:225D (वार्ता) 08:53, 31 दिसम्बर 2020 (UTC)Wikipediaउत्तर दें

राजस्थानी भाषा प्रेरक गीत

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डॉक्टर सुखवीर सिहं कविया का गीत "मायड़ बोली" एक प्रेरक गीत के रूप में है जो राजस्थानी भाषा की महत्ता बताता है और ज्यादा से ज्यादा राजस्थानी बोलने हेतु प्रेरित करता है - मीठो गुड़ मिश्री मीठी, मीठी जेडी खांड मीठी बोली मायडी और मीठो राजस्थान ।।

गण गौरैयाँ रा गीत भूल्या भूल्या गींदड़ आळी होळी नै, के हुयो धोरां का बासी, क्यूँ भूल्या मायड़ बोली नै ।।

कालबेलियो घुमर भूल्या नखराळी मूमल झूमर भूल्या लोक नृत्य कोई बच्या रे कोनी क्यू भूल्या गीतां री झोळी नै, कै हुयो धोरां का बासी क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।

जी भाषा में राणा रुओ प्रण है जी भाषा में मीरां रो मन मन है जी भाषा नै रटी राजिया, जी भाषा मैं हम्मीर रो हट है धुंधली कर दी आ वीरां के शीस तिलक री रोळी नै, के हुयो धोरां का बासी, क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।

घणा मान रीतां में होवै गाळ भी जठ गीतां में होवे प्रेम भाव हगळा बतलाता क्यू मेटि ई रंगोंळी नै, के हुयो धोरां का बासी क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।

पीर राम रा पर्चा भूल्या माँ करणी री चिरजा भूल्या खम्माघणी ना घणीखम्मा है भूल्या धोक प्रणाम हमझोळी नै के हुयो धोरां का बासी, क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।

बिन मेवाड़ी मेवाड़ कठै मारवाड़ री शान कठै मायड़ बोली रही नहीँ तो मुच्चयाँळो राजस्थान कठै ।। Sukhveer singh kaviya (वार्ता) 06:49, 6 दिसम्बर 2022 (UTC)उत्तर दें