वार्ता:माउंट आबू

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क्षेत्रफल-25वर्ग किमी. वर्षा- 153से 177सेंमी. कब जाएं-फरवरी से जून और सितंबर से दिसंबर माउन्ट आबू भारत का प्राचीनतम पर्वत हैं। माउंट आबू राजस्थान का वह स्थान है, जहां गर्मी हो या सर्दी हमेशा सैलानियों का तांता लगा रहता है।

कुछ रोचक प्रचलित कथाएँ इस स्थान के बारे में --:

1-इस शहर का पुराना नाम 'अर्बुदांचल 'बताया जाता है.पुरानो के अनुसार इस जगह को अर्बुदारान्य [अर्भु के वन.] के नाम से जाना जाता है.कहते हैं वशिष्ठ मुनि ने विश्वामित्र से अपने मतभेद के चलते इन वनों में अपना स्थान बना लिया था.

2-एक कहावत के अनुसार आबू नाम हिमालय के पुत्र आरबुआदा के नाम पर पड़ा था। आरबुआदा एक शक्तिशाली सर्प था, जिसने एक गहरी खाई में भगवान शिव के पवित्र वाहन नंदी बैल की जान बचाई थी ।

3-माउंट आबू अनेक ऋषियों और संतों का देश रहा है. इनमें सबसे प्रसिद्ध हुए ऋषि वशिष्ठ, कहा जाता है कि उन्होंने धरती को राक्षसों से बचाने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया था और उस यज्ञ के हवन-कुंड में से चार अग्निकुल राजपूत उत्पन्न किए थे।

इस यज्ञ का आयोजन आबू के नीचे एक प्राकृतिक झरने के पास किया गया था, यह झरना गाय के सिर के आकार की एक चट्टान से निकल रहा था, इसलिए इस स्थान को गोमुख कहा जाता है।

४- पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं.

५-कहा जाता है कि भारत में संत, महापुरुष यहाँ के पहाड़ों में निवास करते थे। मान्यता है कि हजारों देव, ऋषि-मुनि स्वर्ग से उतरकर इन पहाड़ों में निवास करते थे

६ -जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूज्यनीय तीर्थस्थल बना हुआ है।

माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है। सिरोही जिले में स्थित नीलगिरि की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। हरे-भरे जंगलों से घिरी पहाड़ियों के बीच एक शांत स्थान, माउंट आबू, राजस्थान के रेतीले समुद्र में एक हरे मोती के समान है।

अरावली पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी छोर पर स्थित इस पहाड़ी स्थान का ठंडा मौसम पूरे पहाड़ी क्षेत्र को फूलों से लाद देता है, जिसमें बड़े पेड़ और फूलों की झाड़ियां भी शामिल हैं। माउंट आबू को जाने वाला मार्ग यदि आकाश मार्ग से देखा जाए तो ऊंची-ऊंची चट्टानों के बीच घुमावदार रास्ते उच्च वेग वाली हवा के साथ एक बिंदु-रेखा के समान दिखाई देंगे। राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन, माउंट आबू गर्मियों में लिए एक स्थान से कहीं अधिक है।

माउंट आबू पहले चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों कापसंदीदा स्थान था।

'''पहुँचें'''

वायु मार्ग से-


निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर यहां से 185किमी.दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुंचने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं।

रेल मार्ग से-

नजदीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड 28किमी.की दूरी पर है जो अहमदाबाद,दिल्ली, जयपुर और जोधपुर से जुड़ा है।

सड़क मार्ग से-

माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिएअपनी सेवाएं मुहैया कराती हैं।

घूमने की जगह-

दिलवाड़ा जैन मंदिर,नक्की झील-टॉड रॉक और नन रॉक-गोमुख मंदिर-माउंट आबू वन्यजीव अभ्यारण्य-गुरु शिखर-सूर्यास्त स्थल (सनसेट पॉइंट) -ट्रेवोर्स टैंक - अर्बूदा देवी का मंदिर-वास्तुपाल और तेजपाल मंदिर-अचलेश्वर और अचलगढ- गौतम आश्रम, अंबाजी, ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय -ओमशांति भवन !

खरीदारी-

राजस्थानी शिल्प का सामान खरीदा जा सकता है। यहां की संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियों और सूती कोटा साड़ियां काफी लोकप्रिय है। यहां की दुकानों से चांदी के आभूषणों की खरीददारी भी की जा सकती है।

समाचारों में-

१-16 march २००९ रविवार को माउंट आबू मार्ग स्थित आरणा गांव के समीप घने जंगलों में अचानक आग भडकउठी थी.बहुत से प्रयासों के बाद ही आग को बुझाया जा सका.

२- नक्की झील के उत्तरी तट पर तीन करोड़ की लागत से माउंट आबू में देश का सबसे बड़ा मछलीघर (अक्वेरियम) बनने जा रहा है।

3-भालुओं के लिए प्रसिद्ध माउंट आबू वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का अस्तित्व इस इलाके में हो रहे अवैध निर्माण से खतरे में है.

4-एक जगह यह पढा है-- दुनिया जहान में हिल स्टेशन माना जाने वाला माउंट आबू प्रदेश सरकार की ओर से हिल स्टेशन घोषित नहीं है इसलिए यहाँ वनकर्मियों को हिलस्टेशन की सुविधाएँ (हार्ड ड्यूटी एलाउंस) नहीं मिलतीं।

दिलवाड़ा जैन मंदिरः

कहते हैं सात अजूबों से कम नहीं हैं ये मंदिर. पौराणिक कथा के अनुसार -भगवान विष्णु के नये अवतार बालमरसिया ने इस मंदिर की रुपरेखा बनाई थी. इन आकर्षक ढ़ग से तराशे गए मंदिरों का निर्माण 11 वीं और 13 वीं सदी में हुआ था। ये जैन तीर्थकारों के संगमरमर से बने ललित्यपूर्ण मंदिर हैं। प्रथम तीर्थकर का विमल विसाही मंदिर सबसे प्राचीनतम है। इसका निर्माण सन् 1031 में विमल विसाही नामक एक व्यापारी ने किया था जो उस समय के गुजरात के शासकों का प्रतिनिधि था। यह मंदिर वास्तुकला के सर्वोत्तम उदारहण हैं। यह पांच मंदिरों का समूह है.

प्रमुख मंदिर में ऋषभदेव की मूर्ति व 52 छोटे मंदिरों वाला लम्बा गलियारा है, जिसमें प्रत्येक में तीर्थकरों की सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित है तथा 48 ललित्यपूर्ण ढ़ग से तराशे हुए खंभे गलियारे का प्रवेश द्वारा बनाते हैं।

बाइसवें तीर्थंकर - नेमीनाथ का लून वसाही मंदिर का निर्माण दो भाइयों वस्तुपाल व तेजपाल ने ईसवी सन् 1231 में किया वे पोरवाल जैन समुदाय से संबंध रखने वाले गुजरात के शासक राजा वीर धवल के मंत्री थे। द्वारा के खोलों डयोढ़ी पर बने खंभों, प्रस्तर पादों व मूर्तियों के कारण मंदिर शिल्पकला का बेहतरीन नमूना है।

1231 में इस मंदिर को तैयार करने में 1500 कारीगरों ने काम किया था। वो भी कोई एक या दो साल तक नहीं। पूरे 14 साल बाद इस मंदिर को ये खूबसूरती देने में कामयाबी हासिल हुई थी। उस वक्त करीब 12 करोड़ 53 लाख रूपए खर्च किए गए।''''

राजस्थान का एक मात्र पर्वतीय स्थल माउन्ट आबू अरावली पर्वत माला के दक्षिण सिरे पर पहाडियो के बीच मे बसा हुआ है। इसे राजस्थान का कश्मीर भी कहा जाता है। ११वी-१३वी शताब्दी का उत्सकृष्ट दिलवाडा मन्दिर जैन मन्दिरो के विस्मयकारी समुह के कारण आबु माउन्ट को तीर्थस्थलो की श्रेणी मे रखा गया है। आख्यानो के अनुशार आबू हिमालय के पुत्र का प्रतिक है, जिसका नाम शक्तिशाली सॉप "अरबुदा" से पडा है। जिसने भगवान शिव के पवित्र सान्ड "नन्दी" को गहरी खाई मे गिरने से बचाया था।

माउन्ट आबू साधु सन्तु का निवास स्थल रहा है। इनमे सन्त वशिष्ठ भी थे।जिनके बारे मे कहा जाता है कि इन्होने धरती से राक्षसो का नाश करने के लिऐ यज्ञ द्वारा अग्नि कुण्ड से चार अग्निकुल राजपूत वशो को उत्पन किया था। शहर के करीब स्थित एक प्राकृतिक झरने के पास इस यज्ञ का आयोजन किया था। यह झरना गाय के सिर जैसी आकृति वाली चटटान से फुटता है।इसलिऐ इस क्षेत्रको गोमुख कहा जाता है।

२८ दिसम्बर से ३१ दिसम्बर तक यहॉ राजस्थान परियटर्न द्वारा शरद महोत्सव का आयोजन 

करती है जिसमे एक लाख देशी-विदेशी पर्यटक मोजुद होते है। इन्ह तिन दिनो मे विभिन्न प्रतीसपर्धाओ का आयोजन होता है। जैसे मटका रैस, कब्बडी, फलाईन्ग, पतगबाजी, एवम रात्रिकालिन समय मे देश भर से आई मण्डलीयो द्वारा लोक गीति, लाफ्टर शो, सहित कई तरह के सास्कृतिक कार्यक्रमो का आयोजन होता है। ३१ दिसम्बर को वहॉ का तापमान ० डिग्री से भी निचे चला जाता है। यहॉ कि शाफ्टी आईसक्रिम का स्वाद लेने लोग दुर दुर से आते है।

नक्की झील-: पहाडियो के बीच स्थित यह एक सुरम्य छोटी सी झील नगर के मध्य स्थित होने के कारण पर्यटको के आकर्षण का केन्द्र है। इसमे नोका विहार भी है चार और छ सीट बोट का ३० मिनट का चार्ज है १००-२०० रुपया। आप चाहे तो पेडल बोट भी ले सकते है। इस झील के आसपास अनेक टापू भी है। झील के चारो ओर चटटान की अजब सी आकृति विशेष आकर्षण का केन्द्र है। "टॉड रॉक" (चटटान) जो वास्तविक मेढक की तरह लगती है। देखने पर ऐसा लगता है मनो यह अभी झील मे कुद पडेगा। इसके अलावा "नन रॉक" " नन्दी - रॉक" आदि भी है।

नक्की झिल का नाम नक्की इसलिऐ पडा क्यो कि यह नाखुनो से खोदी गई थी। अगर मजेदार चाय पीने का मन करे तो ठीक नक्की के सामने हॉटल है एक मलाई-चाय कि कीमत १० रुपया। यहॉ बर्हृमाकुमारी समुदाय का वर्ल्ड स्प्रीचुअल यूनिवर्ससिटी "ॐ शान्ति भवन" है। यहॉ के खम्बे युक्त हॉल मे तकरीबन ३५००-४००० लोगो के बैठ्ने कि जगह है, और ट्रान्सलेटर माइक्रो फोन द्वारा इच्छीत १०० भाषाओ मे व्याख्यान सुन सकते है।

दिलवाडा जैन मन्दिर, गोमुख मन्दिर,अधरदेवीमन्दिर, सन सैट पॉइन्ट, हानीमुन पॉइन्ट, श्री रघुनाथजी का मन्दिर, बाग बगीचे, सग्रहालय व कलादिर्धा, ट्रेवर्स टेन्क् (५ किमी) अचलगढ किला (८ किमी) और जो रामप्यारी के ब्लोग पर चटटान का फोटु दिखाया गया वो चटटान गुरु शिखर जो अरावली पर्वत माला का उच्चतम शिखर (समुन्द्र तल से १७२२ मीटर ऊचॉ है, जहॉ फोटुग्राफी के लिऐ गाईड रुकाते है।

यह वन स्थल है। यहॉ के जगलो मे भालु एवम शीते पाऐ जाते है। यहॉ से शुध्द सिन्दुर एवम कुमकुम खरीदा जा सकता है।

यहॉ पहुचने के लिऐ आबुरोड रेल्वे स्टेशन उतरकर २८ किमी उपर पहाडी पर बस, टेक्सी, से सफर करना होगा। यहॉ गणगोर का त्योहार एक महीने तक चलता है जो माउन्ट आबू के जन्गलो मे रहने वाले गरासिया आदिवासी-जाति के लोग मनाते है।

इसी त्योहार के दोरान आदिवासी युवक अपनी मनपसन्द लडकी के साथ विवाह रचाता है, जो देखने लायक है (पर आप को अगर यह फ्रेस्टिवल देखना हो तो स्थानीय लोगो के सहयोग से ही ऐसा करे।)

यहॉ रुकने के लिऐ पॉच सितारे होटलो से लेकर धर्मशालाओ कि व्यवस्था है। खाने के लिऐ अरबुदा होटल, उत्तम है।