वार्ता:भटनी

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नमस्कार जी आप लोग कैसे है, सबसे पहले प्रेम से बोलते है जय बाबा फरसा वाले और आगे बढ़ते हुए भटनी के बारे में जान लेते है,

भटनी - भटनी बाजार के नाम से मशहूर एक रेलवे स्टेशन है, और देवरिया जिले का एक ब्लॉक भी है, यहाँ का पिन कोड नंबर २७४७०१ है ,

भटनी में जालपा माई का मंदिर बहुत ही मशहूर है यहाँ न जाने कितने जिलो से लोग आते है और माता की भक्ति में डूब जाते है, भटनी बाजार से २ किलो मीटर उत्तर के तरफ एक गॉव है मिश्रौली दीक्षित यहाँ पे एक उभरता हुआ लोक गीत और भोजपुरी गायक है माननीय कन्हैया कुमार दीक्षित जी , इनसे मेरी मुलाकात २००७ में हुई थी , जिन्होंने अपने मुखर से जालपा माई का गीत गया हुआ है , जय हो जालपा माई जो आप लोगो को यू टूब में भी मिल जायेगा अगर आप लोग सर्च करेंगे तो , बहुत ही रमणीय दृश्य देखने को मिलता है अक्सर शाम के समय जब गंडक नदी के किनारे आप घूमते हुए नजर आएंगे , प्रेम से बोलते है जय बाबा मोदक वाले , और आइये एक कविता लिख देते है आप लोगो के लिए ,

हिन्दोस्तान के बीचों-बीच है शहर मेरा भटनी बाजार ऊसका नाम है । शहर मुझे याद नहीं करता होगा पर मुझे शहर की याद आती है।

वो नुक्कड़ , चौराहा ,सुभाष इण्टर कॉलेज पे पड़ना जब भी मौका मिलता है जरूर घूम आता हूँ भाग कर पहुचता हूँ-फडफड़ाए पक्षी सी। किसी जगह से जुड़ाव के लिए तीस साल का वक्फा कम तो नहीं। यूं मेरा शहर अब वो शहर भी नहीं।

मैंने बचपन बिताया मिश्रौली दीक्षित में युवा सपने देखे हैं यहाँ भटनी में यहाँ की धूल-धूप, हवा-पानी का क्या करू बखान मणि सबसे नाता है मेरा, यहाँ की नदियों से , जालपा माई से और अपनी मार निर्मल से, एक-एक पत्थर को जनता हूँ मै, खुद अपने आप को और अपने दोस्तों को पहचानता हूँ में , हर एक मोड़ से परिचित हूँ मै, चाहे वो ढाला हो या, समोशे की दूकान, मेरी जड़ें हैं जैसे यहाँ जब भी आता हूँ ताजगी आ जाती है।

हाँ, मगर अब मेरा शहर वो शहर भी नहीं। बदल दिया है वक्त ने मेरा शहर। खेत-खलिहानों वाला शहर अब ऊँची इमारतो वाला शहर होता जा रहा है। इमारतों का कद बढ़ रहा है आदमियत का कद घट रहा है। नहीं महसूस होती अब वो पहले सी बात। खो गईं है मुझसे अब रास्तों की पहचान अजनबी लगने लगे दोस्त मेरे इस बार तो मौसम तक मुझे रास न आया।

बहुत बदल गया है मेरा शहर इसके रंग-ढंग, इसके तेवर, इसकी हवा-सब नया हो गया है किसी धर्मग्रन्थ की शिक्षा सा मेरा शहर अब हादसे पी उठा है। बेगानों को अपना लेने में माहिर मेरा शहर अब अजनबियत परोस उठा है।

बहुत तकलीफ हुई जब बिलकुल नए चेहरे देखे और वो भी पुराने चेहरों पर। धरी की धरी रह गई ललक की सालों बाद दिखूंगा तो मेरे परिचित, मेरे मित्र हाथों हाथ लेंगे। की मेरे बुज़ुर्ग, मेरे आदरणीय आशीषें देंगे। अब किसी को किसी के लिए फुर्सत नहीं।

क्या हुआ उन आँखों को जो देखते ही स्नेह से भीग उठतीं थीं अरे! बेटवा आया है? कैशन बाड़ ? कब आइल है ? ये क्या अकेले आये ? कुछ साथ क्यों नहीं लाये ? कहाँ गए दोस्तों के वो आत्मीय उलाहने इतने-इतने दिन याद नहीं आती हमारी? आत्मीयता की कहीं भी तो गंध नहीं। नहीं, ये शहर अब वो शहर ही नहीं।

मै हर परिचित मक़ाम पर गया और अपरिचय की भाषा पढ़कर लौटा मै हर अपने से मिला और परायेपन को छू कर लौटा । बहुत जगमगाने लगा है मेरा शहर बहुत तरक्की की है यही है तरक्की?

किसी की भी व्यस्तता में मेरे लिए एक प्याली चाय, नपी-तुली मुस्कान और सतर्क बातों के सिवा कुछ न था। इससे तो अच्छा था मै नहीं आता भले ही सपनो में सही जिंदा तो रहता शहर भरा-पूरा, जिंदादिल शहर मेरा शहर।/

एक नम्र निवेदन है आप सबसे यहाँ एक भरता हुआ गायक है कन्हैया दीक्षित इसे आप सब मिल जुल के ऊपर तक ले आये और अपना और दुसरो का मनोरंजन भी करते रहे,