वार्ता:कविता

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इस कविता का शीर्षक है 'पत्ता'

पत्ता गिरकर जमीन पर आता है, हवा में सरहदों को छू जाता है। सूंघने पर महक उठता है मन का आकाश, और खुशबू से भर जाता है सबका आवास।

पत्ता जब एकांत में लगाता है ठहाके, बारिश के बोझ से झूल जाता है पेड़ों के शाख़े। अपनी लहरों में नग़्मे गुनगुनाता है, और प्रकृति की मधुरता सबको सुनाता है।

पत्ता जब पेड़ को अलविदा कहता है, उजियाले समय की ओर लहराता है। हरा रंग त्यागकर सूखता है दिनों में, और रूख से छुटकर उड़ जाता है विनोदों में।

पत्ता हर चरण पर नवीनता लाता है, अपनी अल्प जीवन-चक्र में मुख्यता पाता है। वृक्ष के अंग होता है वह समर्पित, और प्रकृति के अनुग्रह को स्वीकृत करता है।

पत्ता एक चीज़ है सोचने के लिए, कि जीवन की क्रिया है विराम के लिए। हमें याद दिलाता है अनन्तता की अस्तित्व, और अनिश्चितता में खोजने की क्षमता देता है।

जब पत्ता गिरकर जमीन पर आता है, हमें याद दिल

ाता है संकल्प की शक्ति। जैसे पत्ता भी अपने नए रंग में खिलता है, हमें यह सिखाता है नयी शुरुआत की प्रेरणा।