लौहचुम्बकत्व
पदार्थ | क्यूरी ताप (K) |
---|---|
Co | 1388 |
Fe | 1043 |
FeOFe2O3]] | 858 |
NiOFe2O3 | 858 |
CuOFe2O3 | 728 |
MgOFe2O3 | 713 |
MnBi | 630 |
Ni | 627 |
MnSb | 587 |
MnOFe2O3 | 573 |
Y3Fe5O12 | 560 |
CrO2 | 386 |
MnAs | 318 |
Gd | 292 |
Dy | 88 |
EuO | 69 |
लौहचुंबकत्व (Ferromagnetism) (फेरीचुंबकत्व को मिलाकर) ही वह मूलभूत तरीका है जिससे कुछ पदार्थ (जैसे लोहा) स्थायी चुम्बक बनाते हैं या दूसरे चुम्बकों की ओर आकृष्ट होते हैं। वैसे प्रतिचुम्बकीय (डायामैग्नेटिक) और अनुचुम्बकीय (पैरामैग्नेटिक) पदार्थ भी चुम्बकीय क्षेत्र में आकर्षित या प्रतिकर्षित होते हैं किन्तु इन पर लगने वाला बल इतना कम होता है कि उसे प्रयोगशालाओं के अत्यन्त सुग्राही (सेंस्टिव) उपकरणों द्वारा ही पता लगाया जा सकता है। प्रतिचुम्बकीय और अनुचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बकत्व नहीं दे सकते।
कुछ ही पदार्थ लौहचुम्बकत्व का गुण प्रदर्शित करते हैं जिनमें से मुख्य हैं - लोहा, निकल, कोबाल्ट तथा इनकी मिश्रधातुएँ, कुछ रेअर-अर्थ धातुएँ, तथा कुछ सहज रूप में प्राप्त खनिज (जैसे लोडस्टोन / lodestone) आदि।
उद्योग एवं आधुनिक प्रौद्योगिकी में लौहचुमबकत्व का बहुत महत्व है। लौहचुम्बकत्व ही अनेकों (लगभग सभी) विद्युत और विद्युतयांत्रिक युक्तियों का आधार है। विद्युतचुम्बक (electromagnets), विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र (generators), ट्रांसफॉर्मर, टेप रिकॉर्डर, हार्ड डिस्क आदि सभी का आधार विद्युतचुम्बकीय पदार्थ ही हैं।
लौहचुम्बकीय (तथा फेरीचुम्बकीय) पदार्थों का बी-एच वक्र (B-H Curve) एक सीधी रेखा नहीं होती बल्कि एक अरैखिक वक्र होता है जिसकी प्रवणता (स्लोप) चुम्बकीय फ्लक्स के अनुसार अलग-अलग होती है। इसके अलावा इनकी बी-एच वक्र में हिस्टेरिसिस होती है जिसके बिना ये स्थायी चुम्बकत्व का गुण प्रदर्शित नहीं कर सकते थे। इसके अलावा लौहचुम्बकीय पदार्थ एक और विशेष गुण प्रदर्शित करते हैं - उनका ताप एक निश्चित ताप के उपर ले जाने पर उनका लौहचुम्बकीय गुण लुप्त हो जाता है। इस ताप को क्यूरी ताप कहते हैं।
इतिहास
[संपादित करें]वैशेषिक नामक ग्रन्थ में ( ५-१-१५ ) ऋषि कणाद लिखते हैं कि चुम्बक की अदृश्य कर्षण शक्ति के कारण लोहा चुम्बक के प्रति खींचा जाता है ।[1]
मणिगमनं सूच्यभिसर्पणमदृष्टकारणम् ॥ (५-१-१५)
सूत्रार्थ – मणिगमनं = जैसे अयस्कान्त मणि ( चुम्बक ) की ओर लोहे का आकृष्ट होना , सूच्यभिसर्पणं = लोहे की सूई का चुम्बक से चिपकना , अदृष्टकारणम् = ये क्रियायें न दिखाई देने वाले कारणों से प्रेरित होती है ।
अर्थात् अयस्कान्त मणि , जिसे आजकल चुम्बकीय पत्थर कहा जा है , सामान्य पाषाण दिखाई देता है , किन्तु उसके भीतर आवृत आवेश संघनित है , जो उसमें चुम्बकीय शक्ति भर देता है । लोहे की सुई या कण चुम्बक की ओर आकृष्ट होते हैं । जो लोग चुम्बक के गुण के बारे में नहीं जानते हैं , उन्हें लोहे का उस पाषाण की ओर आकृष्ट होना चमत्कार लगेगा , वे अदृश्य शक्ति के प्रति आदर भाव प्रकट करेंगे । किन्तु अदृष्ट चुम्बकीय शक्ति अभिघात , नोदन जैसी ही छिपी हुई शक्ति है , जो लोहे में विशेष क्रिया उत्पन्न कर देती है ।[2]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- Electromagnetism - a chapter from an online textbook
संदर्भ
[संपादित करें]![]() | यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |
- ↑ Oak, Purushottam Nagesh (2003). World Vedic Heritage (ebook) (in English). New Delhi, Bharat: P. N. Oak. p. 149.
Magnetism : In Vaisheshik ( 5-1-15 ) Kanaad an ancient Vedic scientist writes that a piece of iron leaps at a magnet because of an unseen force .
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: CS1 maint: unrecognized language (link) - ↑ मौर्य, देवीप्रसाद (2009). जीवन का यथार्थ और वर्तमान जगत (ebook) (in Hindi). सी- 30 , सत्यवती नगर , दिल्ली- 110052: Kalpaza Pablikeśansa. p. 217. ISBN 9788178357287.
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