लघु मेवाड़ साठा चौरासी

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लघु मेवाड़ साठा चौरासी का आधिकारिक प्रतीक व चिन्ह है जिसमे चंद्रवंशी क्षत्रिय सम्राट अनंगपाल सिंह तोमर व सूर्यवंशी क्षत्रिय बाप्पा रावल को दर्शाया गया है।
लघु मेवाड़ साठा चौरासी के आधिकारिक पृष्ट के सभी खाते।

लघु मेवाड़ साठा चौरासी :- क्षत्रिय राजपुत्र जाति द्वारा बसाया गया प्रसिद्ध क्षेत्र है। जिसमें मेवाड़ के रावल खुमान तृतीया के पौत्र हस्थराज (हाथरस) बसाया व बक्षराज (साठा) द्वारा 10वी से 11वी शताब्दी के मध्य बसाया गया था। जिसमे आगे चलकर 60 गांव जिसे साठा व लघु मेवाड़ नाम से विख्यात है जो आहड़ा गुहिलोत राजपूतों के है। और

11वी शताब्दी के मध्य से 12वी शताब्द के आस पास चौरासी (84) गांव को बसाया गया। जो की चौरासी नाम से विख्यात प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र वीरों की भूमि के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। इस भूमि पर घर - घर से नायक उत्तपन हुए है।

इस क्षेत्र का 1857 की क्रांति मै बहुत गौरवशाली इतिहास भी रहा है। जिसमे तहसील धौलाना के 14 शहीदों का नाम अंकित है, जिन्हें अंग्रेजो ने फांसी लगाई थी।

इस क्षेत्र में गाजियाबाद, हापुड़, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, दादरी, बागपत, मेरठ, मुजफ्फरनगर आदि ज़िले और उनकी सीमाएं शामिल हैं।

वह इस क्षेत्र का एक आधिकारिक सोशल मीडिया पेज लघु मेवाड़ साठा चौरासी के नाम से समाज के लोगो द्वारा ही चलाया जाता है। जिसपर इतिहास , समाचार , धर्म और संस्कृति की जानकारी डाली जाती है।

साठा का इतिहास[संपादित करें]

हाथरस में दक्षिण-पश्चिमी दिशा में 17वीं शताब्दी के एक दुर्ग के अवशेष विद्यमान हैं। ऐसा माना जाता है कि, मेवाड़ के रावल खुमान तृतीया के पौत्र गुहिलोत राजपरिवार से दो सगे भाई राणा वक्षराज सिंह और राणा हस्तराज सिंह जी ने उत्तर प्रदेश में अपने नए राज स्थापित किए। जिनमें राणा वक्षराज सिंह जी ने दादरी - धौलाना क्षेत्र में गहलोतों (सिसोदिया) के 60 गांव बसाए और राणा हस्तराज सिंह जी ने अपने नाम हस्त (हाथ) के अनुसार हाथरस नगर व इसके आस-पास 300 गांवों को बसाया। जिनमें परसौली, बघना, तेहू-टिमरुआ, बारू, रसगवा, कोकना ,गोहिला आदि हैं। और इनकी कुलदेवी मां छैछी गांव खेड़ा परसौली में विराजमान हैं।इसके दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध है, यह इंगित करता है कि जब शहर बनाया गया था और इसे किसने बनाया था।

बक्षराज सिंह जी ने साठा का गांव देहरा मै अपना डेरा डाला जिस कारण इस गांव नाम डेरा से देहरा हो गया। देहरा से ही गुहिलोत राजपूतों के साठा नामक प्रसिद्ध 60 गांव बसे थे। राणा वक्षराज जी की 7 पीढ़ी के पश्चात तीन राजकुमार जिनके नाम राणा सहज पाल, राणा जसपाल, राणा भंवर पाल द्वारा साठा के गांवों को बसाया गया।

राणा सहजपाल के गांव[संपादित करें]

  • देहरा , खिचरा

राणा भंवर पाल के गांव[संपादित करें]

  • झंडा खेड़ा , बिसहाड़ा , सिलारपुर , छोटी गुलावठी , धनुवास , उपरालसी , पटाड़ी , खटाना , जादोंपुर , मुठियानी।

राणा जसपाल के गांव (उनके पुत्रों द्वारा बसाए गए)[संपादित करें]

  1. राणा मदन पाल :- धौलाना , शौलाना , बझेड़ा खुर्द , बझेड़ा कला , दौलतपुर ढिकरी , इकलेंडी , बिगेहपुर , ततारपुर , प्यावली , पारपा , जारचा , ककराना , डोला , बसा टिकरी , कड़कड़डूमा।
  2. राणा चांद सिंह :- दहाना , सिरोंदल , छज्जूपुर , मुथरावली , चचोई , नारायणपुर , रसूलपुर , डासना।
  3. राणा धनधर्व सिंह :- आलमपुर , शाहपुर फगौता , शिवाया , मिलक , नगला समाना , बड़ौदा , कोटला शालेपुर , सियानी , नंदपुर , बासतपुर , सिधीपुर , कर्णपुर जट्ट , ऊंचा गांव।
  4. राणा सिद्ध सिंह :- सपनावत , खरकू नगला।


गहलोत मुस्लिम गांव[संपादित करें]

• देहरा , खिचर , लालपुर , कोटला , शालेपूर , बड़ौदा , नूरपुर , डासना।

=== गहलोत गुज्जर गांव • भुड़िया , दहिरपुर , रज्जाकपुर।

साठा शिरोमणि का इतिहास[संपादित करें]

साठा शिरोमणि स्वर्गीय ठाकुर मेघनाथ सिंह सिसोदिया ( जन्म :- 1 अप्रैल 1913 ) ( स्वर्गवास :- 6 अक्टूबर 2006 )

स्वर्गीय ठाकुर मेघनाथ सिंह सिसोदिया जी, जो साठा शिरोमणि की उपाधि से विख्यात है।

ठाकुर मेघनाथ सिंह जी को मशहूर शिक्षाविद् , समाज सुधारक और अपने समय के बहुत ईमानदार एवं जबरदस्त विकास कराने वाले नेता के रूप में याद किया जाता है। ग्रामीण और सामाजिक विकास में रूचि रखने के कारण उन्होंने साठा क्षेत्र के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजपूत बाहुल्य क्षेत्र में अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करी जिसमे स्कूल, कॉलेज, आई टी आई, डिप्लोमा, वोकेशनल कोर्सेज के संस्थान शामिल हैं। इनके द्वारा उन्होंने हजारो युवाओ को रोजगार दिया। विधायक रहते हुए साठा क्षेत्र का अद्वितीय विकास कराया जिसके लिये इस क्षेत्र के सबसे बड़े व्यक्तित्व के रूप में आज भी वो याद किये जाते हैं और उन्हें साठा शिरोमणी कहा जाता है।

ठाकुर सहाब का जन्म 1 अप्रैल 1913 को जिला गाज़ियाबाद (वर्तमान में गौतमबुद्धनगर) में साठा क्षेत्र के रसूलपुर डासना गाँव में ठाकुर नारायण सिंह के यहाँ हुआ। उन्होंने अपनी शिक्षा काफी संघर्ष करते हुए NREC कॉलेज खुर्जा और सेंट जॉन कॉलेज आगरा से करी। छात्र जीवन के दौरान ही उन्होंने दृढ़ संकल्प ले लिया था की ना तो वो अंग्रेज़ो की कोई नौकरी करेंगे और ना ही अंग्रेज़ियत को अपनाएंगे। उन्होंने संकल्प लिया की वकील या डॉक्टर बनने की जगह इंजीनियर या शिक्षक बनूँगा और साथ ही राजपूत गौरव की हर कीमत पर रक्षा करूँगा। उनमें भारत की स्वतंत्रता, गौरव और प्रतिष्ठा के पोषण करने की भावना भी कूट कूट कर भरी हुई थी।

उन्होंने बीएससी करने के बाद इतिहास और हिंदी से परास्नातक किया और इंजीनियर बनने की जगह शिक्षक बनने में सफल हुए। सर्वप्रथम वो 1938 में मध्यप्रदेश के ग्वालियर के एक स्कूल में शिक्षक तैनात हुए जो उनके लिये हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहा। 1940 में वो प्रिंसिपल बने और 1975 तक अपने ही डिग्री कॉलेज में प्रिंसिपल रहे। इस दौरान उन्होंने साठा क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओ की बाढ़ ला दी। उन्होंने अपने पूरे जीवन में 75 शिक्षण संस्थाए स्थापित की जिसमे डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, हाई स्कूल आदि के अलावा आईटीआई, पेशेवर/डिप्लोमा आदि कोर्स के लिये संस्थान शामिल हैं। यह संस्थाए आज भी शिक्षा के प्रति स्टाफ के समर्पण और छात्रो के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता देने के लिये जानी जाती हैं। इन संस्थाओ ने 3 हजार से ऊपर कृषि इंस्पेक्टर पैदा किये, 3 हजार बीटीसी अध्यापक बनाए जिनकी सबकी सरकारी नौकरी लग गई और करीब 4 हजार अध्यापक, कर्मचारी और चपरासी इनके संस्थानों में काम करते हैं जिनको सरकारी वेतन मिलता है। ठाकुर साहब ने अपने प्रत्येक संस्थान में प्रवेश के लिये जौहर, हल्दीघाटी, महाराणा प्रताप और चित्तोड़ की पढ़ाई अनिवार्य करी हुई थी क्योंकि उनका मानना था की कोई सच्चे मन से तब तक राजपूत नही हो सकता जब तक उसे इतिहास का ज्ञान ना हो।

इनके इकलौते पुत्र श्री वत्सराज सिंह शिशोदिया की 1992 में मृत्यु हो गई, तभी से ये चिंतित और दुःखी रहने लगे। अंत में 6 अक्टूबर 2006 को राणा जी का स्वर्गवास हो गया।

राणा जी के अनुसार दृढ़ निश्चय, अडिग विश्वास, सतत प्रयास और मृदु व्यव्हार ही जीवन संघर्ष के अचूक हथियार हैं और ये ही उनकी सफलता की कुंजी है।

उनके द्वारा स्थापित किये गए कुछ संस्थान इस प्रकार है -[संपादित करें]

• डिग्री कॉलेज - राजपूत शिक्षा शिविर पीजी कॉलेज (आरएसएस), पिलखुआ गाज़ियाबाद जिसमे आर्ट्स, साइंस और कॉमर्स तीनो विभाग हैं।

• इंटर कॉलेज -

  1. राणा शिक्षा शिविर इंटर कॉलेज, धौलाना (हापुड़)
  2. उदय प्रताप इंटर कॉलेज, सपनावत (हापुड़)
  3. राणा संग्राम सिंह इंटर कॉलेज, बिसाहदा, (गौतमबुद्धनगर )
  4. महाराणा कुंभा इंटर कॉलेज, खटाना (गौतमबुद्धनगर )
  5. वत्सराज स्वतंत्र भारत इंटर कॉलेज, कलौंदा (गौतमबुद्धनगर)
  6. रघुनाथ सिंह स्मारक इंटर कॉलेज, आँचरु कला (बुलंदशहर)
  7. कल्याणकारी इंटर कॉलेज, चाँडोक (बुलंदशहर)
  8. विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, मऊ, चिरायल (हाथरस)
  9. गाँधी स्मारक इंटर कॉलेज, बझेड़ा, भरतपुर (अलीगढ़)
  10. राष्ट्र सेवा सदन इंटर कॉलेज, भकरौली (बदायूं)
  11. चंपा बालिका इंटर कॉलेज, धौलाना (हापुड़)


• हायर सेकेंडरी स्कूल -

  1. बप्पा रावल हायर सेकेंडरी स्कूल, शाहपुर फगोता
  1. महाराणा कुंभा सर्वहितकारी हायर सेकेंडरी स्कूल, खटाना दादुपुर
  2. लीलावती बाबू सिंह हायर सेकेंडरी स्कूल, राणा गढ़, पिलखुआ
  3. मुकंदी देवी हायर सेकेंडरी स्कूल, पवनावली, मुजफ्फरनगर
  4. सेवा सदन हायर सेकेंडरी स्कूल, सेहंदा फरीदपुर (बुलंदशहर)
  5. गंगा बांगर स्कूल, इंचोरा, खुशहालगढ़ (बुलंदशहर)
  6. गंगा खादर हायर सेकेंडरी स्कूल, चाउपुर, दुपटा कलां (बदायूं)
  7. हायर सेकेंडरी स्कूल, तलवार ( बुलंदशहर)
  8. एन आर के हायर सेकेंडरी स्कूल, रसूलपुर डासना

• स्थापना के बाद दूसरो के प्रबंध में दे दिए -

  1. राजपूत नेशनल स्कूल, पिलखुवा (अब राजपूताना रेजीमेंट कॉलेज) (लटूर सिंह)
  2. कंचन सिंह जूनियर हाई स्कूल, सराय नीम, एटा
  3. बी आर हाई स्कूल, समाना
  4. जूनियर हाई स्कूल, खेड़ा, सरधना

राजनैतिक और सामजिक जीवन[संपादित करें]

ठाकुर मेघनाथ सिंह जी राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी सक्रिय रहे। वो दो बार विधायक रहे जिस दौरान उन्होंने साठा क्षेत्र में विकास की गंगा बहा दी। 1948 से लेकर 1958 तक वो जिला परिषद के सदस्य रहे और शिक्षा, चिकित्सा आदि समिती के अध्यक्ष रहे जिस दौरान उन्होंने क्षेत्र में अनेको प्राइमरी स्कूल, भवन तथा पुल बनवाए। साथ ही जूनियर हाई स्कूल स्तर तक संस्कृत की शिक्षा सर्वप्रथम अनिवार्य करवाई जिसके बाद उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद ने भी उनका अनुसरण किया।

पहली बार 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधायकी का चुनाव लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी को 71 हजार के भारी अंतर से हराकर जीते जो की आज के समय भी बहुत बड़ा अंतर होता है। इस काल में उन्होंने अनेक स्थानों पर पहली बार बिजली पहुचाई । चौधरी चरण सिंह से कहकर कृषि डिप्लोमा प्राप्त छात्रो को ग्रुप 3 की नौकरी मिलना अनिवार्य करवा दिया जिससे उनके ही संस्थानों के उस वक्त के हजारो डिप्लोमाधारी युवक आज भी ऐश्वर्य की जिंदगी बिता रहे हैं। इसके अलावा अपने संस्थानों के 2 हजार जे टी सी पास छात्रो की भी नौकरी लगवाई। इसके अलावा मसूरी-धौलाना-सपनावत मार्ग का निर्माण और रसूलपुर में नहर के पुल का निर्माण करवाया।

दूसरी बार 1974 में विधायक बने जो 77 तक रहे। इस काल में उन्होंने क्षेत्र का अद्वितीय विकास करवाया। अनेको प्रमुख सड़को का निर्माण उन्होंने करवाया जिसमे धौलाना-पिलखुवा, धौलाना - बसितपुर, शिकारपुर-खुर्जा, छजारसी-मोदीनगर आदि शामिल है। धौलाना, सपनावत, बिसाहदा और जारचा में सिंडिकैट बैंक की ब्रांच खुलवाई और धौलाना में बड़ा डाकघर और टेलीफोन लाइन बिछवाइ।

इस काल में सबसे अहम काम था क्षेत्र में एन टी पी सी की स्थापना कराना जिसने क्षेत्र की कायापलट कर दी और साठे के 10 गाँवों की आर्थिक स्थिति ऊँची कर दी। इससे क्षेत्र के हजारो युवको को रोजगार मिला। इसके लिये बनी रेल और सड़क के लिये ली गई भूमी का मुआवजा उस जमाने में 1 लाख 20 हजार रुपए दिलवाया।

सामजिक कार्य[संपादित करें]

राणा जी ने सामजिक क्षेत्र में भी पहल की और राजपूत समाज में कई समाज सुधारो की शुरुआत करवाई, जिनमे प्रमुख हैं-

  1. 1962 में यह प्रथा चलवाई की बारात वढाकर से ही विदा होगी, इससे पहले बारात 3 दिन तक रूकती थी।
  2. सगाई के समय भेंट लेना बन्द करवाया।
  3. यह भी प्रस्तावित किया की लड़की की शादी में घराती खाना ना खाएं।
  4. दहेज का दिखावा बन्द करने का प्रयास किया।
  5. रसूलपुर गांव की चकबंदी के समय कृषि के अयोग्य बेकार पड़ी बंजर भूमी की भी चकबन्दी करा दी जिससे कृषको को एन टी पी सी का मुआवजा मिल सका।
  6. विभिन्न जातियों के सैकड़ो युवको को अपने खर्चे पर शिक्षा दिलवाई और उनकी अच्छी नौकरी लगवाई।
  7. अपने संस्थानों के द्वारा क्षेत्र के हजारो लोगो को सरकारी रोजगार दिया और दिलवाया।
  8. 1857 में शहीद हुए साठा चौरासी क्षेत्र के क्रान्तिकारियो के इतिहास का संकलन और प्रचार किया और उनकी याद में शहीद स्मारक का निर्माण करवाया।

व्यक्तित्व[संपादित करें]

निजी जीवन में भी राणा जी बहुत अनुशाषित और संयमित जिंदगी जीने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने जीवन में कभी मांस, मदिरा, पान, तंबाकू, गुटखा आदी किसी तरह का सेवन नही किया। देशी वेश भूषा और खान पान के प्रबल समर्थक थे। खान पान में दही और मठ्ठे का प्रयोग ही करते थे। वो आयुर्वेद प्रेमी और एलोपैथी से घृणा करने वाले थे। पैदल ही चलने के अभ्यासी थे, साइकिल तक पर कभी चलकर नही देखा। निर्भीक वक्ता, अनुशाशनप्रिय, अध्यात्मवादी और चापलूसी से हमेशा घृणा करते थे।

छात्रावास में गरीबी का जीवन बिताया था इसलिये गरीबी की इज्जत करते थे। उर्दू, हिंदी और संस्कृत तीनो के ज्ञाता होने के साथ ही गीता, रामायण, महाभारत, भागवत, कुरान, सत्यार्थ प्रकाश, बाइबिल जैसे ग्रंथो के ज्ञाता या अध्ययनशील थे। गीता के अंतिम श्लोक को मनुष्य, समाज तथा देश के उत्थान के लिये मूलमंत्र मानते थे।

राणा जी राजपूत साहित्य के बहुत अच्छे जानकार थे और कट्टर देश प्रेमी थे। उनकी मान्यता थी कि देशभक्त, बलिदानी और स्वाभिमानी बनने के लिये जीवन में कम से कम एक बार चित्तोड़ और हल्दीघाटी के दर्शन जरूर करने चाहिये। इसके बिना देश धर्म से प्रेम नही हो सकता।

सुबह 4 बजे से शाम 6 बजे तक दफ्तर का काम करते थे। दफ्तर और शिक्षा के सभी कामो में पारंगत थे। अपने अंतिम समय तक भी अपने हर एक संस्थान की जानकारी उन्हें रहती थी। अंकगणित के एक नवीन नियम की खोज भी उन्होंने की थी।

किसी भी लड़की की शादी में भोजन नही करते थे, लेकिन आशीर्वाद देने के लिये प्रत्येक शादी में जाते थे।

इनके इकलौते पुत्र श्री वत्सराज सिंह शिशोदिया की 1992 में मृत्यु हो गई, तभी से ये चिंतित और दुःखी रहने लगे। अंत में 6 अक्टूबर 2006 को राणा जी का स्वर्गवास हो गया।

राणा जी के अनुसार दृढ़ निश्चय, अडिग विश्वास, सतत प्रयास और मृदु व्यव्हार ही जीवन संघर्ष के अचूक हथियार हैं और ये ही उनकी सफलता की कुंजी है। ठाकुर मेघनाथ सिंह शिशोदिया जी ने जीवन भर प्रयत्नशील रहते हुए साठा क्षेत्र का सर्वांगीण विकास करवाया। ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं जब एक व्यक्ति ने अपने दम पर किसी क्षेत्र का कायापलट कर दिया हो। साठा क्षेत्र जो की एक पिछड़ा क्षेत्र माना जाता था, उसे उन्होंने अपने सतत प्रयासो से विकास की मुख्यधारा में ला खड़ा किया। शिक्षा को उन्होंने विकास का साधन बनाया और अकेले ही साठे में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाकर विकास का पहिया घुमा दिया, ऐसा शायद ही कहीं और हुआ हो। इसी वजह से उन्हें महामना भी कहा जाता है। क्षेत्र और समाज के विकास के लिये उनका प्रेम और उनकी प्रतिबद्धता हम सबके लिये प्रेरणास्त्रोत हैं। खासकर आजकल के समाज के नेता उनके जीवन और कार्यों से यह सीख ले सकते हैं कि समाज और क्षेत्र का नेतृत्व और विकास कैसे किया जाता है।

एक बार फिर से महान देश प्रेमी और समाज प्रेमी, लघु मेवाड़ के पथ प्रदर्शक, महाराणा प्रताप के परम अनुयायी, साठा शिरोमणि, स्वाभिमानी, महान शिक्षाविद्, पूर्व विधायक स्व. ठाकुर मेघनाथ सिंह शिशौदिया जी को शत शत नमन।

जय क्षात्र धर्म

चौरासी का इतिहास[संपादित करें]

महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर के वंशज ने सन् 1178 ई० गंगा स्नान के बाद वापस आकर परसोन संस्कार कॉलिज के पास ढेरा डाला।

यहां से गालव ऋषि ने गालंद को बसाया और यही से गांव निकले :- कलछीना, बन्दीपुर, कैथवाडा, जागीरपुर, बडायला, आकलपुर निडौरी, मझौता, छिजारसी, परतापुर, अतरौली, जोया, कनकपुर दतैडी, शामली, फरीदनगर, नाहली, अमीपुर, मुकीमपुर, पबला कस्तला, बड़ौदा, निजामपुर, अनवरपुर, कावी, डूहरी, रघुनाथपुर , नया गांव , चन्दपुरा, सिखेड़ा, खेड़ा, कमालपुर, पिलखुवा, हिन्डालपुर लाखन।

क) भटियाना, शाब्दीपुर, मोरपुर, हरसिंगपुर, फकाना, बराल, मुहाना, सहपानी, पितुबास, छपरावत, नवादा, बसात।

ख) भगवानपुर, चितौली, महुखास, पंचगाव, हसनपुर, मानपुर, मुड़ाली, सिसौली, समयपुर, बढला, मुरलीपुर, अम्हेटा नंगला, कबूलपुर, गामड़ी, जीठौली, किन्नापुर, नगलां मल।

ग) गढ़ मुक्तेश्वर, भैना, ढोलपुर, भदस्याना, जखैड़ा, कन्नौर, अलीपुर, सदरपुर, चितौड़ा, रहखा, कटीरा, डेहरा, टोडरपुर, हिम्मतपुर, रौटी, राजपुर, पूठ ठेरा।

चौरासी के ठाकुर गुलाब सिंह तोमर[संपादित करें]

साठा चौरासी का मुकीमपुर गढ़ी गाँव पिलखुवा के निकट अवस्थित है जो कि तोमर राजपूतो का गाँव है। यहाँ के ठाकुर गुलाब सिंह तोमर बहुत बड़े जमींदार हुआ करते थे और उनका स्थानीय जनता में बहुत प्रभाव और मान सम्मान था। 1858 के विप्लव की शुरुआत के बाद क्षेत्र के राजपूत ग्रामीणों ने भी जमींदार गुलाब सिंह तोमर के नेतृत्व में बगावत कर दी। ठाकुर गुलाब सिंह ने ब्रितानियों को लगान न देने एवं क्रांतिकारियों का साथ देने का निश्चय किया। उन्होंने क्षेत्र वासियों को भी लगान न देने के लिए प्रेरित किया। मुकीमपुरगढ़ी में जमींदार ठाकुर गुलाब सिंह के नेतृत्व में राजपूतो की एक बैठक बुलायी गयी। इसमें सभी ने ठाकुर गुलाब सिंह से सहमत होते हुए ब्रिटिश सरकार को भू-राजस्व न देने की घोषणा की। इस प्रकार मुकीमपुर गढ़ी राजपूत क्रांतिकारियों का मजबूत गढ़ बन गया। जमींदार ठाकुर गुलाब सिंह ने निकटवर्ती क्षेत्र के गाँवों को भी क्रांति के लिए प्रोत्साहित किया। परिणामतः वहाँ भी क्रांतिकारी भावनाएं पनपने लगी और कुछ समय में वहाँ कानून व्यवस्था पूर्ण रूप से भंग हो गयी। ब्रितानियों से संघर्ष होने के पूर्वानुमान के कारण जमींदार गुलाब सिंह ने अपनी गढ़ी (लखौरी ईटों की किलेनुमा हवेली ) में हथियार भी इकट्ठे करने शुरू कर दिये।

मुकीमपुर गढ़ी के विप्लव की सूचना जब अंग्रेज अधिकारियों तक पहुँची तो उन्होंने उसके दमन का निश्चय किया। ब्रितानियों ने गुलाब सिंह को क्रांतिकारियों का नेता घोषित किया और मुकीमपुर गढ़ी तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्र में विप्लव भड़काने का आरोप भी उन पर लगाया गया। एक ब्रिटिश सैन्य टुकड़ी यहाँ विप्लव के दमन के लिए भेजी गयी। उसने मुकीमपुर गढ़ी को चारो ओर से घेर लिया। गुलाब सिंह की हवेली पर तोप से गोले बरसाये गये। मुकाबला असमान था लेकिन ठाकुर गुलाब सिंह जी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने ब्रितानियों का सामना किया परन्तु वे तोपों के सामने ज्यादा देर टिक न सके। ठाकुर गुलाब सिंह की गढ़ी को तोपों से खंडहर में परिवर्तित कर दिया। ठाकुर गुलाब सिंह और उनके कई सहयोगी वीरता पूर्वक लड़ते हुए वीरगती को प्राप्त हो गए। ब्रिटिश सेना को हवेली के अन्दर कुएँ से हथियार प्राप्त हुए जो उनका सामना करने के लिए जमींदार गुलाब सिंह एवं ग्रामीणों ने इकट्ठा किये थे। बाद में मुकीमपुर गढ़ी गाँव में आग लगा दी गयी। ब्रिटिश अधिकारी डनलप ने गुलाब सिंह की सम्पूर्ण जायदाद जब्त कर ली। आज भी ठाकुर गुलाब सिंह जी की हवेली के खंडहर 1857 की क्रांति के गवाह बने हुए हैं।

1857 की क्रांति[संपादित करें]

मेरठ में सैनिक बगावत की सूचना मिलते ही साठा चौरासी क्षेत्र में अंग्रेजो के विरुद्ध क्रांति का वातावरण बनने लगा। बहुत से सैनिक मेरठ से दिल्ली जाने के क्रम में इस क्षेत्र में धौलाना, डासना आदि गाँवों में रुके। अगले दिन प्रातःकाल को सब धौलाना के चौधरी के यहाँ इकट्ठे हो गये और धौलाना की गलियों में ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध 'हर-हर महादेव' के नारे लगाने शुरू कर दिये, थोड़ी ही देर में धौलाना ग्राम तथा आस-पास के हजारों राजपूत युवक इकट्ठा हो गये। इसी दौरान साठा के सबसे बड़े गाँव धौलाना में ईद के मौके पर एक गाय काट दी गयी थी। जिसे यहाँ के ग्रामीणों ने ब्रितानियों का षड्यंत्र माना तथा अपने धर्म पर आघात होना माना। इस घटना से यहाँ धार्मिक उन्माद का वातावरण बन गया। इस उत्तेजित वातावरण में ग्रामीणों ने 'मारो फिरंगी को' के नारे लगाये और वे गाँव में स्थित पुलिस थाने की दिशा में चल पड़े, जहाँ उन्होंने उसमें आग लगा दी। थानेदार मुबारक अली मुश्किल से जान बचाकर भागने में सफल हुआ और वह निकटवर्ती गाँव ककराना में दिन भर गोबर के बिटोरो में छिपे रहा। रात में वह वहाँ से निकलकर मेरठ पहुँचा तथा अंग्रेज़ उच्च अधिकारियों को धौलाना की स्थिति से अवगत कराया। इस दौरान पूरा क्षेत्र बागियों के नियंत्रण में आ गया और अंग्रेजी सत्ता समाप्त हो गई। कई सप्ताह तक राजपूतो ने स्वतंत्र राज किया।

कुछ समय पश्चात् अधिकारी डनलप के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना की एक बड़ी टुकड़ी धौलाना पहुँच गयी और विद्रोह का निर्ममता से दमन करना शुरू किया। विद्रोह को दबाकर शांति स्थापित करने के बाद प्रतिशोध की कार्यवाई करने के लिये थानेदार की रिपोर्ट के आधार पर 13 राजपूतों तथा एक अग्रवाल बनिया लाला झनकूमल को गिरफ्तार करके डनलप के सामने लाया गया। क्रांतिकारियों में बनिये झनकूमल को देखकर उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि- "राजपूतों ने ब्रिटिश शासन के विरूद्ध विद्रोह किया यह बात समझ में आती है किन्तु तुमने महाजन होकर, इन विद्रोहियों का साथ दिया, यह बात समझ में नहीं आती। तुम्हारा नाम इनके साथ कैसा आ गया?" लाल झनकू ने जवाब दिया कि "इस क्षेत्र में जब से आपके व्यक्तियों ने मुसलमानों के साथ मिलकर गौ-हत्या करायी तब से मेरे हृदय में गुस्सा पनप रहा था। मैं सब कुछ सहन कर सकता हूँ साब, किन्तु अपने धर्म का अपमान, गौ-माता की हत्या सहन नहीं कर सकता।"

डनलप ने इन 14 क्रांतिकारियो को फाँसी लगाने का आदेश दिया। परिणामतः गाँव में ही चौपाल पर खड़े दो पीपल के वृक्षों पर उन्हें फाँसी दे दी गयी।

इस क्षेत्र के व्यक्तियों को आतंकित करने तथा आने वाले समय में फिर इस प्रकार की घटना की पुनरावृत्ति न हो यह दिखाने के लिए चौदह कुत्तों को मारकर इन ग्रामीणों के शवों के साथ दफना दिया गया। धौलाना गाँव को बागी घोषित कर दिया तथा ग्रामीणों की सम्पत्ति जब्त करके अपने वफादारों को दे दी गई। पुलिस थाने को पिलखुवा स्थानान्तरित कर दिया गया। गाँव में एक ब्रिटिश सैन्य टुकड़ी नियुक्त की गयी जो काफी दिनों तक धौलाना में मार्च करती रही।

1857 की क्रांति की असफलता के पश्चात् अनेक ग्रामों को क्रांतिकारियों का साथ देने या क्रांति में संलग्न होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने बागी घोषित कर दिया। उन गाँवों की जमीन-जायदाद छीन ली गई। इन बागी ग्रामों में सपनावत भी था। सपनावत गाँव को भी विप्लवकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण बागी घोषित कर दिया गया और यहाँ के किसानो की जमीने छीन ली गईं।इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्रांति में भाग लेने वाले राजपूतों,मुस्लिमो की जमीने अंग्रेजों के भक्त जाटों के नाम चढ़ा दी गयी.1857 की क्रांति की असफलता के पश्चात् अनेक ग्रामों को क्रांतिकारियों का साथ देने या क्रांति में संलग्न होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने बागी घोषित कर दिया। उन गाँवों की जमीन-जायदाद छीन ली गई। इन बागी ग्रामों में सपनावत भी था। सपनावत गाँव को भी विप्लवकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण बागी घोषित कर दिया गया और यहाँ के किसानो की जमीने छीन ली गईं।इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्रांति में भाग लेने वाले राजपूतों,मुस्लिमो की जमीने अंग्रेजों के भक्त जाटों के नाम चढ़ा दी गयी।

इस घटना के बारे में एक दूसरा मत[संपादित करें]

इस घटना के सम्बन्ध में क्षेत्र निवासी ठाकुर मेघनाथ सिंह सिसौदिया जी(पूर्व विधायक) ने '1857 में ब्रितानियों के खिलाफ जनता व काली पल्टन द्वारा साठे में लड़ा गया प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (गदर) का आरम्भिक सच्चा वर्णन' शीर्षक से एक गुलाबी रंग का पैम्पलेट जारी किया था। उनके अनुसार -

"11 मई, 1857 को इस साठा क्षेत्र के राजपूतों का खून क्रांति के लिए खौल उठा। दोपहर से पहले ही धौलाना व पास-पड़ोस के हजारों राजपूत युवक ब्रिटिश सरकार के खिलाफ वीरतापूर्वक नारे लगाते हुए तथा ढोल, शंख, घड़ियाल बजाते हुए धौलाना की गलियों में घूमने लगे और हर-हर महादेव के नारे लगाने लगे। इससे भयभीत होकर धौलाना थाने के दरोगा व सिपाही थाने को छोड़कर भाग गये, इन क्रांतिकारियों ने मेरठ की काली पल्टन के सैनिकों के साथ मिलकर थाने में आग लगा दी तथा सभी सरकारी कागजात फूँक डाले। तत्पश्चात् ठाकुर झनकू सिंह के नेतृत्व में यह जत्था दिल्ली कूच कर गया। रास्ते में क्रांतिकारियों ने रसूलपुर, प्यावली के किसानों को अपने साथ चलने के लिए प्रेरित किया। रोटी मांगते हुए और रोटी बाँटते हुए वे दिल्ली की ओर चले दिये और 12 मई को प्रातः काल दिल्ली पहुँच गये। वहाँ 12 मई को धौलाना के राणा झनूक सिंह गहलोत ने दिल्ली के हजारों लोगों के सामने ब्रितानियों की गुलामी का चिन्ह यूनियन जैक को जो लाल किले पर टंगा हुआ था, ऊपर चढ़कर फाड़कर उसके स्थान पर अपनी केशरिया पगड़ी टांग दी और इस प्रकार दिल्ली के लाल किले पर केसरिया झण्डा फहरा दिया।


अंग्रेजो ने दिल्ली पर पुनः अधिकार करने के पश्चात् ठाकुर झनकू सिंह की खोजबीन की परन्तु उनका कहीं भी पत्ता नहीं चला। पूरब में उनकी रिश्तेदारी से सूचना प्राप्त हुई कि वह कमोना के बागी नवाब दूंदे खाँ के पासे है। दूंदे खाँ के पकड़े जाने पर ठाकुर झनकू सिंह, पेशवा नाना साहब के साथ नेपाल चले गये। साठा के क्षेत्र में धौलाना की जमींदारी मालगुजारी जमा न करने के अपराध में छीन ली...परिणाम यह निकला कि धौलाना के 14 क्रांतिकारियों ठाकुर झनकू सिंह को छोड़कर 13 राजपूत क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया। पकड़े जाने पर इनके परिवार के स्त्री-पुरूष तथा ग्रामवासियों को इकट्ठा करके सबके सामने धौलाना में पैंठ के चबूतरे पर खड़े दो पीपल के पेड़ों पर 29 नवम्बर, 1857 को फाँसी दे दी गयी।

बागियों के घरो में आग लगा दी गई और इनके परिवारो पर भयंकर अत्याचार किये गए। अत्याचार की इंतेहा ये थी ठाकुर झनकू सिंह के पकड़े ना जाने पर खीज मिटाने के लिये उनके ही समान नाम के धौलाना के एक बनिये झनकूमल को फांसी पर लटका दिया गया। इन सबके बाद एक गहरे गड्ढे में इन सबकी लाशो को फिकवा कर उन सबके साथ एक एक जीवित कुत्ता बंधवा दिया गया और फिर गढ्ढे को पटवा दिया गया।"


14 शहीदों के नाम इस प्रकार है[संपादित करें]

  • दौलत सिंह गहलौत
  • दुर्गा सिंह गहलौत
  • साहब सिंह गहलौत
  • मुसाहब सिंह गहलौत
  • मक्खन सिंह गहलौत
  • जिया सिंह गहलौत
  • दलेल सिंह गहलौत
  • सिंह गहलौत
  • महाराज सिंह गहलौत
  • चन्दन सिंह गहलौत
  • सुमेर सिंह गहलौत
  • किड्ढा गहलौत
  • वजीर सिंह चौहान
  • लाला झनकूमल
  • सन् 1957 में ठाकुर मेघनाथ सिंह सिसौदिया जी ने ठाकुर मानसिंह को साथ लेकर इस स्थान पर शहीद स्मारक को बनवाया गया जो आज भी इन क्रांतिकारी ग्रामीणों की शहादत की याद दिला रहा है।
    भारतीय प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम (१८५७ ई.) में फाँसी प्राप्त उन बलिदान करने वाले अमर शहीद वीर सेनानियों की नामावली जिनकी पावन अस्थियों पर यह स्तम्भ स्थापित किया गया। दिनांक :- २६ नवम्बर १८५७ को धौलाना जब्त किया गया।

बागी गाँव सपनावत[संपादित करें]

साठा क्षेत्र के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण गाँव में से है जो गुलावठी के पास अवस्थित है। यह गहलोत(शिशोदिया) राजपूतो का गाँव है और बहादुरी और बगावती तेवरो के लिये हमेशा प्रसिद्ध रहा है। यहाँ के राजपूतो ने हमेशा की तरह 1857 के विप्लव में भी अपनी बहादुरी और देशभक्ति का परिचय दिया। साठा चौरासी में बह रही क्रांति की लहर से सपनावत भी अछूता नही रहा और गाँव ने बगावत कर दी। सपनावत के राजपूतो ने भी मुकीमपुरगढ़ी और पिलखुवा की तरह भू-राजस्व गाजियाबाद तहसील में जमा करने से इंकार कर दिया। इसके बाद सपनावत ने पूरी तरह अपने को स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित कर दिया।

मशहूर क्रांतिकारी मालागढ के नवाब वलीदाद खाँ जिनपर मेरठ से लेकर अलीगढ तक बागियों की सरकार की जिम्मेदारी थी, को भी सपनावत के ग्रामीणों से अत्यधिक सहयोग मिला था। नवाब वलीदाद खाँ गाजियाबाद तथा लोनी का निरीक्षण करके सपनावत में भी रूके थे। यहाँ के ग्रामीणों से इनके नजदीकी सम्बन्ध थे। इसी कारण सपनावत के निवासियों ने क्रांति के समय नवाब वलीदाद खाँ की बहुत सहायता की।

सपनावत से कुछ दूर बाबूगढ़ में अंग्रेजी सेना की छावनी थी। गढ़मुक्तेश्वर से बाबूगढ़ आए बागी बरेली ब्रिगेड के क्रांतिकारी सैनिकों की सहायता के लिए यहाँ के अनेक नौजवान वहाँ पहुँच गये। बाबूगढ़ में क्रांतिकारियों ने अत्यधिक लूटपाट की और दुकानों में आग लगा दी।

1857 की क्रांति की असफलता के पश्चात् अनेक ग्रामों को क्रांतिकारियों का साथ देने या क्रांति में संलग्न होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने बागी घोषित कर दिया। उन गाँवों की जमीन-जायदाद छीन ली गई। इन बागी ग्रामों में सपनावत भी था। सपनावत गाँव को भी विप्लवकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण बागी घोषित कर दिया गया और यहाँ के किसानो की जमीने छीन ली गईं।इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्रांति में भाग लेने वाले राजपूतों,मुस्लिमो की जमीने अंग्रेजों के भक्त जाटों के नाम चढ़ा दी गयी।

इन वीर आत्माओ को हमारा नमन जिनकी बहादुरी और बलिदानो की वजह से आज हम स्वतंत्र हैँ।