रीस का वायरस

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रीस एक ऐसा वायरस 1900 है जो कहीं भी,  कुछ भी देखकर एक्टिवेट हो जाता है।रीस का इतिहास विस्तृत है उसके हर पहलू पर चर्चा  मुश्किल ही नहीं ,नामुमकिन है ।रीस करने में कौन सा फीस लगती है । एक आदमी दूसरे की रीस करता है एक देश दूसरे देश की ,एक राजीतिक दल दूसरे दल की ।

महिलाओं का तो इस मामले

में कोई जवाब नहीं और हो भी क्यों,  अगर रीस करने से  अच्छी फिलिग आती है तो रीस करने में कोई हानि नहीं ।

कई बार रीस करना महँगा भी पड़ जाता है परन्तु रीस  आने पर कोई भी महँगे- सस्ते की परवाह नहीं करता ।

मकान,दुकान,कपड़े ,खाना, घूमना, गाड़ी आदि वस्तुओं की  रीस करने का आजकल ज्यादा रिवाज है बच्चे पढ़ाई करने की रीस की अपेक्षा,महँगे मोबाइल व ब्रांडेड  कपड़े  एवं जूतों की अधिक रीस करते हैं।

पुराने लोग रीस करने के स्वाद से वंचित रहे , मन मे अधिक  सन्तोष के कारण वह कभी रीस करने का आनंद नहीं ले पाए ।

आज रीस ने लोगों को भिखारी तक के बना डाला है  एक समय था जब भिखारी फटे कपड़े पहनते थे परन्तु आज रीस के कारण हर वर्ग के लोग फटे वस्त्र पहन कर खुद को मॉडर्न दिखाने के लिए प्रतियोगिता में शामिल है । आज जिसके, जितने  बेढ़ंगे वस्त्र आदमी उतना ही मॉडर्न ।

रीस के कारण वस्त्र क्या अँगेजी भाषा पर भी संकट के बादल छाए हुए हैं । जिन लोगों को ठीक से हिन्दी भी नहीं आती  उनके अंदर  जब अँग्रेजियत का कीड़ा कुलबुलाता है तब वह बहुत सारे अँग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल इस प्रकार  करते हैं उसे  देख अँग्रेजी के प्रति मन दया से भर जाता है । लँगड़ाती ,टूटी -फूटी अँग्रेजी सुनकर  ऐसा महसूस होता है कि जो लोग अँग्रेजों से  बदला लेने में चूक गए , वह आज सारा गुस्सा अँगेजी पर उतार रहे हैं।

आज रेस्टोरेंट ,होटल में जाओ तो अनेक प्रकार के यंत्र यानी खाना खाने के चमचे मेज पर रख दिए जाते है  चाहे खाने में कितनी असुविधा हो  परंतु उन हथियारों के बिना खाना ,खाना  शान के खिलाफ माना जाता है । यह सब रीस का ही परिणाम है

आज कल के वाहनों के पीछे एक पँक्ति अक्सर पढ़ने को मिलती है ""जलो मत रीस करो "

यानि रीस करने में कोई हर्ज नहीं । बस जलने से परहेज करना जरूरी है परंतु जैसे ही माँ को कहते सुना "दूसरे के महल को देखकर अपना झोपड़ा मत जलाना" तब मन मे खटपट होने लगती है कि रीस करके तभी बात बनती है अगर आदमी के पास रीस करने के पर्याप्त साधन हो । एक कहावत प्रचलित है कि "रीस करनी है तो अच्छे काम की करो " हरयाणवी में रीस करने वाले को रीसला कहा जाता है  कि फलाना तो रीसला है ।

रीस करने से उन्नति और पतन दोनों हो सकते हैं ।अपनी रीस को पूरा करने के लिए कुछ रीसले सर पर कर्ज तक उठा लेते है । जिसके कारण उनका जीवन मुश्किल में फँस जाता है ।

राजनैतिक दलों में एक दल दूसरे दल की रीस में बहुत से  कभी न पूर्ण होने वाले वादे कर डालता है ।एड देश दूसरे देश की रीस में परमाणु बम बना रहा है  आज फिल्मों की रीस से मानव जीवन मे उथल पुथल मची हुई है । आम लोग भी फिल्मों जैसा जीवन जीने के लिए मनचले हैं  ।हीरोइनों एक दूसरे की  रीस में प्लास्टिक सर्जरी करवा रही हैं ।

एक डॉक्टर ,वकील, दूसरे  की रीस में रोज अपनी फीस ने इजाफा कर रहा है।  बुढापा ,जवानी की रीस कर  रहा है जिसके कारण गली -गली में  ब्यूटीपार्लर खुल रहे हैं । हम विदेशियों की रीस करके बर्गर पीजा खा रहे हैं और विदेशी हमारी रीस में कड़ी चावल पे लार टपका रहे है ।

आज  बच्चे की काबलियत को नजरअंदाज करके हर कोई अपने बबलू को सुपर स्टार बनाने के चक्कर मे पड़े है और बबलू  फेसबुकी दुनिया के रीस में रोज फोटो अपलोड करके उपलब्धियाँ बटोर रहा है ।

कभी -कभी रीस को देखकर मन मे टीस होने लगती है

परन्तु अगर किसी से टीस की बात की तो यही सुनने को मिलेगा जिसके बस की रीस नहीं उसे ही टीस होती है ।

सुनीता काम्बोज (स्लाइट लौंगोवल)