राधावल्लभ संप्रदाय
राधावल्लभ संप्रदाय, (Radha Vallabha Sampradaya) हितहरिवंश महाप्रभु द्वारा प्रवर्तित एक प्रमुख वैष्णव सम्प्रदाय है। जो 1535 में आचार्य श्री हित हरिवंश महाप्रभु (1502-1552) ने वृन्दावन में शुरू किया था। लघुभाग साढ़े 400 साल पूर्व वृन्दावन में जिन युगल उपासक वैष्णव सम्प्रदाय का उदय हुआ था उनमें चैतन्य सम्प्रदाय में श्रीकृष्ण की प्रधानता और राधावल्लभ सम्प्रदाय में राधा की उपासना की प्रधानता थी। राधावल्लभ संप्रदाय अनंत विभूषित, वंशी अवतार, प्रेम स्वरूप हितहरिवंश द्वारा शुरू किया गया सबसे अद्वितीय और प्रमुख वैष्णव संप्रदाय में से एक है। राधावल्लभ सम्प्रदाय में रस की उपासना है। रसोपासना में श्यामाश्याम की विभिन्न लीलाओं जैसे निकुंज लीला, वन विहार लीला और रास लीला का अनोखे और अद्वितीय तरीके से वर्णन किया गया है। राधावल्लभ सम्प्रदाय में हितहरिवंश नाम का अत्यधिक महत्व है। इस सम्प्रदाय के इष्ट मंत्र दाता गुरु, आचार्य राधा है। हितहरिवंश महाप्रभु ने में राधा नाम जपने की आज्ञा दी है।
हित हरिवंश महाप्रभु कृष्ण के शाश्वत वंशी के अवतार हैं और प्रियाप्रियतम की सहचरी या सखी भाव प्रदान करने और बरसाने के लिए अवतरित हुए हैं। हित "शुद्ध प्रेम" का प्रतीक है जो राधावल्लभ संप्रदाय की भक्ति सेवा की आधारशिला है। हरिवंश का अर्थ और सरल किया गया है:
- H (ह) – हरि का प्रतीक है
- R (र) - राधा रानी का प्रतीक है
- V (व) - वृन्दावन और को दर्शाता है
- S (श) - का मतलब सहचरी है
प्रमुख रसिक
[संपादित करें]- गोस्वामी हितहरिवंश
- सेवक (दामोदरदास)
- हरिराम व्यास
- ध्रुवदास
- नेही नागरीदास
- प्रेमानंद महाराज