मोनारख जी महाराज

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मेघवँश के महान संत श्री मोनारख जी राजस्थान के जालोर के निवासी थे| आबुपर्वत पर मेवाड के महाराज कुम्भा का आधिपत्य था| कुम्भा कई संत महात्माओँ से परचा माँगना था| परचा नही देने पर उनको कारागृह में डाल देता था| इस प्रकार कुम्भा ने हजारोँ संत महात्माओँ को बंदी बना दिया था| जब मोनारख जी इस बात का पता चला तो वे जालोर छोड आबुपर्वत पर आ गए तथा ओरिया नामक स्थान पर रहने लगे | कुम्भा के भय से यहाँ पर कोई भी भगवान का भजन नही करते थे लेकिन मोनारख जी नियम था कि प्रतिदिन प्रात: पाँच भजन तंदूरे पर गाकर ही भोजन ग्रहण करत थे| अपने नियमानुसार भजन करने लगे| जब कुम्भा को इस बात की खबर लगी तो उसने अपने सैनिको को भेजा तथा कहा कि उसको दरबार मे हाजिर करो| सैनिकोँ ने मोनारख जी से बिनती की कि महाराणा ने आपको दरबार में पेश होने का हुकम दिया है| मोनारख जी कुम्भा के समक्ष पेश हुए | कुम्भा ने कहा कि मेरे राज्य मे भक्ति करने वालो को परचे अर्थात चमत्कार दिखाने पडते है अन्यथा उन्हे कारगृह मे डाल दाया जाता है| मोनारख जी ने तदुंरा हाथ मे लिया तथा रखियो के अनगिनत परचे बताए| महाराणा कुम्भा उनके समक्ष नतमस्तक होकर चरणोँ में गिर गया| सभी बंदी महात्माओँ को आजाद कर दिया| महाराणा कुम्भा ने इन्हे अपना सतगुरू बना लिया| मोनारख जी ने अचलगढ से करीब चार किलोमीटर दूर ओरिया गाँव में ही समाधि ले ली| वर्तमान मे इनके समाधिस्थल पर मंदिर बना हुआ हैँ| ये एक कवि भी थे| इनके द्वारा लिखित भजन भगतोँ द्वारा गाए जाते थे|| बोलो श्री मोनारख जी महाराज की जय||