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मीनाकारी

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मीनाकारी से सज्जित एक प्लेट

मीनाकारी (Enamaling) एक कलात्मक प्रक्रिया है। इसमें काच (ग्लास) के बारीक पाउडर को ७५० डिग्री सेल्सियस से ८५० डिग्री सेल्सियस तक गर्म करके पिघलाकर धातु ऑक्‍साइड जैसे चांदी, सोना, तांबा और जिंक के ऊपर क्रिस्टलीय पारदर्शी रूप में जड़ (fuse) दिया जाता है। तांबे, चांदी या सोने पर किए गए असली इनामेल से मणियों जैसे खूबसूरत रंग पैदा होते हैं।

मीनाकारी का कार्य मूल्यवान व अर्द्धमूल्वान रत्नों तथा सोने व चांदी के आभूषणों पर किया जाता है। जयपुर में सोने के आभूषणों और खिलौनों पर बड़ी सुंदर मीनाकारी की जाती है।

मीनाकारी एक पुरानी और अति-प्रचलित प्रौद्योगिकी है। अपने अधिकांश इतिहास में यह मुख्यतः आभूषणों और सजावटी कलाओं के ऊपर की जाती रही है। किन्तु उन्नीसवीं शती के बाद मीनाकारी का उपयोग औद्योगिक वस्तुओं और दैनन्दिन उपयोग की वस्तुओं (जैसे भोजन पात्रों पर) पर भी किया जाने लगा।

  1. कुदरत सिंह को इस कला के लिए 1988 में पद्म श्री पुरस्कार दिया गया था

ताँबे पर मीनाकारी

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तांबे की इनामेलिंग एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें निम्‍नलिखित चरण होते हैं:-

  • वस्‍तु को वांछित आकार के साँचे में ढ़ाला जाता है;
  • उसपर हाथ से बारीक उत्‍कीर्ण किया जाता है;
  • मीना (शीशे का परसियन कार्य), जो पत्‍थर के रूप में आती है, पीसकर बारीक पाउडर बनाया जाता है और पानी तथा गोंद मिलकर एक गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है;
  • इस घोल को उत्‍कीरित डिजाइन में भरा जाता है;
  • इसके बाद वस्‍तु को अत्‍याधिक तापमान पर गर्म किया जाता है जिससे मीना या इनामिल वस्‍तु पर चिपक जाता है;
  • अंत में, सूबसूरती प्रदान करने के लिए भराई की जाती है।

यह एनामिल/रंग फीके नहीं पड़ते और गर्म को सहन कर सकते हैं। इस नक्‍काशी में कटोरियां/मोमबत्‍ती स्‍टैंड, फ्रेम, चम्‍मच जैसी कई रोजमर्रा इस्‍तेमाल तथा सजावटी वस्‍तुएं बनाई जाती हैं।

बाहरी कड़ियाँ

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