मान्य औषधकोश
मान्य औषधकोश या मान्य भेषज संहिता (Pharmacopeia) राजकीय अथवा औषध प्रकृति तथा निर्माण विज्ञान परिषद् द्वारा संकलित एवं प्रकाशित एक पुस्तक (भेषज संग्रह) है, जिसमें औषधि की पहचान, प्रभावविज्ञान, निर्माण विज्ञान, औषधि की प्रकृति आदि का भेद-वर्णन किया गया है। इसका मुख्यालय गाजियाबाद मैं है।
अभी तक 8 संस्करण (edition ) प्रकाशित हुए हैं।[1]
- पहला संस्करण 1955
- दूसरा संस्करण 1966
- तीसरा संस्करण 1986
- चौथा संस्करण 1996
- पांचवा संस्करण 2007
- छटवा संस्करण 2010
- सातवा संस्करण 2014
- आठवा संस्करण 2018
परिचय एवं इतिहास
[संपादित करें]इंग्लैंड में 1617 ई में साधारण प्रयोग में आनेवाली औषधियों को औषधिविक्रेता और पंसारी बेचा करते थे। बाद में बेचनेवालों पर राजकीय प्रशासन द्वारा नियंत्रण होने लगा। 1618 ई में वहाँ कालेज ऑव फिजिशियन्स ऐंड सर्जन्स द्वारा पहले भेषज संग्रह का प्रकाशन हुआ था। 1618 ई0 से 1851 ई0 तक लंदन फारमाकोपिया के 13 संस्करण निकले थे। १६९९ ई0 में एडिनबरा औषधकोश का प्रथम संस्करण छपा तथा 1807 ई0 में डबलिन औषधकोश छपा। इन तीनों औषधकोशों की औषधियों में पृथकता होने के कारण 1858 ई0 के मेडिकल कानून द्वारा जेनेरल औषध परिषद् ने ब्रिटिश फारमाकोपिया तैयार कराया, जो 1864 ई0 में पहले पहल प्रकाशित हुआ और तब से समय समय पर नए नए आविष्कारों को लेकर पुस्तक के संशोधन द्वारा नए संस्करण निकलते रहे हैं। अब प्राय: सभी देशों के अपने अपने ओषधकोश बन गए हैं। अंतरराष्ट्रीय औषधकोश अभी तक नहीं बन पाया है।
भारतीय शासन द्वारा स्थापित नैशनल फार्मूलरी कमिटी ने 'नैशनल फार्मूलरी ऑव इंडिया' नामक एक ग्रंथ अंग्रेजी में तैयार किया, जिसमें लगभग सब ओषधि द्रव्यों का वर्णन और उनसे बनने वाले नुस्खे दिए हैं। यह 1960 ई0 में स्वास्थ्य मंत्रालय, केंद्रीय सरकार, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हो गया। ब्रिटिश फारमाकोपिया के आधार पर हिंदी में 'पाश्चात्य द्रव्य-गुण-विज्ञान' पर एक पुस्तक डॉ॰ रामसुशील सिंह द्वार लिखी गई और मोतीलाल बनारसीदास वाराणसी द्वारा प्रकाशित हुई है।
भारतीय भेषज संहिता
[संपादित करें]भारतीय भेषज संहिता (आई.पी.), जो कि दवाओं के मानकों की आधिकारिक पुस्तक है, के समय पर प्रकाशन से संबंधित मामलों से निपटने के लिए भारत सरकार ने भारतीय भेषज संहिता आयोग ( आई.पी.सी.) के रूप में एक अलग समर्पित, स्वायत्त संस्था का गठन किया। आई.पी. में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट , 1940 के द्वितीय अनुसूची के मामले शामिल हैं, ताकि भारत में वितरित या विक्रय के लिए आयातित दवाओं की पहचान, शुद्धता और ताकत के मानकों को निर्धारित किया जा सके। आयोग का अधिदेश (mandate) भेषजसंहिता (आई.पी.) और भारतीय राष्ट्रीय फॉर्मूलेरी (एन.एफ.आई.) के संशोधन और प्रकाशन जैसे कार्यों को सदैव नियमित रूप से करने के अलावा, हितधारकों को भारतीय भेषजसंहिता संदर्भ पदार्थ (आई.पी.आर.एस.) और फार्माकोपियियल मुद्दों पर प्रशिक्षण प्रदान करना है।
भारतीय भेषज-संहिता आयोग 1 जनवरी, 2009 से एक स्वायत्त निकाय के रूप में पूरी तरह से परिचालित हो गया है। यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत विशिष्ट बजटीय आवंटन के साथ केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव इस आयोग के अध्यक्ष हैं एवं वैज्ञानिक-मंडल के अध्यक्ष, इसके सह-अध्यक्ष हैं। सचिव-सह-वैज्ञानिक निदेशक इस आयोग के मुख्य वैज्ञानिक और कार्यकारी अधिकारी हैं।
सन्दर्भ
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- भारतीय भेषज संहिता आयोग
- औषध-प्रभाव-विज्ञान (PHARMACOLOGY)
- द्रव्यगुण शास्त्र (AYURVEDA PHARMACOLOGY)
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- वर्मा एलोपैथिक निघंटु या मैटेरिया मेडिका (गूगल पुस्तक ; लेखक - रामनाथ वर्मा)
- Indian Pharmacopoeia
- Pharmacopoeial Discussion Group
- United States Pharmacopeia