महाकाषाय

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आचार्य चरक ने जीवनीय से लेकर वयस्थापन तक 50 महाकषाय का वर्णन किया है। उन्होंने दीपनीय महाकषाय का वर्णन किया है किंतु पाचनीय महाकषाय का वर्णन नहीं किया है। महाकषायों में मधुक अर्थात मुलेठी शब्द सर्वाधिक 11 बार और पिप्पली 9 बार आया है। 50 महाकषायो में वर्णित कुल औषध द्रव्यों की संख्या 276 है।

पचास महाकषाय - 50 महाकषायो को 10 वर्गों में विभाजित किया गया है।

जीवनीयादि वर्ग ( ६ )[संपादित करें]

यह छ प्रकार के कषायों का ( प्रथम ) वर्ग है ।

१. जीवनीय ,

२. बृहणीय ,

३. लेखनीय ,

४. भेदनीय ,

५. सन्धानीय और

६. दीपनीय ;

बल्यादि वर्ग (४)[संपादित करें]

१ . बल्य ,

२. वर्ण्य ,

३. कण्ठय

४. हद्य ;


तृप्तिनादि वर्ग ( ६ )[संपादित करें]

१. तृप्तिन ,

२. अर्शोघ्न ,

३. कुष्ठन ,

४. कण्डूप्न ,

५. क्रिमिघ्न और

६. विषघ्न ;

स्तन्यजननादि वर्ग ( ४ )[संपादित करें]

१ . स्तन्यजनन ,

२. स्तन्यशोधन ,

३. शुक्रजनन

४ , शुक्रशोधन ;

स्नेहोपगादि वर्ग ( ७ )[संपादित करें]

१. स्नेहोपग ,

२. स्वेदोपग ,

३. वमनोपग ,

४. विरेचनोपग ,

५ , आस्थापनोपग ,

६. अनुवासनोपग

७. शिरोविरेचनोपग ;

छर्दिनिग्रहणादि वर्ग ( ३ )[संपादित करें]

१. छर्दिनिग्रहण ,

२. तृष्णानिग्रहण

३. हिक्कानिग्रहण ;

पुरीषसंग्रहणीयादि वर्ग ( ५ )[संपादित करें]

१ . पुरीषसंग्रहणीय ,

२. पुरोषविरजनीय ,

३. मूत्रसंग्रहणीय ,

४. मूत्रविरजनीय

५. मूत्रविरेचनीय ;

कासहरादि वर्ग ( ५ )[संपादित करें]

१. कासहर ,

२.श्वासहर ,

३. शोथहर ,

४ . ज्वरहर

५. श्रमहर ;

वाहप्रशमनादि वर्ग ( ५ )[संपादित करें]

१ , दाहप्रशमन ,

२. शीतप्रशमन ,

३ , उदर्दप्रशमन ,

४. अंगमर्दप्रशमन

५. शूलप्रशमन ;

शोणितस्थापनादि वर्ग ( ५ )[संपादित करें]

१ , शोणितस्थापन ,

२. वेदनास्थापन ,

३. संज्ञास्थापन ,

४. प्रजास्थापन

५. वयःस्थापन ।