मर्दनसिंह जूदेव बहादुर

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महाराजा मर्दन सिंह बुन्देला[संपादित करें]

King of Banpur, Talbahat and Chanderi

[1]महाराजा मर्दन सिंह बुन्देला का जन्म 1799 ई. में हुआ था। इनके पिता मोद प्रहलाद बुन्देलखण्ड की चन्देरी रियासत के राजा थे। मर्दन सिंह की माता का नाम राजकुँवर था। बुन्देलखण्ड वर्तमान में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बॉर्डर का हिस्सा है जहां बुंदेली भाषा का प्रचलन है।

महाराजा मर्दन सिंह का परिचय[संपादित करें]

1811 ई. में ग्वालियर सिंधिया ने चन्देरी पर आक्रमण कर उस पर आधिप[2]त्य स्थापित कर लिया। 1830 ई. में मोद प्रहलाद ने बानपुर को अपनी राजधानी बनाया। बानपुर ललितपुर जिले में है। मगर मर्दन सिंह का जन्म स्थान एवं कर्मक्षेत्र अधिकांशतः मध्यप्रदेश रहा।महाराजा मर्दन सिंह का जन्म बुंदेला क्षत्रिय परिवार में हुआ था और वे ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह बुन्देला के वंशज थे। वे अपने समय के महान वीर, संगठक, कुशल और प्रतापी राजा थे।

Chanderi fort

1857 में अंग्रेजो से संघर्ष किया -[संपादित करें]

सागर के पास मालथौन एवं नरयावली में मर्दन सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध किए। उन्होंने शाहगढ के राजा बखतवली का सहयोग किया। 1842 इ्र्र. में मोद प्रहलाद की मृत्यु उपरान्त मर्दन सिंह बानपुर के राजा बने। मर्दन सिंह ने बखतवली के सहयोग से चन्देरी में सिंधिया के प्रतिनिधि जसवंतराय से चन्देरी प्राप्त कर लिया। क्रांतिकारियों के भय से 370 अंग्रेजों (173 पुरूष, 63 महिलाएं एवं 134 बच्चे) को शनिवार 27 जून, 1857 को सागर के किले में शरण लेनी पडी। शहगढ़ राजा बखतवली ने 20 जुलाई, 1857 को मर्दन सिंह को पत्र भेज कर अंग्रेजों पर आक्रमण हेतु सागर बुलाया।किले की चारों दिशाओं में क्रमशः बखतवली, उनके सेनापति बोधन दौआ, बानपुर राजा मर्दन सिंह एवं गढी अम्बा पानी के नवाब बन्धुओं ने घेर लिया। नरयावली के युद्ध में 17 सितम्बर, 1857 को मर्दन सिंह ने एक युद्ध में ब्रिटिश सेना को करारी शिकस्त दी। ब्रिटिश सरकार ने अंग्रेजों को मुक्त कराने उस समय के सबसे बहादुर सेनापति ब्र्रिगे्रडियर जनरल ह्रयूरोज को भेजा। इन क्रांतिकारियों ने बुंदेलखंड के पश्चिमी प्रवेश द्वार राहत के किले में ह्रयूरोज की विशाल सेना को रोकने हेतु मोर्चावन्दी की गद्दारों की सूचना के कारण ह्रयूरोज ने राहतगढ पर अधिकार कर लिया। 3 फरवरी, 1858 को पूरे 222 दिन पश्चात सागर के किले से अंग्रेजों को मुक्त करा लिया। इसके पश्चात ह्रयूरोज रानी लक्ष्मीबाई का सामना करके झाँसी की ओर बढा।रानी लक्ष्मीबाई मर्दन सिंह की काफी इज्जत करती थीं। एवं सदैव पत्र द्वारा उनसे परामर्श लेती थीं। मर्दन सिंह एवं बखतवली भी रानी लक्ष्मीबाई के सहयोग हेतु तत्पर रहते थे। बखतवली एवं मर्दन सिंह ने ह्रयूरोज को झाँसी जाने से रोकने के लिए क्रमशः मदनपुर घाटी एवं नाराहट घाटी में मोर्चाबन्दी की। गद्दारों की सूचना के चलते ह्रयूरोज इस मोर्चे को तोड कर झाँसी रवाना हो गया। ह्रयूरोज ने मेजर ओर को यह दायित्व सौंपा कि वह बखतवली एवं मर्दन सिंह को रानी लक्ष्मीबाई की सहायता हेतु कालपी आने से रोके। ओर इसमें सफल रहा। ग्वालियर में अंग्रेजों से संघर्ष करते-करते रानी लक्ष्मीबाई 17 जून, 1857 को वीर गति को प्राप्त हुई।

[3]रानी लक्ष्मी बाई के साथ मिलकर ग्वालियर तक शुरू की थी क्रांति सेना[संपादित करें]

1857 स्वंतत्रता आंदोलन की रणनीति भारतगढ़ दुर्ग में मंगल पांडेय, रानी लक्ष्मीबाई आदि क्रांतिकारियों के तैयार की थी। भारतगढ़ दुर्ग की बैठक में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की तैयारियां शुरू हुई थी। राजा मर्दन सिंह ने अंग्रेजों के दबाव और लालच को दरकिनार कर झांसी रानी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध लड़ा। ग्वालियर में झांसी रानी के बलिदान के बाद अंग्रेजों ने राजा मर्दन सिंह और बखतबली सिंह को बंदी बनाकर लाहौर जेल भेज दिया था। फिर राजा मर्दन सिंह को मथुरा जेल लाया गया। इस जेल में चंदेरी, बानपुर, तालबेहट, गढाकोटा रियासत के अन्तिम शासक राजा मर्दन सिंह अंग्रेजों की क्रूरता को सहन करते हुए 22 जुलाई 1879 अमर शहीद हो गए थे।

  1. Mahotsav, Amrit. "राजा मर्दन सिंह". Azadi Ka Amrit Mahotsav, Ministry of Culture, Government of India (English में). अभिगमन तिथि 2024-03-25.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  2. Mahotsav, Amrit. "राजा मर्दन सिंह". Azadi Ka Amrit Mahotsav, Ministry of Culture, Government of India (English में). अभिगमन तिथि 2024-03-25.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  3. "राजा मर्दन सिंह ने चौहद्दी घेरकर दी थी अंग्रेज़ो को टक्कर, झाँसी की रानी के साथ मिलकर तैयारी की थी सेना | Raja Mardan Singh fight to British army with Rani of Jhansi in 1857". Patrika News. 2022-07-23. अभिगमन तिथि 2024-03-25.