मदनपुर खादर जेजे कॉलोनी

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मदनपुर खादर जेजे कॉलोनी एक स्लम पुनर्वास कॉलोनी है और दिल्ली के दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में स्थित अनेकों 'झुग्गी-झोपड़ियों' में से एक है। यह सरिता विहार और कालिंदी कुंज के पास स्थित है और उत्तर प्रदेश की सीमा से मात्र 1.5km की दूरी पर स्थित है। इसकी स्थापना के समय से अब तक यहां का समुदाय अपने जीवन के संरचनात्मक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक पहलुओं में कई बड़े परिवर्तनों से गुज़र चुका है। खादर की स्थापना कई चुनौतियों से जुड़ी हुई है जिन का दायरा न्यूनतम मूलभूत जरूरतों से शुरू होकर महिलाओं की सुरक्षा और गतिशीलता तक जाते हैं।

विषय सूची 1. इतिहास 2. आस-पड़ोस 3 . अभिगम्यता 4 . शिक्षा और रोजगार 5 . जनसांख्यिकी संबंधी 6. शासन प्रणाली 7 . भौतिक और सामाजिक संरचना 8 . अनुमोदक 9 . बाहरी लिंक

इतिहास[संपादित करें]

"खादर" का संकेत यहां पाई जाने वाली काली चिकनी बलुई मिट्टी की ओर है; जो निम्नस्थ बाढ़ से प्रभावित होने वाली उपजाऊ ज़मीन का हिस्सा है। क्योंकि ज्यादातर ज़मीन कॉलोनी के बीच से निकलते हुए कनालों की ढलान पर है, इसीलिए स्थानीय निर्माण अधिनियम यहां तीन मंज़िलों से ऊंचे घरों के निर्माण को प्रतिबंधित करता है। 100 सालों से भी लंबे समय से यहां पर मदनपुर खादर नाम का एक गांव रहा जब 70 और 80 के दशक में उद्योग और कारखानों में नौकरियों की तलाश में दिल्ली आए प्रवासियों की लहरों ने इसका परिदृश्य बदलना शुरू किया।

सन 2000 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक ऐतिहासिक निर्णय पारित किया गया। इसमें एक 'चिंतित नागरिक' द्वारा लाए गए जनहित वाद (पीआईएल) पर अंतिम अभीवचन देते हुए न्यायाधीश ने सभी झुग्गी-झोपड़ी निवासियों को 'पॉकेटमार', 'अतिक्रमणकारी ' और 'अनाधिकृत' घोषित कर दिया। व्यापक तौर से अलमित्रा पटेल केस के हिसाब से प्रख्यात इस निर्देश ने अब तक झुग्गी झोपड़ियों को मिली हुई राजनीतिक सुरक्षा को पलट दिया जिसके आधार पर यहां के निवासी शहर में रहते और बढ़ते आए थे, हालांकि जिस जमीन पर वे रहते थे उसका औपचारिक मालिकाना उनके पास नहीं था। जैसा कि दत्ता (2012) लिखते हैं "जहां भारतीय न्यायालयों ने 1980 के दशक तक एक समझदारी का पालन किया था कि खिफायती आश्रय और संरचनात्मक सुविधाओं की उपलब्धता एक मूलभूत मानव अधिकार है, इस निर्देश ने भारत के अधिकांश प्रांतों में अनधिकृत आवास को एक दंडनीय अपराध के रूप में देखने का चलन शुरू किया है।" इसके कुछ ही समय बाद मदनपुर खादर का क्षेत्र भारत सरकार द्वारा दिल्ली भर के विभिन्न झुग्गी झोपड़ियों से बेदख़ल किए गए लोगों के पुनर्वास स्थल के हिसाब से चिन्हित कर दिया गया।

जेजे कॉलोनी का नाम "झुग्गी-झोपड़ी" से आता है जो अनधिकृत बस्तियों का साधारण नाम है, जिसका मतलब है कि वह लोग जो उस जमीन पर रह रहे हैं वे कानूनी तौर पर इसके मालिक नहीं हैं। मदनपुर खादर जेजे कॉलोनी की स्थापना सर्वोच्च न्यायालय के सन 2000 के निर्देश के बाद स्थापित हुआ था जब दिल्ली विकास प्राधिकरण ने मदनपुर खादर गांव की जमीनों को अधिग्रहित करके इसे प्लाट बना कर इसे दिल्ली के विभिन्न बस्तियों से बेदख़ल हो कर यहाँ पुनर्वासित किये गए हजारों परिवारों को लीज़ पर बेचा (रु 7000 में 22 स्क्वायर मीटर प्लॉट और रु 5,000 में 12 स्क्वायर मीटर प्लॉट)। पुनर्वास की योग्यता उन तक सीमित थी जिनके पास सन 1990 में 31 जनवरी तक का राशन कार्ड था। इसके बाद इसे बदलकर जिन लोगों के पास 31 दिसंबर 1998 तक का राशन कार्ड था उन्हें भी 12.5 स्क्वायर मीटर के प्लॉट पाने का अधिकारी माना गया। 4 सालों के समय में नेहरू प्लेस, कालकाजी मंदिर, राज नगर, आर के पुरम, निजामुद्दीन, ग्रीन पार्क, अलकनंदा व आईटीओ से लोगों को ला कर बेहद चुनौतीपूर्ण और कठिन परिस्थितियों में जेजे कॉलोनी में पुनर्वासित किया गया। हालांकि इसके निवासी अब अपने प्लाट के कानूनी मालिक हैं, लीज होल्डर हैं, इसका नाम जेजे कॉलोनी रखा गया क्योंकि वे एक समय दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों के निवासी रहे थे।

दिल्ली जनवादी अधिकार मंच द्वारा सन 2001 में निकाली गई रिपोर्ट ने मदनपुर खादर जेजे कॉलोनी में पुनर्वासित होने के समय बेदख़ल झुग्गी-झोपड़ी निवासियों द्वारा झेली गयी चुनौतियों को रेखांकित किया है। यह जमीन मुख्य तौर से किसानी की थी और विकसित नहीं की गई थी व मूलभूत संरचनात्मक सुविधाएं भी वहां नहीं थीं, जो कॉलोनी में काफी बुरी हालत में थीं। हालांकि अधिकतर निवासी कॉलोनी में आ गए थे, करीब 2000 के बिजली कनेक्शन 2004 तक नहीं मिले थे। कोई सीधी मल प्रवाह प्रणाली नहीं थी, और अधिकतर लोगों को खुले में शौच करना पड़ता था। बाद में सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण के बावजूद इनकी देखरेख खराब रही और इस्तेमाल भी कम रहा। पानी, सफाई जैसी अन्य संरचनाएं भी पुनर्वास के समय बुरी हालत में थी। पानी का सप्लाई अनिश्चित था और निवासियों को अक्सर टैंकरों या हैंड पंप के सहारे काम चलाना पड़ता था। मल प्रवाह अंदर बनी सड़कों के साथ साथ दौड़ती खुली नालियों द्वारा होता था।

आस-पड़ोस[संपादित करें]

मदनपुर खादर तक एक मेन रोड जाती है जिसके दोनों तरफ़ कबाड़ी बेचने वाले बैठते हैं। यह सड़क यमुना कनाल को पार करती हुई पुनर्वास कॉलोनी में प्रवेश करती है। कनाल की दूसरी ओर किसानी जमीन है जिनका मालिकाना मदनपुर खादर गांव के निवासियों के पास है। कनाल को पार करते ही बाएं हाथ पर बबलू डेरी है जो गाय और भैंस का दूध बेचती है। इसके बगल में ही इस इलाके का सरकारी शराब का ठेका है। कॉलोनी में घुसते ही पहला चौक समोसा चौक के नाम से जाना जाता है, जिसके बाद निर्माण चौक आता है जिसके बाद जलेबी चौक और फिर श्री राम चौक है जहां से आगे बढ़ते हुए कालिंदी कुंज की सड़क निकल जाती है। निर्माण चौक के आसपास की दुकानें निर्माण कार्य की सामग्री बेचती है यह जलेबी चौक और समोसा चौक के बीच में है। जहां हर ब्लॉक में सब्जी व राशन की दुकानें हैं, इलाके के मुख्य बाजार, जलेबी चौक के पास की सब्जी मंडी और शनि मंदिर के बगल में हर शनिवार लगाया जाने वाला शनि बाजार हैं। सब्जी मंडी हर दिन खुलती है। जलेबी चौक और उसके बगल का बाजार शाम को नाश्ता करने और सब्जी खरीदने के सबसे लोकप्रिय स्थान हैं जो हर दिन के हिसाब से चलते हैं; यहां एसबीआई, केनरा बैंक और आईसीआईसीआई के एटीएम भी हैं। पुनर्वास कॉलोनी में अब कुल मिलाकर 8 ब्लॉक हैं जिनका नाम A1, A2, B1, B2, C ब्लॉक, D ब्लॉक, A पॉकेट और फेस 3 हैं। दोनों A पॉकेट और B2 में निर्माण जमीन के स्तर से थोड़ा नीचे है।

अभिगम्यता[संपादित करें]

अलग अलग प्रकार के निजी परिवहन कॉलोनी से चला करते हैं। ई-रिक्शा लोगों को सबसे करीब के दो मेट्रो स्टेशनों -- वायलेट लाइन पर सरिता विहार और मजेंटा लाइन पर कालिंदी कुंज तक लेकर जाते हैं। इसके अतिरिक्त निजी मिनी बस और वैन जसोला-ओखला-हरकेश नगर से होते हुए नेहरू प्लेस के रास्ते पर चलते हैं। हालांकि यह सबसे बड़े पुनर्वास कॉलोनियों में से एक है, जहां से लाखों मजदूर काम करने बाहर जाते हैं, यहां दिल्ली परिवहन निगम पूरी तरह अनुपस्थित है और इस रूट से कोई भी बसें नहीं चलती हैं। इस कारण यहां के निवासी निजी मिनी बसों पर और हाल के समय से दिल्ली मेट्रो पर पूरी तरह निर्भरशील हैं।

शिक्षा और रोजगार[संपादित करें]

जेजे कॉलोनी में 6 सरकारी स्कूल हैं और करीब 15 निजी स्कूल हैं। इन स्कूलों के खुलने के पहले पुनर्वास कॉलोनी के बच्चे सरिता विहार सरकारी स्कूल में जाते थे। कई महिलाएं यहां से पास के सरिता विहार और कालिंदी कुंज के मकानों/घरों में घरेलू कामगारों के हिसाब से कार्यरत हैं। वहीं, कम उम्र की महिलाएं और पुरुष अधिकतर ही सर्विस सेक्टर के होटल व कॉल सेंटरों में कार्यरत हैं। पुरुष मुख्यतः दिहाड़ी पर काम करते हैं।

जनसांख्यिकी संबंधित[संपादित करें]

खादर के अभी के निवासी पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे क्षेत्रीय राज्यों के पहले या दूसरे पीढ़ी के प्रवासी हैं। यहां की अनुमानित जनसंख्या करीब 15000 लोगों की है, जिनमें से बहुलांश जनसंख्या हिंदू है। यहां के निवासी मुख्यतः निम्न-आय मिलने वाली मजदूरी करते हैं, जैसे चपरासी, ड्राइवर, घरेलू कामगार, सिक्योरिटी गार्ड, कचरा बीनने, रेड़ी लगाने और निर्माण व उद्योगिक कार्य। महिलाएं खासतौर से घरेलू कामगारों, फैक्ट्री मज़दूरों, टैक्सी ड्राइवरी, रेडी लगाने और एनजीओ में काम करती हैं। यहां की स्थानीय भाषा हिंदी है।

शासन प्रणाली[संपादित करें]

जेजे कॉलोनी का वार्ड नंबर 103 है, और यहां की वर्तमान पार्षद संतोष देवी हैं जो शासक दल भारतीय जनता पार्टी से जीती हैं।

भौतिक और सामाजिक संरचना मदनपुर खादर शहर की परिकल्पना और संरचना में प्रत्यक्ष अंतर को उभारता है जो एक बड़े राष्ट्रीय अखबार में छपे एक लेख में बखूबी व्यक्त की गई है, "मदनपुर खादर नीले शीशे की दीवारों वाले कॉरपोरेट दफ्तरों और सरिता विहार के चमकदार नए मॉलों के बीच दबी हुई, विशाल अपोलो हॉस्पिटल के बगल में स्थित -- यहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है।" झुग्गी झोपड़ियों के पुनर्वास हेतु अर्बन सर्विसेस प्रोग्राम आदेश देती है कि हर 10 परिवारों के लिए एक टॉयलेट के अनुपात से पे एंड यूज शौचालय उपलब्ध कराया जाएं। किंतु इस पूरे इलाके में उपस्थित सार्वजनिक शौचालयों की संख्या करीब 15 से 20 तक की होगी। हर ब्लॉक में सार्वजनिक शौचालयों की संख्या ब्लॉक के विस्तार पर निर्भर करती है। ब्लॉक B1 में 5 शौचालय हैं, जहां A1 में तीन हैं, और B2 में दो इत्यादि। शौचालय कुछ खास समय अवधि में ही काम करते हैं, सुबह 6:00 से 11:00 बजे और रात 4:00 से 8:00 बजे तक। सुरक्षित और मुफ्त जलपान इस कॉलोनी में बहुत ही मुश्किल से मिलता है और सप्लाई से आने वाला पानी पीने लायक नहीं होता और खारा होता है। इस कारण इस क्षेत्र में पानी सफाई के उद्योग काफ़ी विस्तृत हो गए हैं और 20 लीटर पानी के लिए रु. 10 के औसत दर पर पानी देते हैं। मथुरा रोड बदरपुर थर्मल पावर स्टेशन से निकलने वाले फ्लाई अश और धूल के कणों के कारण स्वास्थ्य के दीर्घ कालीन ख़तरे पैदा होते हैं। लेकिन यहां कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है, मात्र दो सरकारी डिस्पेंसरी हैं और कई निजी क्लीनिक हैं, किंतु इनमें से एक सरकारी डिस्पेंसरी ही काम करती है। स्वास्थ्य इस क्षेत्र के लिए एक बड़ा सरोकार है और डायरिया, टाइफाइड और सांस लेने की बीमारियां बच्चों के बीच सामान्य हैं। दिल्ली फोर्सेज़ नीव द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक सन 2010 में मदनपुर खादर के 2% बच्चे बेहद कुपोषित थे। किसी भी गंभीर बीमारी के लिए निवासियों को 15 किलोमीटर से ज्यादा दूर जाकर एम्स या सफदरजंग अस्पताल में इलाज कराना पड़ता है। मूलभूत नागरिक सुविधाओं की गैरमौजूदगी सबके लिए एक समस्या है, किंतु यह महिलाओं और लड़कियों को ऐसी परिस्थितियों में ज्यादा प्रभावित करती है। जैसा कि गार्डियन के एक लेख में हाल में ही बताया गया था, "अनियंत्रित निजी परिवहन के महंगे दामों और पुरुषों द्वारा लंबे सफर पर छेड़खानी के डर, व अपनी बस्ती में रोजगार के सीमित मौके पाते हुए, घर रहने के सिवा उनके पास कुछ ही अन्य विकल्प मौजूद होते हैं"। महिलाओं की गतिशीलता के सामने बनी यह चुनौतियां लिंग आधारित हिंसा के ऊँचे पैमाने, जिनमें यौन उत्पीड़न, यौन आघात, घरेलू हिंसा इत्यादि भी शामिल हैं, उनसे और भी ख़राब रूप लेते हैं। जागोरी जैसे एनजीओ ने 2004 से इस बस्ती में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लीयते के लिए काम किया है। जेजे कॉलोनी में करीब 40 आंगनवाड़ी हैं। जहां इनमें से ज्यादातर सरकार द्वारा चालित हैं, इनमें से कुछ को एनजीओ के हाथों में कुछ समय के लिए सब-कांट्रैक्ट भी किया गया था। आगे के समय में इनकी परिचालन अवस्था अस्पष्ट है। मदनपुर खादर में फिलहाल कई एनजीओ, जैसे कि जागोरी, अग्रगामी इंडिया, इताशा सोसायटी, प्रयत्न, कस्प दिल्ली कार्यरत हैं। वे स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, हस्त कौशल। व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्लेसमेंट जैसे मुद्दों पर काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर संस्थान महिलाओं और बच्चों के अधिकारों पर केंद्रित हैं।