बिजोलिया शिलालेख

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बिजोलिया नगर भीलवाड़ा जिले में स्थित है|उपरमाल के पठार पर स्थित बिजोलिया की प्रसिद्धि वहा स्थित ब्राह्मण और जैन मंदिरों और चट्टानों पर उत्कीर्ण शिलालेखो से भी ज्यादा भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व यहाँ हुवे किसान आन्दोलन के कारण है , जिसमे विभिन्न प्रकार के 84 करो के लगाए जाने के कारण जमींदार के विरुद्ध स्थानीय किसानो ने आन्दोलन किया था जिसका नेतृत्व साधू सीतारामदास और विजय सिंह पथिक ने किया था|बिजोलिया,मेनाल,जोगनिया माता का ये क्षेत्र प्राचीन समय में में मुख्यत चौहानों के अधीन रहा वहा स्थित प्राचीन मंदिरों का निर्माण चौहान शासको के काल में हुवा बाद में गुहिलो के अधीन आ गया| बिजोलिया शिलालेख में महाराज वासुदेव चौहान द्वारा चौहान वंश की स्थापना के लेख प्राप्त होते हैं वासुदेव चौहन ने 551 ई में चौहान वंश की स्थापना की वासुदेव चौहान चौहन वंश के आदि पुरुष है। महाराणा सांगा के समय सांगा ने खानवा के युद्ध में परमार अशोक की वीरता से प्रभावित होकर बिजोलिया क्षेत्र उन्हें जागीर के रूप में प्रदान कर दिया जिसके बाद में स्वतंत्रता तक ये पंवारो की जागीर में ही रहा| बिजोलिया की कोटा से दुरी 85 किलोमीटर, बूंदी से 50 किलोमीटर, चित्तौडगढ से 100 किलोमीटर है| भीलवाड़ा (1140 ईस्वी) बिजोलिया का पार्श्वनाथ मंदिर में लगा यह शिलालेख मूलत: दिगंबर शिलालेख है। इस शिलालेख में सांभर व अजमेर के चौहान वंश की जानकारी मिलती है। इस शिलालेख के अनुसार चौहान वंश की उत्पति वत्स गोत्र के ब्राह्मण से हुई। इस शिलालेख के ऊपर मालवा के पठार को उतामद्री कहा गया है। जैसे की माना गया है इस शिलालेख के लेखक गुणभद्र व कायस्थ हैं लेकिन इसको पत्थर पर उत्कीर्ण गोविंद ने किया था। इस शिलालेख के अनुसार सांभर झील का निर्माण चौहान कोली वंशी संस्थापक वासुदेव चौहान ने करवाया था। बिजोलिया शिलालेख की खोज पाशर्वनाथ मंदिर से की गई। इस शिलालेख में कुछ स्थानों के नाम का प्राचीन नाम का विवरण है:- बिजोलिया - उत्तमादि दिल्ली - दिल्लीमिका बालोतरा - खेड़ा नागौर - कोलीबाडा -अहिच्छत्रगढ़ सांभर - शाकम्भरी इस शिलालेख को लिखवाने वाले व्यक्ति का नाम गुणभद्र तथा लिखने वाले व्यक्ति का नाम केशव कायस्थ था ।