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बामा (लेखिका)

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बामा (लेखिका)
जन्म फौस्टिना मैरी फातिमा रानी
1958 (आयु 65–66)
पुदुपट्टी, चेन्नै, India
राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा लेखिका, शिक्षिका

बामा (जन्म 1958) एक तमिल दलित नारीवादी, शिक्षिका और उपन्यासकार हैं। उनका आत्मकथात्मक उपन्यास कारुक्कु (1992) तमिलनाडु में दलित ईसाई महिलाओं द्वारा अनुभव किए गए सुखों और दुखों का वर्णन करता है। [1] बाद में उन्होंने दो और उपन्यास, संगति (1994) और वनमम (2002) के साथ-साथ लघु कथाओं के तीन संग्रह लिखे: कुसुम्बुककरन (1996) और ओरु तत्वुम एरुमैयुम (2003), 'कंदट्टम' (2009)। [2] इसके अतिरिक्त उन्होंने बीस लघु कथाएँ लिखी हैं।

आरम्भिक जीवन और परिवार

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बामा का जन्म 1958 में तत्कालीन मद्रास राज्य के पुतुपट्टी के परैयार समुदाय के एक रोमन कैथोलिक परिवार में हुआ था। [1] उनका मूल नाम फौस्टिना मैरी फातिमा रानी था। बाद में उन्होंने 'बामा' को अपने कलम नाम के रूप में स्वीकार किया। उनके पिता, सुसैराज भारतीय सेना [3] में कार्यरत थे और उनकी माँ का नाम सेबस्तिअम्मा था। वह प्रसिद्ध दलित लेखक राज गौतमन की बहन हैं। बामा के दादा हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे। [1] बामा के पूर्वज दलित समुदाय से थे और खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते थे।

बामा की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव में हुई। उनके आरम्भिक लेखन पर जयकान्तन, अखिलन, मणि और पार्थसारथी जैसे तमिल लेखको का प्रभाव पड़ा। कॉलेज में, उन्होंने खलील जिब्रान और रवींद्रनाथ टैगोर को पढ़ा और उनके साहित्य का आनन्द लिया। स्नातक स्तर की शिक्षा पूरी करके बहुत गरीब लड़कियों के लिए चलाये जाने वाले एक स्कूल में वे शिक्षिका बन गईं। इसके बाद उन्होंने सात वर्ष तक एक नन के रूप में कार्य किया। [3]

नन बनने के बाद, बामा को पता चला कि दलित कैथोलिकों के लिए एक अलग प्रशिक्षण केंद्र था।  दलित कैथोलिक प्रशिक्षण केंद्र की खराब स्थितियों से नाराज होकर, उन्होंने सात वर्ष बाद इसे छोद़ दिया। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक कैथोलिक ईसाई स्कूल में एक शिक्षिका के रूप में शामिल हो गईं। अपने शिक्षण अनुभव के दौरान, उन्हें पता चला कि कैथोलिक नन दलित बच्चों और शिक्षकों पर अत्याचार करती हैं। इस कटु अनुभव ने कॉन्वेंट के प्रति उसके तिरस्कार को और बढ़ा दिया। इसी समय उन्होंने लेखन कार्य आरम्भ किया। एक मित्र के प्रोत्साहन से उन्होंने अपने बचपन के अनुभवों पर लिखा। [1] उनका प्रथम उपन्यास कारुक्कू इन्हीं अनुभवों पर आधारित है। यह उपन्यास 1992 में प्रकाशित हुआ था। [1] बामा ने यह उपन्यास तमिल की एक बोली में लिखा जिसे केवल उनका समुदाय ही बोलता है। बामा का कहना है कि इस बोली में लिखने को लेकर उच्च जाति के लोगों ने उनकी आलोचना की। इसी से उन्होंने बाद के अपने सभी उपन्यासों को इसी बोली में लिखने का निर्णय लिया। [4]

जब उपन्यास प्रकाशित हुआ, तो यह कारण देते हुए कि उन्होंने गाँव को बदनाम किया है, बामा को उसके गाँव से बहिष्कृत कर दिया गया। अगले सात महीनों तक उन्हें गाँव में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई। [5] हालांकि, समीक्षकों ने कारुक्कु की प्रशंसा की और सन 2000 में इस पर उन्हें क्रॉसवर्ड बुक पुरस्कार दिया गया। [6] [7] तब से यह उपन्यास कई विश्वविद्यालयों में सीमान्त साहित्य, अनुवाद में साहित्य, आत्मकथा, नारीवादी साहित्य, सबाल्टर्न साहित्य और दलित साहित्य जैसे विभिन्न पाठ्यक्रमों में एक पाठ्यपुस्तक बन गया है। [8] बामा ने इसके बाद संगति और कुसुम्बुककरण की रचना की। उन्होंने ने ऋण लिया और उत्तरामेरुर में दलित बच्चों के लिए एक स्कूल स्थापित किया। [5] उनके करुक्कु का अंग्रेजी में अनुवाद [6] और कुसुम्बुककरण और संगति का फ्रेंच में अनुवाद किया गया है। [1] दलित लेखक और कार्यकर्ता जूपका सुभद्रा द्वारा संगति का तेलुगु में अनुवाद भी किया गया है। [9]

बामा ने हाल ही में "सिंगल बाई चॉइस : हैप्पीली अनमैरिड वुमन!" में एक निबंध प्रकाशित किया, जो भारत में अविवाहित महिलाओं द्वारा उनके अविवाहित रहने के बारे में बात करते हुए 13 निबंधों का संग्रह है। अपने निबन्ध में वह भारत में एक अकेली पेशेवर दलित महिला होने के अपने चुनाव के बारे में बात करती हैं। जब वे बड़ी हो रहीं थीं तब उन्होंने सोचा था कि वे किसी पुरुष से विवाह करेंगी और एक कन्या को जन्म देंगीं किन्तु धीरे-धीरे उनका विचार बदला और उन्होंने अविवाहित रहने का चुनाव किया क्योंकि उनका विचार है कि आज की वर्तमान विवाह संस्था और उसकी संरचना महिलाओं के अनुकूल बिल्कुल भी नहीं है। वह यह भी कहती हैं, "मुझे अपने जैसा होना पसंद है; मैं किसी के लिए भी अपना अस्तित्व, अपनापन, अपनी स्वतंत्रता और पहचान खोना नहीं चाहती थी।" [10] [11] हालाँकि, उनके अविवाहित रहने का चुनाव भी चुनौतियों से खाली नहीं रहा है। वे इस बारे में बात करती हैं कि अविवाहित रहने के कारण उन्हें किस प्रकार अपमान और संदेह का सामना करना पड़ा। [12]

विषय-वस्तु

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बामा के उपन्यास जातिगत और लैंगिक भेदभाव पर केंद्रित हैं।  वे ईसाई धर्म और हिंदू धर्म में प्रचलित जातिगत भेदभावों को चित्रित करते हैं। एक साक्षात्कार में, बामा ने कहा है कि वह इसलिये लिखती हैं क्योंकि वे अपने लोगों के अनुभवों को साझा करना अपना कर्तव्य और जिम्मेदारी मानती हैं। इसके अलावा, लेखन उन्हें रेचक और मुक्तिकर भी लगता है। वे लेखन को अपने आप में एक "राजनीतिक कार्य" समझतीं हैं। वे कहतीं हैं कि लेखन एक "हथियार" है जिसका उपयोग वे अमानवीय जाति प्रथा के खिलाफ लगातार लड़ने के लिए करती हैं। [13]

ग्रन्थसूची

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  • कारुक्कु (1992; दूसरा संस्करण पोस्टस्क्रिप्ट के साथ, 2012)
  • संगति (1994)
  • कुसुम्बुककरण (1996)
  • वनमम (2002)
  • ओरु तत्वुम एरुमैयुम (2003)
  • कोंडट्टम (2009)
  • उनकी सभी रचनाओं का अंग्रेजी और फ्रेंच में अनुवाद किया गया है।

सन्दर्भ

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  1. Dutt, Nirupama. "Caste in her own image". The Tribune. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "tribune_20030817" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  2. "Biography, Tamil Studies conference". Tamil Studies Conference. मूल से 2010-01-28 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-01-07.
  3. Sudha, Sarojini. "From Oppression to Optimum Through Self-spun Philosophy- A Comparative Reading of the Fictional Output of Maya Angelou and Bama" (PDF). Shodhganga.inflibnet,ac.in. मूल (PDF) से 20 August 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 May 2017.
  4. "On a wing and a prayer: Tamil Dalit writer Bama on 25 years of Karukku". The Indian Express (अंग्रेज़ी में). 2018-01-21. अभिगमन तिथि 2020-03-16.
  5. Hariharan, Gita (28 December 2003). "The hard business of life". The Telegraph. मूल से 3 February 2013 को पुरालेखित.
  6. Kannan, Ramya (4 May 2001). "Tales of an epic struggle". The Hindu. मूल से 13 April 2014 को पुरालेखित.
  7. Prasad, Amar Nath (2007). Dalit literature: A critical exploration. Sarup & Sons. पृ॰ 69.
  8. "Karukku was my healing: Bama Faustina". National Herald (अंग्रेज़ी में). 30 January 2018. अभिगमन तिथि 2019-03-14.
  9. "Subhadra Joopaka". Literary Commons (अंग्रेज़ी में). 2016-01-19. मूल से 2018-08-19 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2019-03-14.
  10. Single by choice : happily unmarried women!. Sharma, Kalpana, 1947-. New Delhi. 2019. OCLC 1110885246. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-85606-22-9.सीएस1 रखरखाव: अन्य (link)
  11. Faustina, Bama (21 July 2019). "How I learnt to carry on with life in silence". National Herald (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2020-08-01.
  12. "On a wing and a prayer: Tamil Dalit writer Bama on 25 years of Karukku". The Indian Express (अंग्रेज़ी में). 2018-01-21. अभिगमन तिथि 2020-03-16.
  13. Sarangi, Jaydeep (2018-01-28). "Interview with Bama". Writers in Conversation. 5 (1). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2203-4293. डीओआइ:10.22356/wic.v5i1.28.