बाजरे का अर्गट रोग

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बाजरे का अर्गट (चेपा) रोग अर्गट का सामान्य नाम स्कलेरोशियम होता है। यह स्कलेरोशियम कवक के ऊतकों से निर्मित एक गहरे भूरे या काले रंग की कठोर संरचना होती है । क्लेविसेप्स नामक कवक के स्क्लेरोशिया से, जो एल्केलाइड प्राप्त होता है, उसे अर्गोटीन या अर्गोटाक्सीन कहते हैं, जिसको खाने से पशुओं एवं मनुष्यो के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। जिसमें मनुष्यों में पेट दर्द, सिर चकराना, उल्टी एवं अतिसार लक्षण प्रमुख हैं।कवक के स्क्लेरोशिया खाने से मनुष्य व जानवरों में जो रोग होता है,। उसे अर्गोटिज्म कहते हैं। इस रोग को लक्षणों के आधार पर दो भागों में बांटा गया है। मधु बिन्दु अवस्था- रोग की इस अवस्था में सर्वप्रथम छोटी-छोटी गुलाबी, मधु के रंग की द्रवीय पदार्थ की बूंदें बालियों पर दिखाई पड़ती है। जो बाद में भूरे रंग के चिपचिपे पदार्थ के रूप में बाली पर फ़ैल जाती है, इसी कारण इस रोग को बाजरे का चेपा रोग भी कहते हैं। इटैलिक टेक्स्टरोग की इस अवस्था में मधु बिन्दु अवस्था के 10 दिन बाद रोगग्रस्त बालियों में दानों की जगह भूरे या काले रंग के स्क्लेरोशिया बन जाते हैं। [1]

  1. डाॅ. हेमलता, शर्मा (2018). बाजरे का अर्गट (चेपा) रोग (2018 संस्करण). राजस्थान राज्य पाठयपुस्तक मण्डल 2-2ए, झालाना डूंगरी, जयपुर. पृ॰ 93-94. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789387089754.