बहु-प्रतिभा सिद्धांत

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बहु-प्रतिभा का सिद्धान्त (theory of multiple intelligences), लोगों एवं उनकी विभिन्न प्रकार की प्रतिभाओं भाषाई,स्थानिक, दैहिक, इन्द्रियगत, अंतर्वैयक्तिक, अन्तःवैयक्तिक, सांगीतिक, तार्किक गणितीय के बारे में हार्वर्ड गार्डनर का एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है जिसे उन्होने सन् १९८३ में प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त के द्वारा बुद्धि की अवधारणा (कांसेप्ट) को और अधिक शुद्धता से परिभाषित किया गया है और यह देखने की कोशिश की गयी है कि बुद्धि को मापने के लिये पहले से मौजूद सिद्धान्त किस सीमा तक वैज्ञानिक हैं।

परिचय[संपादित करें]

गार्डनर के बहु-प्रतिभा सिद्धांत के अनुसार परम्परागत रूप से परिभाषित बुद्धि की परिभाषा बहुत संकीर्ण है और यह मानव में विद्यमान विविध प्रकार की क्षमताओं का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं करती। इसके अनुसार, वह बच्चा जो आसानी से पहाड़ा याद कर लेता है जरूरी नहीं कि दूसरे बच्चे से अधिक प्रतिभाशाली हो जिसे पहाड़ा याद करने में कठिनाई होती है। हो सकता है कि दूसरा बच्चा किसी दूसरे तरह की बुद्धि में अधिक बुद्धिमान हो। ऐसा भी सम्भव है कि वह बच्चा गुणा की प्रक्रिया बिल्कुल ही अलग ढ़ंग से देखता हो जिसके कारण उसकी प्रगाढ़ गणितीय बुद्धि का किसी को अन्दाज न मिल पा रहा हो।

गार्डनर का मत है कि प्रत्येक व्यक्ति में सात प्रकार की प्रतिभाएं होती हैं। किसी व्यक्ति में दो या अधिक प्रधान प्रतिभाएं हो सकती हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनमें सात प्रतिभाएँ संतुलित रूप से होती हैं। हॉवर्ड गार्डनर ने शुरुआत में सात प्रतिभाएं सूत्र रूप में रखीं। उनकी सूची अस्थायी थी। पहली दो को स्कूलों में विशेषतौर पर महत्व दिया गया है, अगली तीन सामान्यतः कला से जोड़ी जाती हैं, एवं अंतिम दो वे हैं जिन्हें होवर्ड गार्डनर ने 'व्यक्तिगत प्रतिभा' कहा।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]