बरगदाही
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बरगदाही या वट सावित्री या बरगदाही अमावस्या उत्तर भारत का एक पर्व है. यह एक महान महिला सावित्री की ईश्वर के प्रति निष्ठा व पतिव्रत धर्म की महान शक्ति का परिचायक है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं.[1] यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को होता है . कुछ स्थानों पर यह ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को भी मनाया जाता है .कहते है कि देवी सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही यमराज से अपने पति का जीवन वापस पाया था ,तभी से वट वृक्ष का इस दिन से पूजन प्रारम्भ हुआ . तात्विक दृष्टि से विचार करें तो वट के पूजन से हमें वृक्षों की उपयोगिता व उनके संरक्षण का सन्देश मिलता है .हिन्दू संस्कृति में वृक्षों को जीवंत देवताओं के तुल्य माना जाता है . मत्स्य पुराण में वृक्षों के बारे में कहा गया है कि दस कुओं को बनवाने पर मिलने वाला पुण्य एक तालाब बनवाने के बराबर ,दस तालाब बनवाने पर मिलने वाला पुण्य एक झील बनवाने के बराबर और दस झीलों को बनवाने का पुण्य एक गुणवान पुत्र के बराबर और दस गुणवान पुत्रों का पुण्य एक वृक्ष लगाने मात्र से मिल जाता है . पेड़ पौधे प्रकृति के वरदान हैं जो हमें हरियाली व फल फूल के साथ जीवन और बेहतर स्वास्थ्य भी देते हैं . कहते हैं कि पृथ्वी पर एक वट वृक्ष में तीनों देवों (ब्रह्मा ,विष्णु व महेश) की शक्तियां हैं .वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी जाना जाता है . तार्किक दृष्टि से देखें तो यह वृक्ष ज्येष्ठ माह की तपती धूप से लोगों को बचाता रहा है .इसीलिए ज्येष्ठ माह में इसकी पूजा की परम्परा बन गयी .
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "बरगदाही विशेष: पति की लंबी आयु के लिए अपनाएं ये पूजन विधि". Amar Ujala. अभिगमन तिथि 2022-03-18.