प्लास्टीनेशन
परिचय
[संपादित करें]प्लास्टीनेशन (en: Plastination) निकायों या शरीर के अंगों कों संरक्षित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक तकनीक है। यह तकनीक 1977 में गुन्ठेर वोन हगेन्स ने दी थी। पानी और वसा कुछ प्लास्टिक पदार्थों से बदल दिए जाते हैं। फिर ऐसे नमूने तैयार किये जाते हैं जिनकी न तो कोई गंद होती है ना ही क्षय और देखने में मूल नमूनों की तरह ही दीखते हैं। और ना ही ये अपघटित होते हैं।
प्रक्रिया
[संपादित करें]प्लास्टीनेशन कि प्रक्रिया के कूल चार स्टेप हैं:
- निर्धारित करना।
- निर्जलीकरण करना।
- निर्वात में रखना।
- सख्त करना।
जल और लिपिड के ऊतक पॉलीमर से बदल दिए जाते हैं। सुसाध्य पॉलीमर जो इस प्रक्रिया के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं वो निम्नलिखित हैं: सिलिकॉन, इपोक्सी, पोलीइस्टर कोपॉलीमर।
प्लास्टीनेशन का सबसे पहला चरण होता है, निर्धारित करना। निर्धारण में फॉर्मलडेहाईड कि आवश्यकता होती है। यह रसायन ऊतकों कों अपघटित होने से रोकता है।
जरूरी विच्छेदन के पश्चात् सैंपल को एसीटोन के बाथ में रखा जाता है। ठंड की स्थिति के तहत, एसीटोन सब पानी को बाहर की और खींचता है और कोशिकाओं के अंदर पानी कि जगह खुद कों प्रस्थापित कर लेता है।
तीसरे चरण में सैंपल कों द्रवीय पॉलीमर के बाथ में रखा जाता है। फिर वहन निर्वात की स्तिथि बनाई जाती है। एसीटोन को कम तापमान पर उबाला जाता है। जैसे जैसे एसीटोन वाष्पीकृत होता जाता है, वैसे ही द्रवीय पॉलीमर सैंपल में इसकी जगह ले लेता है।
फिर इसे सख्त बनाने के लिए गर्म किया जाता है और अल्ट्रा वायलेट किरणों के सन्मुख रखा जाता है।
एक सैंपल कुछ भी हो सकता है। एक पूरे बड़े इंसानी शरीर से लेकर छोटे किसी भी जानवर के शरीर के अंग कों प्लास्टीननेट किया जा सकता है।