प्रकाशीय विभेदन

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प्रकाशीय यंत्रो की विभेदन क्षमता - प्रकाशिक यंत्र जैसे दूरदर्शी का कोणीय विभेदन इसके आभिदृश्यक से निर्धारित होता है अभी दर्शक द्वारा बनाए गए प्रतिबिंब में जो विभेदित नहीं हो पाते पर नेत्रिका द्वारा उत्पन्न आवर्धन द्वारा भी विवादित नहीं हो सकते। जैसे विचार कीजिए कि एक लेंस पर गिरने वाले एक समांतर किरण पुंज पर यदि लेंस विपथन के लिए पूर्ण रूप से अनुरूप है तो सममिति प्रकाशिकी के अनुसार के नाम पर एक बिंदु पर फॉक्सित होगा तब विवर्तन के कारण किरण पुंज एक बिंदु पर फॉक्सित होने की बजाय एक परिमित क्षेत्रफल में फॉक्सित होगा इस दशा में विवर्तन के प्रभाव को एक समतल तरंग को उत्तल लेंस से पहले रखें वृत्ताकार द्वारक पर आप अतीत कराकर ज्ञात कर सकते हैं

विवर्तन - में एक का स्त्रोत से निकले प्रकाश को एक झिरी के माध्यम से जाने देने पर वह प्रकाश किनारों से मुड़ जाता है इस घटना को विवर्तन कहते हैं

सिद्धांत तो यह एक-एक झीरी विवर्तन पैटर्न के विश्लेषण करने के समान है विवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए फोकस समतल पर बनने वाले पैटर्न में एक केंद्रीय वृत्त क्षेत्र होगा जो चारों ओर से आदिपत तथा दीप्त सकेंद्रीय वलयो से गिरा होगा

केंद्रीय दीप्त क्षेत्र की त्रिज्या-

r=1.22∆f/2a.

              { जहां ∆=लैंब्डा }

F = लेंस की फोकस दूरी तथा 2a = वृत्ताकार द्वारा के व्यास अथवा लेंस के व्यास में जो भी कम हो वही है।