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पैरासेल्सस

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पैरासेल्सस का चित्र

पैरासेल्सस (Paracelsus ; 11 नवम्बर या 17 दिसम्बर 1493 – 24 सितम्बर 1541) स्विट्सरलैण्ड के, १६ वीं शती के, लब्ध प्रतिष्ठ एलकेमिस्ट, अर्थात् कीमियागर या रसायनज्ञ थे। इनका वास्तविक नाम 'थिओफ्रैस्टस बॉम्बैस्टस फॉन् होहेनहाइम' (Theophrastus Bombastus von Hohenheim) था। ईसा की प्रथम शताब्दी में रोम देश में एक प्रसिद्ध साहित्यिक, सेल्सस (Celsus), हो चुका है। थिआफैस्टस बॉम्बैस्टम अपने को इस विख्यात व्यक्ति से बड़ा मानते थे, अत: उन्होंने अपना नाम 'पैरसेल्सस', अर्थात् 'सेल्सस से वड़ा', रख छोड़ा था।

ज्यूरिख के (जो आजकल स्विट्सरलैंड का नगर है, पर १६वीं सती में जर्मन देश में था) निकट मोरिया आइंसौडेल्न (Einsiedeln) में १७ दिसम्बर १४९३ ई. को पैरासेल्सस का जन्म हुआ। इनके पिता विलहेल्म फॉन होहेनहाइम चिकित्सक थे। इनकी माँ का इनके बचपन में स्वर्गवास हो गया। वे माता पिता की संभवत: एकमात्र संतान थे, पर बड़े प्रतिभाशाली और अहंमन्य। पैरासेल्सस के बाल्य जीवन का वितरण तो प्राप्त नहीं है, पर १५१४ ई. में ये टाइरोल की धातुकर्मशालाओं और खानों में गए और वहाँ इन्होंने धातुओं से संबंध रखनेवाली रसायन की शिक्षा पाई। टाइरोल जाने से पूर्व संभवत: इन्होंने बेसल विश्वविद्यालय में भी अध्ययन किया था। पेरासेल्सस को अपने पिता से चिकित्सा पद्धतियों के सीखने और दवाइयों के बनाने में सहायता मिली। टाइरोल की धातुकर्मशाला में सिजिसमंड फ्यूगर (Sigismund Fugger) से इन्होंने बहु कुछ सीखा और फिर ये जर्मनी, फ्रांस, बेलजियम, इंग्लैंड, स्कैडिनेविया, इटली, रूस और कुछ पूर्वीय देशों में भी सैलोनी की तरह घूम घूमकर रसविद्या का अनुभव प्राप्त करते रहे। बहुत से युद्धों में भी इन्होंने चिकित्सक का कार्य कैंपों में किया (जैसे सन् १५२१-१५२५ के वेनेसियन युद्ध में)। इटली के फरारा विश्वविद्यालय से उन्होंने एम. डी. की उपाधि भी प्राप्त की। १५२६ ई. में वे स्ट्रैसबर्ग में कुछ वर्ष रहे, पर एक स्थान पर जगकर रहना इनकी प्रवृत्ति में ही न था। पैरासेल्सस ने कई बार असाध्य रोगियों की सफल चिकित्सा की, जिससे उनकी ख्याति बढ़ गई। यूरोप में सर्वप्रथम इन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में धातुओं से बने यौगिकों का प्रयोग किया। वे अपने सामने पुरानी पद्धति के आचार्यो, जैसे गैलेन और हिप्पोक्रेटीज़ आदि को तुच्छ समझते थे। जब ये अपने नगर के प्रधान चिकित्सक नियुक्त हुए, तो इन्होंने गैलेन (Galen) और गंधक के साथ जला दिया। इनके इस प्रकार के व्यवहारों ने नगरवासियों और विशेषतया चिकित्सकों को, इनका शत्रु बना दिया। इनके भाषणों में भी लोग विघ्न डालने लगे। इनके अंतिम दिन निर्धनता में बीतने लगे। इनपर तरस खाकर राजकुमार पैलेटाइन (बैवेरिआ के आर्कबिशप, ड्यूक अनर्स्टं) ने अप्रैल, १५४१ ई. में इन्हें साल्ज़र्ग बुला दिया। यहाँ इनके दिन आराम से कटने लगे, पर ये बहुत दिनों तक जीवित न रहे। १४ दिसम्बर १५४१ ई. को इनका देहावसान हो गया। इस समय इनकी आयु केवल ४८ वर्ष की थी। सेंट सेबेस्टियन के गिरजा में इन्हें दफना दिया गया।

पैरासेल्सस के लेखों का संग्रह १० जिल्दों में ५८९-९१ ई. में बेसल में छापा गया। इन ग्रंथों का दूसरा संस्करण १६०३-१६१६ ई. में स्ट्रैसबर्ग में छपा। सन् १९२६-३० में आधुनिक जर्मन भाषा में एक संस्करण और निकला है।

पैरासेल्सस रासायनिक तत्त्वतत्वों के परिवर्तन में विश्वास रखते थे, पर इनका कहना यह था कि रसविद्या या कीमियागीरी का उद्देश्य अधम धातु को उत्तम धातु में परिवर्तन करना नहीं है, जिससे रोग और मृत्यु पर विजय प्राप्त हो। चिकित्साशास्त्र में पैरासेल्सस के पहले वनस्पतियों और जंगल के औषधों के काढ़ों का उपयोग होता था। पैरासेल्सस ने धातुओं से बने यौगिकों के उपयोग की पद्धति चलाई। यूरोप में इन्हें औषध रसायन का प्रवर्तक माना जाता है। वे रोग और स्वास्थ्य पर ग्रहों के प्रभाव को भी मानते थे। विश्व के समस्त पदार्थो में वे जीवन का अस्तित्व मानते थे। वे वायु, जल और अग्नि में शरीर और प्राण (जीवन) तो मानते थे, पर आत्मा नहीं। सब पदार्थो के मूल में वे तीन तत्व मानते थे : लवण (शरीर), गंधक (आत्मा) और पारा (प्राण)। वे धातुओं को गंधक और पारे से मिलकर बनी मानते थे। उनका कहना था कि धातुओं के विभिन्न रंग और उनकी आभाएँ गंधक, पारा और लवणों की सापेक्ष मात्राओं पर निर्भर हैं। गंधक ज्वलनशीलता का तत्व, लवण अदाह्यता और स्थिरता का तत्व एवं पारा वाष्पशीलता और गलनीयता का तत्व माना जाता था।

पैरासेल्सस को नए पारिभाषिक शब्द गढ़ने में बड़ा मजा आता था। ओषधियों के भीतर विद्यमान रोगनाशक तत्व का नाम उन्होंने एरकानम (arcanum) रखा था। इनका विचार था कि एरकानाम एक प्रकार का गैसीय पदार्थ है, जो ऊपर उठकर भाग्यविधाता ग्रहों और नक्षत्रों तक पहुँच सकता है और स्वास्थ्य का स्थापक है। रसविद्या का उद्देश्य इस एरकानम को ही प्राप्त करना है और यह सीखना है कि रोगनिवारणार्थ इस एरकानम का कैसे प्रयोग किया जाय। परमात्मा द्वारा बनाई गई कच्ची, प्राकृतिक सामग्री से तैयार माल बनाना, रसविद्या का दूसरा उद्देश्य है। परमात्मा ने लोहे का अयस्क बनाया, उससे लोहा प्राप्त करना रसज्ञों का कार्य है। पैरासेल्सस ने 'ऐलकोहल' नाम अंगूर की आसुत सुरा के लिये दिया, जो आज तक प्रचलित है। इस शब्द का अर्थ कोयलेवाला, या कागज (al-kohl), है। इस प्रकार मनमाना नाम दे देने में पैरासेल्सस का आनंद आता था।

पैरासेल्सस ने पदार्थो को शुद्धावस्था में प्राप्त करने पर बल दिया। पदार्थो के संशोधन की विधियाँ भी बताई और इस प्रकार पैरासेल्सस ने जो परंपराऍ निर्धारित कीं, उनपर आधुनिक रसायनशास्त्र की नींव पड़ी।