पारो आनंद
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पारो आनंद भारत की शीर्ष लेखिकाओं में एक हैं[1]।
लेखन
[संपादित करें]पारो मुश्किल परिस्थितियों का सामना कर रहे किशोरों पर विस्तार से लिखती रही हैं। [2]
कार्यक्रम
[संपादित करें]पारो आनंद रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए 'लिट्रेचर इन एक्शन' नाम से कार्यक्रम[3] चलाती हैं।
उपन्यास
[संपादित करें]उनका उपन्यास ‘नो गन्स ऐट माय सन्स फ्यूनरल’, हिंसा के बीच बढ़ते हुए एक किशोर की कहानी है। इसे ‘आईबीबीवाय ऑनर लिस्ट’, 2006 में शामिल किया गया था।[4]
इस उपन्यास पर फ़िल्म बन रही है और इसका जर्मन और स्पैनिश भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है[5]।
पारो ‘राष्ट्रीय बाल साहित्य केंद्र’ की प्रमुख भी रह चुकी हैं।
विश्व रिकॉर्ड
[संपादित करें]उन्होंने 3,000 बच्चों की मदद कर दुनिया का सबसे लंबा समाचार पत्र भी तैयार करवाया है, जो एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है। [6]
सम्मान
[संपादित करें]बच्चों के लिए साहित्य में पारो के योगदान[7] के लिए उन्हें राष्ट्रपति की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है।[8]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 16 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.
- ↑ http://timesofindia.indiatimes.com/litfest/delhi-litfest-2016/speakers/Paro-Anand/articleshow/55094034.cms
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 1 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 सितंबर 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.
- ↑ http://www.thehindu.com/books/Children-of-a-lesser-award/article12561147.ece
- ↑ http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-in-school/in-conversation-with-paro-anand/article6926337.ece