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पतली परत क्रोमैटोग्राफी

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पतली परत क्रोमैटोग्राफी एक क्रोमैटोग्राफी की तकनीक है जो गैर वाष्पशील मिश्रण को अलग करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।[1] पतली परत क्रोमैटोग्राफी कांच, प्लास्टिक, या एल्यूमीनियम पन्नी, जो पी लेनेवाला सामग्री, आमतौर पर सिलिका जेल, एल्यूमीनियम ऑक्साइड (एल्यूमिना), या सेल्यूलोज की एक पतली परत के साथ लेपित के एक पत्रक पर किया जाता है। सोख लेनेवाला यह परत स्थिर चरण के रूप में जाना जाता है। घटकों की पहचान आये हुए स्पॉट रंग और उनके मंदता कारक के आदार पर किया जाता है।

यह एक प्रकार का अधिशोषण क्रोमैटोग्राफी है। इसमें मिश्रण का पृथक्करण सिलिका जेल या ऐल्युमिनियम ऑक्साइड की पतली एकरूप परत पर किया जाता है। इन अधिशोषकों के साथ बंधक माध्यम जैसे-कैल्सियम कार्बोनेट अथवा स्टार्च एवं पानी के साथ मिलाकर काँच की एक पट्टी पर समरूप पतली परत के रूप में फैला देते हैं। बाद में इसे ओवन अथवा डेसिकेटर में रखकर सुखा लिया जाता है प्लेट पर प्रतिदर्श अथवा नमूने के मिश्रण को पिपेट की सहायता से अंकित किया जाता है। इसके बाद प्लेट को कुछ देर तक छोड़ दिया जाता है ताकि विलायक वाष्प के रूप में ऊपर उड़ जायें। इसे अब एक टैंक में ठीक उदग्र रूप से डाला जाता है। टैंक में विलायक भरा होता है। सावधानी रखा जाता है कि प्लेट पर अंकित मिश्रण विलायक के अंदर डूबा न हो। जब विलायक प्लेट पर ऊपर की ओर चढ़ जाता है, तो इसे सावधानीपूर्वक टैंक से निकाल लिया जाता है। सूखने के बाद प्लेट को विभिन्न अभिकर्मकों की सहायता से विकसित कर यौगिकों को पहचाना जाता है। पेपर क्रोमैटोग्राफी[मृत कड़ियाँ] की तुलना में तनु परत क्रोमैटोग्राफी को अधिक सुग्राह्य माना जाता है, क्योंकि इसकी गति, क्षमता एवं सूक्ष्मग्राह्यता अधिक होती है। इसके द्वारा लिपिड्स एवं स्टीरॉल्स को आसानी से पृथक् किया जाता है।

प्लेट की तैयारी

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  1. पेहले कांच की प्लेट को डिटर्जेंट से साफ कर के उसको सुखा लेना चाहए।
  2. सिलिका जेल का घोल तयार कर ले।
  3. फिर उस घोल को कांच की प्लेट पर धिरे से डाले और पूरी प्लेट पर पतली परत बना ले।
  4. प्लेट को ३० से ४० मिनिट तक रख दे और फेर उसे ओवन में सुखाए।

एक पतली परत क्रोमैटोग्राफी प्लेट चलाने के लिए, निम्न प्रक्रिया से बाहर किया जाता है:

काली स्याही के अलग हुए स्पॉट
  1. एक केशिका का उपयोग कर के प्लेट पर नमूने को प्लेट के नीचे के किनारे से १.५ cm ऊपर लगया जाता है।
  2. एक कांच के कक्ष में विलायक डाले और कम से कम २ cm तक हो।
  3. और उस कक्ष को कांच की प्लेट से बंद कर के ३० मिनिट तक रख दे।
  4. फिर नमूने वाली प्लेट को कक्ष में आराम से रखे और ऊपर से कांच की प्लेट से ही बंद करे।
  5. प्लेट विलायक को सोख लेता है।
  6. अलग हुए स्पॉट देखने लगते हैं।
  7. फिर उनका मंदता कारक निकला जाता है।

घटकों की पहचान आये हुए स्पॉट रंग और उनके मंदता कारक के आदार पर किया जाता है।

सन्दर्भ

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  1. Harry W. Lewis & Christopher J. Moody (13 Jun 1989). Experimental Organic Chemistry: Principles and Practice (Illustrated संस्करण). WileyBlackwell. पपृ॰ 159–173. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-632-02017-1.