पठार
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भूमि पर मिलने वाले द्वितीय श्रेणी के स्थल रुपों में पठार अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं और सम्पूर्ण धरातल के ३३% भाग पर इनका विस्तार पाया जाता हैं।अथवा धरातल का विशिष्ट स्थल रूप जो अपने आस पास की जमींन से प्रयाप्त ऊँचा होता है,और जिसका ऊपरी भाग चौड़ा और सपाट हो पठार कहलाता है। सागर तल से इनकी ऊचाई ३०० मीटर तक होती हैं लेकिन केवल ऊचाई के आधार पर ही पठार का वर्गिकरण नही किया जाता हैं।
अनुक्रम
पठारों की उत्पत्ति के कारक[संपादित करें]
- भू-गर्भिक हलचलें, जिनके कारण कोई समतल भू-भाग अपने समीप वाले धरातल से ऊपर उठ जाता हैं।
- एसी हलचलें जिनके कारण समीपवर्ती भू-भाग नीचे बैठ जाते हैं तथा कई समतल भाग ऊपर रह जाता हैं।
- ज्वालामुखी-क्रिया के समय निकले लावा के जमाव से समतल तथा अपेक्षाक्रत उठे हुए भाग का निर्माण होता हैं।
- पर्वतों के निर्माण के समय किसी समीपवर्ती भाग के अधिक ऊपर न उठ पाने के कारण भी पठार का निर्माण होता हैं।
पठारो का वर्गीकरण[संपादित करें]
- जवालामुखी से उत्पन्न पठार
- बहिर्जात बलों से उत्पन्न पठार
- जलवायु के आधार पर पठार
विश्व के प्रमुख पठार[संपादित करें]
- तिब्ब्त का पठार
- मंगोलिया का का पठार
- एशिया माइनर का पठार
- अरब का पठार
- अनातोलिया का पठार
- यूनान का पठार
- आस्ट्रेलिया का पठार
- मेडागास्कर का पठार
- अबीसीनिया का पठार
- ब्राजील का पठार
- मेसेटा का पठार
- बोलीविया का पठार
- चियापास का पठार
- अलास्का का पठार
भारत के प्रमुख पठार[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
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