नौसैनिक सुरंग
नौसेना युद्ध का चरम उद्देश्य समुद्री संचार पर निर्विवाद नियंत्रण प्राप्त करना होता है। इसमें सुरंगें, सुरंग युद्ध और उसके प्रत्युपायों का मुख्य हाथ है। इस दिशा में उन्नत तकनीकी एवं वैज्ञानिक विधियों के कारण सुरंगें नौसेना संघर्ष का एक आकर्षक अंग बन गी हैं।
इतिहास
[संपादित करें]प्रकार
[संपादित करें]सुरंग के मुख्य दो प्रकार हैं-
(क) उत्प्लावी (तैरती) सुरंगें - ऐसी सुरंगें समुद्र तट के कुछ दूरी पर और जल की ऊपरी सतह से कुछ नीचे तैरती रहती हैं। ये समुद्र तल में स्थित एक निमज्जक से संलग्न रहती हैं।
(ख) समुद्र तलीय सुरंगें - ऐसी सुरंगें समुद्र तल में स्थित रहती हैं।
उत्प्लावी तथा समुद्रतलीय सुरंगों का विशेष विवरण इस प्रकार है-
(क) उत्प्लावी सुरंग की सन्निकट भापें: विस्फोटक का भार 227 किग्रा, केस सहित विस्फोटक भरी हुई सुरंग का भार 570 किग्रा, उत्प्लावकता 190 किग्रा, सुरंग की पूरी ऊँचाई 1.5 मी तथा पट्टी का व्यास 1 मी।
(ख) समुद्र तलीय सुरंग की सन्निकट भापें: बेलनाकार सुरंग का विवरण-लंबाई 2.2 मी, व्यास 0.4 मी तथा विस्फोटक 274.4 किग्रा।
पैराशूट युक्त सुरंग का विवरण-पूरे सुरंग का भार 556 किग्रा, तथा पैराशूट का भार 10 किग्रा।
फायर करने की विधियाँ
[संपादित करें]उत्प्लावी सुरंगें अधिकांशत: संस्पर्श द्वारा फायर की जाती है, अर्थात् विस्फोट के लिए किसी जहाज या पनडुब्बी से इन पर प्रहार करना अत्यावश्यकश् होता है। कुछ उत्प्लावी सुरंगें, असंस्पर्श सुरंगें होती हैं।
सभी समुद्रतलीय सुरंगें असंस्पर्श या प्रभावी सुरंगें होती हैं। इनका फायर, बिना प्रहार किए सुरंगों पर जहाज या पनडुब्बी के प्रभाव से, होता है। प्रभाव चुंबकीय, ध्वनिक या दबाव वाला हो सकता है। चुंबकीय सुरंगों का फायर जहाज के चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव के कारण होता है। ध्वनिक सुरंगों का फायर जहाज के नोदकों द्वारा उत्पन्न शोरगुल से होता है। दबाव वाले सुरंगों का फायर पानी में चलते हुए जहाज से उत्पन्न दबाव की तरंगों से होता है। कुछ सुरंगों का फायर दो प्रभावों, जैसे 'चुंबकीय एवं ध्वनिक' या 'दबाव एवं चुंबकीय', से होता है। इन्हें 'संयुक्त संयोजन' (Combination Assemblies) कहते हैं और सुरंग के फायर करने के लिए दोनों प्रभावों की एक साथ उपस्थिति आवश्यक होती है। ऐसी सुरंगों का हटाना कठिन होता है।
सुरंगों के उपयोग
[संपादित करें]सुरंगों का उपयोग आक्रमण एवं रक्षा दोनों के लिए किया जा सकता है। रक्षा के लिए उपयोग किए जाने पर ये बंदरगाह और तट की रक्षा करती हैं। ये तटीय जहाजों को शत्रु के आक्रमण से बचाती हैं। यदि सुरंग को आक्रमण के लिए प्रयुक्त करना है तो शत्रुतट से दूर बंदरगाह के प्रवेश मार्ग या अभ्यास क्षेत्र में सुरंगें बिछाई जाती हैं। इस प्रकार नाकेबंदी से सुरक्षा कर सकते हैं या शत्रु के जहाजों को डुबा सकते हैं। समुद्र तलीय सुरंगें साधारतया आक्रमण क्षेत्र के लिए ही होती हैं। सुरंग तोड़ने वालों के कार्य को अधिक दुष्कर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की सुरंगें एक ही क्षेत्र में रखी जाती हैं ताकि सुरंग हटाने के लिए एस के अधिक विधियों का प्रयोग करना पड़े। सुरंगों के फायर में अवरोध उत्पन्न करके शत्रु के सुरंग तोड़ने की समस्या को जटिल बनाया जाता है।
सुरंग बिछाने वाले उपकरण
[संपादित करें]शत्रु के समुद्र तट से दूर समुद्रतलीय सुरंगें साधारणत: वायुयान द्वारा बिछाई जाती हैं। पनडुब्बी तथा तीव्रगामी गश्ती नौकाओं का भी प्रयोग किया जाता है। नौसेना में सुरंग बिछाने वाले विशेष पोत होते हैं जिनका एकमात्र कार्य ही सुरंगें बिछाना होता है। ये बहुत बड़े और तीव्रगामी होते हैं। रक्षात्मक क्षेत्र में सुरंगें बिछाने के लिए किसी भी तैरने वाली वस्तु का उपयोग किया जा सकता है या उसको सुरंगें बिछाने वाले उपकरण में परिणत किया जा सकता है।
सुरंग के प्रत्युपाय (काउंटर मेजर्स)
[संपादित करें]अपने क्षेत्र के पत्तनों, बंदरगाहों तथा तटों से दूर बिछाई गई सुरंगों से बचाव की अने विधियाँ प्रयुक्त होती हैं। उथले जल जैसे बंदरगाह, गोदी तथा आंतरिक जलमार्ग में बिछाई गई सुरंगों को हटाने के लिए हटाने वाले गोताखोरों को प्रशिक्षित किया जाता है। वायुयान और हेलिकॉप्टर भी कुछ मदद करते हैं, लेकिन हटाने और सफाई का कार्य मुख्यत: सुरंग तोड़ने वाले पोतों द्वारा, जिन्हें 'सुरंग तोड़क' (Mine sweeper) कहते हैं, ही होता है।
सुरंगों का संसूचन (डिटेक्शन)
[संपादित करें]सुरंगों का पता लगाना सरल कार्य भी है। यह कार्य पहले सैनिक करते थे, लेकिन आजकल कुछ ऐसी युक्तियाँ बनी हैं जिनसे सुरंग की उपस्थिति का ज्ञान हो जाता है। इनमें से एक विधि को 'चुंबकीय संसूचक' कहते हैं। ऐसे एक उपकरण में 'ईयर फोन' (Ear phone) लगा रहता है, जिससे सुरंग के ऊपर चलते हुए सिपाही के कानों में गुंजन सुनाई देता है। इन्हें 'विद्युत चुंबकीय संसूचक' कहते हैं। अब अधातुओं की भी सुरंगें बनने लगी हैं। सुरंगों के तोड़ने का एक तरीका यह भी था कि सुरंगों वाले क्षेत्र में विस्फोट उत्पन्न किया जाए, जिससे सुरंगें विस्फोटित होकर नष्ट हो जाएँ। इसे 'प्रत्युपायी सुरंग लगाना' (Counter mining) कहते हैं।
सुरंग तोड़क
[संपादित करें]एक विशिष्ट प्रकार के पोत होते हैं। इन पोतों में लगभग 900 फुट लंबे तार के रस्से (Cable) लगे रहते हैं। ये रस्से पोत के एक किनारे से जुड़े रहते हैं। इन्हें 'तोड़न गियर' (Sweeping gear) कहते हैं। जल उत्प्लावक की, जिसे 'पैरावेन' (Paravane) कहते हैं, सहायता से ये रस्से जहाज से दूर रखे जाते हैं। पैरावेन डूबकर पेंदे में न चला जाए इसके लिए उनमें धातु का उत्प्लावक लगा रहता है।
तोड़न गियर सुरंगों को उनके निमज्जक से जोड़ने वाले तारों को पकड़ लेते हैं तथा उनमें लगे दाँतों की सहायता से काट देते हैं। इन तारों के कट जाने से सुरंग पानी पर तैरने लगती है और इसे राइफल फायर द्वारा नष्ट कर देते हैं।
प्रभावनाशक पोत
[संपादित करें]ये जहाज चुंबकीय या ध्वनिक सुरंगों को हटाने के लिए विशेष रूप से बनाए जाते हैं। चुंबकीय सुरंगतोड़क पोत के पिछले हिस्से से एक तार का रस्सा जुड़ा रहता है। पूरा पोत चुंबकीय गुण रहित होता है। इन रस्सों में विद्युतधारा प्रवाहित कर चुंबकीय गुण उत्पन्न किया जाता है। इस कारण चुंबकीय सुरंगें जहाज के आगे निकल जाने के बाद विस्फोटित होकर नष्ट हो जाती हैं।
ध्वनिक सुरंग तोड़क पोत में डेरिक (Derrick) से एक ध्वनिक चप्पू (Acoustic sweep) लगा रहता है, जो उच्च तीव्रता वाली ध्वनि उत्पन्न करता है। इस कारण जहाज के उस स्थान पर पहुँचने से पूर्व ही सुरंग विस्फोटित होकर नष्ट हो जाती है।
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- Technical details of German Second World War sea mines
- 'Manta' & 'Murena' – two modern Italian influence mines
- 'Stonefish' – a British influence mine
- Henry Norton Sulivan: a depiction of early Naval Mine
- Our Sailors by W.H.G. Kingston[मृत कड़ियाँ]
- Naval Mine Warfare School and Center of Excellence Website of the Naval Mine Warfare School
- W.L.Clowes in 1855
- Popular Science, March 1940, Can Mines Conqueror Sea Power
- Popular Science, November 1943, Mine Killers at Work
- "Fighting The Submarine Mine – How Navies Combat A Deadly Sea Weapon" October 1941
- "Mines Are Dirty Tricks" , February 1951 updates to above article on naval mines due to Korean War and types and measures against