ध्यान सम्प्रदाय

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ध्यान सम्प्रदाय की खोज और जानकारी अतिआवश्यक इन मायनों में हो जाती है की बोधिधर्म के द्वारा इसका सूत्रपात किया गया जिसका अनुपालन उनके शिष्य हुतेई के द्वारा आगे जीवित रखा गया ये मौन की वो उच्चतम और आंतरिक अवस्था है जिसमें साधक प्रकृति के साथ गहनतम लयबद्धता विकसित कर लेते है और वो इसमे इतने पारंगत हो जाते है कि अपने पंचतत्व की प्रकृति का शक्तियों की तरह उपयोग करने की कला को भी जी सकते हैं। सम्मोहन की विशिष्ट विद्या को भी इससे जोड़ कर शायद देखा जाना उचित होगा। ध्यान गुरु ओशो के द्वारा भी अपनी कई जेन प्रवचनो में इस तरह की कई विधाओं की ओर प्रकाश डाला गया है। जिसमे धनुर्विद्या में जेन गुरु द्वारा पर्वत की बारीक चोटी पर खड़े होकर आँखों के एक दृष्टि मात्र से ही उड़ते हुए बगूलों के झुंड को मार गिराया गया। ये सारी विधाएं भारतवर्ष से जीवित और विकसित हो सर्व जीव कल्याण हेतु अन्य देशों में भी प्रसारित की गई पर दुर्भाग्य से समय के साथ ये सारी कलाएं अन्य देशों द्वारा ना केवल छुपा ली गई बल्कि क्रूरतापूर्ण ढंग से इनके उदगम में जा कर इन्हें नष्ट करने के प्रयास भी लोभी शासको द्वारा भारत मे किये गए।