द प्रोटोकॉल ऑफ द एल्डर्स ऑफ जियोनरूस का एक फर्जीवाड़ा है।[1] यह फ्रांसीसी नाटक फ्रॉम द नाइटींथ सेंचुरी पर आधारित था। आंद्रोपोव एल्डर्स ऑफ जियोन को अमेरिकी कांग्रेस बताकर प्रचारित करते थे। आंद्रोपोव जो कि 1967 में अरब-इजरायल के युद्ध के ठीक छह दिन पहले केजीबी प्रमुख बने थे, ने अरबी भाषा में इस किताब का अनुवाद करवाया था। रूस ने 1905 में एक झूठे प्रोपेगेंडा वाली किताब द प्रोटोकॉल ऑफ द एल्डर्स ऑफ जियोन में यह आरोप लगाया था कि यहूदी पूरे यूरोप को कब्जा में लेने की तैयारी में हैं और अमेरिका उन्हें सहायता दे रहा है। रूस की इंटेलीजेंस एजेंसी में अफसर रहे पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल इओन मिहैद पसेपा ने अपनी एक किताब में दावा किया है कि द प्रोटोकॉल बुक हिटलर की फिलॉस्फी पर सबसे अधिक आधारित थी। उन्होंने लिखा है कि विश्व की खतरनाक मानी जाने वाली रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी ने 1970 में मुस्लिम देशों में इसकी हजारों प्रतियां बँटवाईं थी। जेन इओन मिहैड पसेपा रोमानिया के नागरिक हैं। जनरल पसेपा और यूनिवर्सिटी ऑफ मिस्सीसिपी में लॉ के प्रोफेसर रोनाल्ड रचाक द्वारा संयुक्त रूप से लिखी गई किताब 'डिसइन्फॉर्मेशन' में यह दावा किया है। किताब में बताया गया है कि रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी में 15 साल तक प्रमुख रहे यूरी आंद्रोपोव ने सैकड़ों एजेंट मुस्लिम देशों में भेजे थे। इन एजेंटों को प्रोपेगंडा लिटरेचर की हजारों प्रतियां दी गई थीं। इस झूठे प्रचार अभियान में यह बताया गया था कि अमेरिका और इजरायल यूरोप के अलावा मुस्लिम देशों को अपनी जागीर बनाना चाहते हैं।[2]